कृषि जलवायु क्षेत्र क्या हैं? | agro-climatic zones in hindi
वह क्षेत्र जहां की भूमि और वातावरण किसी प्रमुख फसल को उगाने के लिए उपयुक्त होता है उसे कृषि जलवायु क्षेत्र (agro-climatic zone in hindi) कहा जा सकता हैं ।
भारत की कृषि जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक | factors affecting agricultural climate in hindi
भारत में फसल उत्पादन में जलवायु का महत्व स्थान है प्रत्येक किसान जलवायु के आधार पर ही कृषि क्रियाएं करता है ।
कृषि को प्रभावित करने वाले जलवायु संबंधित प्रमुख -
- सूर्य का प्रकाश ( Sun Light )
- तापमान ( Temperature )
- आद्रता ( Humidity )
- वायु ( Air )
- वर्षा ( Rain )
भारत में कृषि जलवायु क्षेत्र कितने है | indian agro-climatic zones in hindi
भारतीय योजना आयोग (Planning Commission Of India, 1989) ने भारत को निम्नलिखित 15 कृषि जलवायु क्षेत्रों में विभाजित किया है ।
इन 15 कृषि जलवायु क्षेत्रों को, अति विशिष्ट मर्दा जलवायु एवं सस्य क्रम के आधार पर पुन: 73 उप क्षेत्रों (sub zones) में विभक्त किया गया है ।
भारत में कृषि जलवायु क्षेत्र एवं उनकी प्रमुख फसलें कोन-कोन सी है |
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भारत में कृषि जलवायु क्षेत्र की सूची -
- पश्चिमी हिमालय क्षेत्र ( Western Himalayan Region )
- पूर्वी हिमालय क्षेत्र ( Eastern Himalayan Region )
- निचला गंगा का मैदानी क्षेत्र ( Lower Gangetic Plains Region )
- मध्य गंगा का मैदानी क्षेत्र ( Middle Gangetic Plains Region )
- ऊपरी गंगा का मैदानी क्षेत्र ( Upper Gangetic Plains Region )
- गंगा का ट्रान्स मैदानी क्षेत्र ( Trans - Gangetic Plains Region )
- पूर्वी पठारी एवं पर्वतीय क्षेत्र ( Eastern Plateau and Hills Region )
- मध्य पठारी एवं पर्वतीय क्षेत्र ( Central Plateau and Hills Region )
- पश्चिमी पठारी एवं पर्वतीय क्षेत्र ( Western Plateau and Hills Region )
- दक्षिणी पठारी एवं पर्वतीय क्षेत्र ( Southern Plateau and Hills Region )
- पूर्वी तटीय मैदानी एवं पर्वतीय क्षेत्र ( East Ghats Plains and Hills Region )
- पश्चिमी तटीय मैदानी एवं घाट क्षेत्र ( West Coast Plains and Ghat Region )
- गुजरात का मैदानी एवं पर्वतीय क्षेत्र ( Gujarat Plains and Hills Region )
- पश्चिमी शुष्क क्षेत्र ( Western Dry Region )
- प्रायद्वीप क्षेत्र ( The Islands Region )
भारत में कृषि जलवायु क्षेत्र एवं उनकी प्रमुख फसलों का वर्गीकरण
1. उत्तरी-पश्चिमी पर्वतीय प्रदेश ( The North Western Mountainous Region ) -
इस कृषि-जलवायु प्रदेश का विस्तार जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के गढ़वाल कुमायूँ मण्डलों में मिलता है । इस क्षेत्र में अनेकों हिमाच्छादित चोटियाँ, विषम धरातल, सदावाहिनी नदियाँ, सदाबहार व पतझड़ी वन तथा विषम तीव्र ढालों पर पतली मिट्टियाँ पाई जाती हैं । तापमान व वर्षा में सूक्ष्म स्तरीय अन्तर भी मिलता है । यहाँ ग्रीष्म ऋतु मृदुल तथा शीत ऋतु सामान्यतः कठोर होती है ।
उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें -
- कम तापमान, हिमपात व प्रतिकूल सर्दियाँ कृषि गहनता में बाधक हैं जिन्होंने इस प्रदेश की काश्मीर, दून व चम्बा घाटियों में मक्का की फसलें महत्वपूर्ण हैं ।
