पादप हार्मोन क्या है (plant hormone in hindi) - पौधों में इनका कार्य एवं महत्व लिखिए

पादप हार्मोन (plant hormone in hindi) वह कार्बनिक योगिक होते हैं जो पौधों की वृद्धि एवं विकास को नियंत्रित करते हैं ।

पौधों में पाए जाने वाले हार्मोन को वृद्धि हार्मोन्स (जो पौधों की वृद्धि को उत्तेजित करते हैं) अथवा वृद्धि नियंत्रक (जो पौधों की वृद्धि को नियंत्रित करते हैं) कहते हैं ।

पादप हार्मोन क्या है | definition of plant hormone in hindi

पादप हार्मोन की परिभाषा - "वह कार्बनिक यौगिक जो पौधों में स्वयं प्राकृतिक रीति से संश्लेषित होते हैं और जो अपने उत्पत्ति स्थान से पौधे के अन्य भागों में स्थानांतरित होकर उन में वृद्धि एवं होने वाली देहि अभी क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं पादप हार्मोन (plant hormone in hindi) कहलाते हैं ।"

पादप हार्मोन पौधों के लिए क्यों आवशयक है?

पादप हार्मोन के कार्य - पादप हॉर्मोन्स की अल्प मात्रा ही पौधों के विकास एवं वृद्धि नियंत्रण के लिए पर्याप्त होती है । हॉर्मोन्स की तुलना उत्प्रेरकों से की जा सकती है क्योंकि उत्प्रेरकों की भाँति हॉर्मोन्स भी किसी प्रक्रम को आरम्भ नहीं कर सकते ।

इनकी अल्प मात्रा ही पर्याप्त होती है और इनकी क्रियायें विशिष्ट (pecific) होती हैं । पौधों में विभाजन , वृद्धि , जड़ों व तनों का उत्पन्न होना, पत्तियों व पुष्पों का बनना और फल की वृद्धि एवं विकास आदि मुख्य क्रियाएँ पादप हॉर्मोन्स द्वारा ही नियंत्रित होती हैं ।

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1. वृद्धि करने वाले पादप हार्मोन -

  • ऑक्सिन ( Auxin )
  • जिबरेलीन ( Gibberelines )
  • साइटोकिनिन ( Cytokinen)

2. वृद्धि को रोकने वाले (वृद्धिरोधक) पादप हार्मोन -

  • इथाइलीन ( Ethylene )
  • एब्ससिसिक एसिड ( Abscisic acid )
  • मलिक हाइड्रोजाईट ( MH )

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पादप हार्मोन क्या है (plant hormone in hindi) - पौधों में इनका कार्य एवं महत्व लिखिए 

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पौधों के लिए मुख्य पादप हार्मोन निम्न हैं -


1. ऑक्सिन ( Auxin ) -

सन् 1933 ई० में कोगल (Kogl) तथा सहयोगियों ने मानव मूत्र से एक सक्रिय यौगिक पृथक् किया जिसका नाम ऑक्सिन 'a' रखा । यह यौगिक पादप वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ ।

इसके पश्चात् उन्होंने मक्का के भ्रूण के तेल से ऑक्सिन a के समान एक अन्य यौगिक पृथक् किया जिसका नाम इन्होंने ऑक्सिन 'b' रखा ।

ये दोनों यौगिक साइक्लोपेन्टीन (cyclopentene) व्युत्पन्न यौगिक होते हैं ।

ऑक्सिन के अनुप्रयोग एवं कार्य -

ऑक्सिन a तथा b निर्बल क्लोरोफॉर्म में घुलनशील होते हैं । ये अम्ल होते हैं । ये जल, एथिल ऐल्कोहॉल, ईथर तथा शुद्ध अवस्था में महीने तक रखने या कैरोटिनॉइड्स की उपस्थिति में प्रकाश द्वारा निष्क्रिय हो जाते हैं । ये कलिका तथा नई पत्तियों में मुक्तावस्था तथा प्लाज्मा प्रोटीन्स के साथ संयुक्त अवस्था में होते हैं । यहाँ से ये उच्च पौधों के अन्य सभी अगों में स्थानान्तरित होते रहते हैं ।

इन्डोल-3 ऐसीटिक एसिड (NAA)

सन् 1934 ई० में कोमल तथा सहयोगियों ने मूत्र में एक अन्य वृद्धि उत्तेजक यौगिक पृथक किया । यह पदार्थ इन्डोल-3 ऐसीटिक एसिड (NAA) (विषम ऑक्सिन) होता है ।

एक मोनो भास्मिक (monobasic) अम्ल है । यह क्षारो के प्रति स्थायी किन्तु अम्ल तथा ताप से नष्ट हो जाता है । यह हॉर्मोन मुख्य रूप से पौधों में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है ।

इसके अलावा, इन्डोल-3 ऐसीटिक अम्ल से सम्