- जौ, गेहूँ, ओट व मटर की फसलें अक्टूबर में बोई जाती हैं । ये फसलें मई-जून में काटी जाती हैं । लद्दाख क्षेत्र में सिन्धु की सहायक सुरु (suru) और नुब्रा (nubra) नदियों की घाटियों में गेहूं की फसल जुलाई-अगस्त में काटी जाती यह कृषि जलवायु प्रदेश फलोद्यानों (orchards) के लिये अधिक प्रसिद्ध है ।
- काश्मीर के सोपोर, श्रीनगर तथा बारामूला, हिमाचल प्रदेश के कुल्लू - मनाली, शिमला व काँगड़ा तथा उत्तर प्रदेश के रानीखेत व अल्मोड़ा प्रदेश में सेब के बगीचे मिलते हैं । सेब के बगीचों के अलावा इस । प्रदेश में एप्रीकॉट, बादाम, वालनट, लीची, लोकाट, चेरी, पीच, नाशपाती व केसर की खेती होती है ।
- 2000 मीटर के उच्च पर्वतीय भागों में पशुचारण किया जाता है । ढोक (dhok) व मर्ग (murg) घास के क्षेत्रों में गुज्जर, बकरवाल तथा गद्दी लोग भेड़, बकरियाँ, घोड़े व चौपायें पालते हैं ।
इस प्रदेश की लगभग 80% जनसंख्या कृषि क्रिया पर ही आश्रित है । इस प्रदेश में परिवहन के साधनों की कमी है । मिट्टी-अपरदन, भू-स्खलन, धुन्ध युक्त मौसम, विपणन व भण्डारण की सुविधायें अपर्याप्त होने के कारण कृषि विकास में बाधायें हैं । ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली जनसंख्या का जीवन - स्तर बहुत निम्न कोटि का है । यहाँ के लोग निर्धनता के कारण नई कृषि तकनीकी में उन्नत किस्म के गेहूँ व चावल के बीजों तक का भी प्रयोग नहीं कर पाते हैं । इस कृषि जलवायु प्रदेश में कृषि अनुसंधान व विस्तार सुविधाओं पर और अधिक बल देने की आवश्यकता है ।
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2. उत्तरी-पूर्वी प्रदेश ( The North Eastern Region ) —
उत्तरी-पूर्वी कृषि जलवायु प्रदेश में भारत के सात राज्यों — अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैण्ड व त्रिपुरा को सम्मिलित किया गया है । ब्रह्मपुत्र घाटी व सातों राज्यों के पहाड़ी क्षेत्र इस कृषि - जलवायु प्रदेश के दो स्पष्ट उपभेद हैं । इस प्रदेश में अप्रैल से अक्टूबर तक वर्षा की बहुतायत मिलती है । प्रचुर आर्द्रता तथा मृदुल से लेकर गर्म तापमान तक इस प्रदेश की प्रमुख विशेषतायें हैं । इस प्रदेश की उष्ण एवं आर्द्र जलवायु वर्षभर फसलों के उगाने के लिये अनुकूल है । यद्यपि तापमान तथा वर्षा में सूक्ष्म स्तरीय विभिन्नतायें भी विद्यमान हैं ।
उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें -
- चावल इस प्रदेश की प्रधान फसल है ।
- ब्रह्मपुत्र नदी के दोनों ओर का विषम धरातल तथा उसकी सहायक नदियों द्वारा लाई गई जलोढ़ मिट्टियाँ चाय, जूट, अनन्नास, अदरक, सन्तरा, अमरूद, मक्का, आलू व सब्जियों के उत्पादन के लिये अनुकूल दशायें प्रस्तुत करती हैं ।
- इस प्रदेश के पहाड़ी ढालों पर 'झमिंग' (jhuming) कृषि की जाती है ।
3. सतलज-यमुना मैदान ( The Sutlej - Yamuna Plain ) –
इस प्रदेश में अधिकांश पंजाब, हरियाणा तथा राजस्थान के उत्तरी-पूर्वी भाग को सम्मिलित किया गया है । इस प्रदेश की जलवायु अर्द्धशुष्क है । महाद्वीपीयता (continentality) जलवायु की प्रमुख विशेषता है । यहाँ मई के महीने में तापमान प्राय: 45° सेग्रे० को पार कर जाते हैं जबकि जनवरी के महीने में न्यूनतम तापमान हिमांक बिन्दु तक पहुँच जाता है । औसत वार्षिक वर्षा 50 से 100 सेमी० तक होती है दिसम्बर-फरवरी के मध्य पश्चिमी विक्षोभों से भी वर्षा होती है । भारत में हरित क्रान्ति की शुरूआत इसी प्रदेश से हुई है । इस प्रदेश में कृषि का सर्वाधिक मशीनीकरण एवं आधुनिकीकरण हुआ है । जल - रेचन (water-logging) लवणता एवं क्षारीयता (salinity and alkalinity) तथा भौम जल के गिरते स्तर (lowering of water table) जैसी समस्याओं के कारण इस प्रदेश की कृषि में कठिनाइयाँ आ सकती हैं । सतलज - यमुना मैदान में नहरी सिंचाई (canal irrigation) की सर्वोत्तम व्यवस्था है । सतलज , व्यास व यमुना नदियाँ इस कार्य में मदद करती हैं । अधिकतर किसानों के पास निजी नलकूप हैं जिनसे सुनिश्चित सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होती है ।
उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें -
- चावल, गन्ना, मक्का, कपास, दलहन व चारा की फसलें खरीफ के अन्तर्गत तथा गेहूँ, जौ, मटर, चना व तिलहन रबी फसलों में उगाये जाते हैं ।
इस प्रदेश के कृषक नवीन कृषि तकनीकों को अपनाने में सबसे आगे हैं । यहाँ कृषि का स्वरूप व्यावसायिक हो गया है । डेयरी व्यवसाय भी एक महत्वपूर्ण आर्थिक क्रिया है ।
4. ऊपरी गंगा मैदान ( The Upper Ganga Plain ) —
इस जलवायु प्रदेश में अधिकांश गंगा-यमुना दोआब, रुहेलखण्ड व लखनऊ संभाग सम्मिलित हैं । गंगा व उसकी सहायक नदियों ने इस प्रदेश को उर्वर जलोढ़ मिट्टी प्रदान की है । ये नदियाँ वर्ष भर जल से परिपूर्ण रहती हैं । सिंचाई सुविधाओं के विकास में इन नदियों की महत्वपूर्ण भूमिका है । जून-जुलाई में औसत तापमान 41° सेग्रे० तथा जनवरी का औसत तापमान 7° सेग्रे० रहता है । यहाँ वार्षिक वर्षा का औसत 75-150 सेमी० पाया जाता है । वर्षा का 80% भाग ग्रीष्म ऋतु में अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी की ओर से जाने वाली मानूसन पवनों से प्राप्त होता है । शीतऋतु में थोड़ी वर्षा पश्चिमी विक्षोभों से भी की जाती है । ग्रीष्म ऋतु में ‘आँधी' व गर्म पवन 'लू' (loo) चला करती हैं ।
5. मध्य गंगा मैदान ( The Middle Ganga Plain ) -
इस कृषि जलवायु प्रदेश के अन्तर्गत पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा छोटा नागपुर पठार के उत्तर बिहार राज्य का अधिकांश भाग सम्मिलित है । यह ऊपरी व निचले गंगा मैदान के मध्य में स्थित होने के कारण संक्रमणीय जलवायु दशाओं से युक्त । इस प्रदेश में ग्रीष्म ऋतु गर्म व आर्द्र तथा शीतऋतु मृदुल रहती है । ग्रीष्म-त्र-ऋतु में अधिकतम तापमान 40° सेग्रे० तथा शीतऋतु में न्यूनतम तापमान 5° सेग्रे० रहता है । वार्षिक वर्षा का औसत 100 से 150 सेमी० तक रहता है । वर्षा का अधिकांश भाग ग्रीष्म ऋतु में बंगाल की खाड़ी से उठने वाली मानसून पवनों से प्राप्त होता है ।
उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें -
- यह प्रदेश चावल, मक्का, गन्ना, दलहन जैसी फसलों की कृषि के लिये अनुकूल जलवायु दशायें रखता है ।
- रबी फसलों में गेहूँ, चना, सरसों, रेपसीड, सूरजमुखी व सब्जियों की खेती होती है ।
- आम, लीची, अमरूद तथा केलों के बागानों से उष्णार्द्र फल पैदा किये जाते हैं ।
यहाँ कृषि क्रिया में मिट्टी-अपरदन, क्षारीयता व लवणता तथा जल रेचन (water logging) की समस्यायें मिलती है । जोतों का छोटा आकार व निर्धनता हरित क्रान्ति को अपनाने में बाधक है । अशिक्षा, रूढ़िवादी तथा निम्न जीवन स्तर व कुपोषण जैसी समस्याओं के कारण मध्य गंगा मैदान के कृषि विकास में बाधायें हैं ।
6. निचला गंगा मैदान ( The Lower Ganga Plain ) —
इस कृषि-जलवायु प्रदेश में पश्चिमी बंगाल राज्य, बिहार का पूर्वी भाग तथा असम की ब्रह्मपुत्र घाटी का कुछ क्षेत्र सम्मिलित है । इस प्रदेश की जलवायु उष्ण एवं आर्द्र है । न्यूनतम तापमान 15° सेग्रे० से कम नहीं जाता ।
उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें -
- यहाँ चावल व जूट की खेती के लिये आदर्श दशायें मिलती हैं । वर्षा में सामान्यत: चावल की दो से तीन फसलें तक पैदा की जाती हैं ।
- कुछ किसान शीत ऋतु में गेहूँ की कृषि भी करने लगे हैं ।
- आम, अमरूद, नारियल और जैक फ्रूट भी पैदा किये जाते हैं ।
- कृषक सामान्यतः तालाओं में मछली भी पालते हैं ।
कृषि भूमि पर जनसंख्या का अधिक दबाव होने के कारण बेरोजगारी की समस्या है । जल तल पर्याप्त ऊपर है । इस प्रदेश में अनेक स्थानों पर जलाप्लावित क्षेत्र मिलते हैं जिन्हें 'बिल' (bill) कहा जाता है ।
7. दक्षिणी-पूर्वी पठार ( The South - Eastern Region ) –
इस प्रदेश में छोटा नागपुर बघेलखण्ड तथा महानदी बेसिन के क्षेत्र सम्मिलित हैं । दक्षिण-पश्चिम में मध्य प्रदेश के बस्तर पठार से लेकर उत्तर -पूर्व में संथाल परगना के साहिबगंज तक इस प्रदेश का विस्तार है । इसमें प्राचीन आर्केइयन संरचना वाली शैलों से लेकर गोंडवाना, टरशियरी, क्वाटर्नरी तथा अभिनव काल की शैलें मिलती हैं । इस प्रदेश में 125 सेमी० तक वर्षा होती है तथा जलवायु उष्ण एवं आर्द्र प्रकार की है । वर्षा का 85% भाग जून से अक्टूबर के मध्य प्राप्त होता है । महानदी बेसिन को छोड़कर मिट्टियाँ पोषक तत्वों में निर्धन है । अधिकतर भागों में निम्न अपक्षालित (leached) लाल मिट्टी पाई जाती है । कृषित क्षेत्र में लगभग 20% भाग पर नहरों व अन्य स्रोतों से सिंचाई की जाती है । ऊबड़ - खाबड़ धरातल व जल तल की कमी के कारण सिंचाई सुविधाओं का विकास नहीं हो सका चावल इस प्रदेश की प्रधान खरीफ फसल है । छोटानागपुर पठार की उर्वर घाटियों व बेसिनों को ‘दोन' (don) कहते हैं ।
उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें -
- उच्च भूमियाँ अरहर की फसल में संलग्न हैं ।
- रबी फसलों में मसूर तथा चना का मुख्य स्थान है ।
कृषि की दृष्टि से यह प्रदेश पिछड़ा है । यहाँ के कृषक रूढ़िवादी हैं तथा ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की भयंकर समस्या है ।
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8. अरावली-मालवा उच्च भूमि ( The Aravalli - Malwa Upland ) —
पश्चिमी मध्य प्रदेश व राजस्थान के पूर्वी भाग में इस प्रदेश का विस्तार मिलता है । इस क्षेत्र में विश्व की प्राचीनतम कठोर चट्टानें मिलती हैं । वार्षिक वर्षा का औसत 50 से 100 सेमी० तक रहता है । वर्षा की अधिकांश मात्रा ग्रीष्म ऋतु में ही प्राप्त हो जाती है । इस प्रदेश के दक्षिणी पूर्वी भाग में काली रेगर (regur) मिट्टी मिलती है ।
उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें -
- इस मिट्टी में कपास की खेती सफलतापूर्वक की जाती है ।
- खरीफ के मौसम में कपास, सोयाबीन, ज्वार-बाजरा उगाये जाते हैं ।
- सिंचाई की पर्याप्त सुविधा न होने के कारण इस प्रदेश की कृषि वर्षा पर आश्रित है । कृषि में 'शुष्क खेती' (dry farming) की सभी तकनीकें अपनाई जाती हैं ।
कोटा, सवाई माधोपुर, मुरैना, ग्वालियर तथा भिण्ड जनपदों में उन्नत किस्म के बीजों को अपनाया जाता है । इन जिलों में चम्बल परियोजना की नहरों से सिंचाई की जाती है । समय से मानूसन आ जाने पर यहाँ की कृषि अच्छा उत्पादन देती है । अन्य क्षेत्रों की तुलना में इस प्रदेश की कृषि का कम विकास हुआ है । शुष्क कृषि को प्रोत्साहित करने के साथ - साथ यहाँ फलोत्पादन हेतु उद्यान कृषि एवं डेयरी व्यवसाय के विकास की पर्याप्त सम्भावनायें हैं ।
9. महाराष्ट्र पठार ( The Maharashtra Plateau ) -
महाराष्ट्र पठार कृषि जलवायु प्रदेश का विस्तार पश्चिमी मध्य प्रदेश से लेकर सम्पूर्ण महाराष्ट्र तथा पश्चिमी घाट के पूर्व तक मिलता है । इस प्रदेश में गहरी काली मिट्टी मिलती है । वर्ष भर ऊँचा तापमान (20° सेग्रे०) मिलता है । पश्चिमी घाट के वृष्टि छाया प्रदेश में स्थित होने के कारण इसे कम वर्षा प्राप्त होती है । वार्षिक वर्षा का औसत 50 से 75 सेमी० तक मिलता है । यह सूखा प्रभावित क्षेत्र है । सिंचाई सुविधायें भी अपर्याप्त है ।
उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें -
- यह प्रदेश कपास, दलहन, तिलहन, गेहूँ, चना, सोयाबीन, मक्का, ज्वार - बाजरा तथा गन्ना जैसी फसलों के लिये अनुकूल जलवायु दशायें रखता है ।
- यहाँ गन्ने की खेती सिंचित क्षेत्रों तक ही सीमित है ।
- केला, अंगूर, संतरा व चीकू जैसे फल भी उगाये जाते हैं ।
- ज्वार - बाजरा प्रमुख खाद्य फसल है ।
यह कृषि की दृष्टि से पिछड़ा क्षेत्र है । सिंचाई की कमी कृषि विकास में सबसे बड़ी समस्या
10. दकन आन्तरिक ( The Deccan Interior ) -
प्रायद्वीपीय भारत के कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु राज्यों के आन्तरिक भाग इस कृषि जलवायु प्रदेश की रचना करते हैं । यह उत्तर में आदिलाबाद जिले से दक्षिण में मुदराई जिले तक विस्तृत है । यह सामान्यतः जल की कमी वाला क्षेत्र है । यह सूखा प्रभावित क्षेत्र है ।
उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें -
- मोटे अनाज, रागी, चावल, कपास, मूंगफली तथा दलहन इस प्रदेश की प्रधान फसलें हैं ।
नदियाँ मौसमी प्रवृत्ति रखती हैं । तालाबों व नदियों पर बनाये गये जलाशयों में सिंचाई की सुविधा से कृषि फसलें उगाई जाती हैं ।
11. पूर्वी तट ( The Eastern Coast ) -
भारत के पूर्वी घाट के सहारे इस प्रदेश का विस्तार उत्तर पूर्वी उड़ीसा के बालासोर जिले से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक मिलता है । इस प्रदेश में महानदी, गोदावरी, कृष्णा व कावेरी नदियों के डेल्टाई भाग पड़ते हैं । यह एक आर्द्र क्षेत्र है । वार्षिक वर्षा का औसत 100 सेमी० और पूरे वर्ष ऊँचा तापमान पाया जाता है ।
उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें -
- चावल इस प्रदेश की प्रधान फसल है । अनुकूल दशाओं में किसान साल में चावल की दो फसलें पैदा करते हैं ।
- उड़ीसा के तटीय भाग में जूट भी उगायी जाती है ।
- आन्ध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्रों में तम्बाकू प्रमुख मुद्रादायिनी फसल है ।
- केला, नारियल, सुपारी व खट्टे रसदार फल भी बहुतायत में उगाये जाते हैं ।
इस प्रदेश की कृषि विकसित प्रकार की है । कावेरी डेल्टा में हरित क्रान्ति सफल हुई है । इस क्षेत्र में 'जलीय-खेती' (aquaculture) की पर्याप्त सम्भावनायें हैं ।
12. पश्चिमी तट ( The Western Coast ) –
इस प्रदेश का विस्तार महाराष्ट्र, कर्नाटक केरल राज्यों के तटीय भाग में है । यह एक आर्द्र प्रदेश है जिसमें वर्षा की प्रचुरता पाई जाती है । यह वर्षा अरब सागरीय मानसून पवनों द्वारा मई से अक्टूबर तक होती है । उर्वर घाटियाँ व असमतल ढाल इस कृषि - जलवायु प्रदेश के प्रमुख लक्षण हैं ।
उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें -
- चावल इस प्रदेश की प्रधान फसल है ।
- नारियल, कॉफी व चाय महत्वपूर्ण मुद्रादायिनी फसलें हैं ।
- इनके अलावा पश्चिमी घाट की पहाड़ी ढाल भूमि पर विविध प्रकार के मसाले व काजू पैदा किये जाते हैं ।
- कर्नाटक के शिमोगा, चिकमंगलूर व हासन जिलों में कॉफी व चाय उगायी जाती हैं ।
- इस प्रदेश में गर्म - मसाले, कॉफी, नारियल तथा उष्ण कटिबन्धीय फलों की खेती के विकास की बहुत अधिक सम्भावनायें हैं ।
13. गुजरात प्रदेश ( The Gujarat Region ) —
कृषि - जलवायविक व्यक्तित्व के लिहाज से गुजरात प्रदेश की अद्वितीय भौगोलिक स्थिति है । इसके तटीय भाग नम, जहाँ 100 सेमी० तक वर्षा और आन्तरिक भाग (मेहसाना व खेड़ा जिले) शुष्क हैं । इस प्रदेश के कुछ भागों में काली मिट्टी और अधिकांश भाग पर हल्की जलोढ़ मिट्टी मिलती है ।
उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें -
- इस प्रकार की जलवायु दशाओं में मूँगफली, कपास व गेहूँ की खेती लाभदायक होती है ।
- इस प्रदेश में गेहूँ की कृषि अभी हाल में ही प्रारम्भ की गई है ।
यहाँ 1960-70 के दशक में उन्नत किस्म के गेहूँ को बीजों को बोया गया । कच्छ के रेतीले - भू - भाग में निम्न कृषि उत्पादकता मिलती है । जहाँ कहीं सिंचाई की सुविधा का विकास कर लिया गया है । गेहूँ की फसल से किसानों को अच्छी उपज प्राप्त होती है ।
14. पश्चिमी राजस्थान ( The Western Rajasthan ) —
इस कृषि जलवायु प्रदेश में मेवाड़ का थार मरुस्थल और अरावली की पहाड़ियाँ सम्मिलित हैं । थार मरुस्थल भारत - पाक सीमा से प्रारम्भ होता है जो एक शुष्क रेतीला क्षेत्र है । अरावली की श्रेणियाँ प्राचीन क्वार्ट्जजाइट, कांग्लोमरेट व ग्रिट शैलों से निर्मित हैं । थार मरुस्थल में बालु के स्तूपों (sanddunes) की भरमार है । इन स्तूपों का स्थानान्तरण भी होता रहता है । थार मरुस्थल में पशुचारण की क्रिया महत्व रखती है । यहाँ पशुओं की संख्या के आधार पर ही उनका सामाजिक - आर्थिक स्तर मापा जाता है । ऊँट, बकरी व भेड़ उनके पालतू पशु होते हैं , जिनसे लोगों को ऊर्जा, दूध, खाद, खाल, हड्डियाँ व ऊन प्राप्त होती है । इन्दिरा गाँधी नहर के निर्माण से थार मरुस्थल की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में तेजी से परिवर्तन हो रहा है । राजस्थान के गंगानगर व बीकानेर जनपदों में सिंचाई के कारण भूमि का गहन उपयोग किया जाता है । लवणता और जल रेचन की समस्यायें भी हैं ।
15. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह ( The Islands of Andaman & Nicobar ) —
अंडमान व निकोबार द्वीप समूह बंगाल की खाड़ी में स्थित हैं । यहाँ लगभग 100 सघन वनस्पति वाले द्वीप हैं जिनकी जलवायु उष्ण कटिबन्धीय है । इन द्वीपों की जलवायु में ऋत्विक अन्तर बहुत कम मिलता है । पूरे साल 80% से अधिक आर्द्रता व 23° सेग्रे 0 से 31° सेग्रे० तक तापमान मिलता है । यहाँ मई से अक्टूबर के मध्य दक्षिणी पश्चिमी मानसून तथा नवम्बर से जनवरी तक उत्तरी पूर्वी मानसून पवनों से वर्षा होती है । इस प्रकार इन द्वीपों में प्रचुर मात्रा में वर्षा होती है ।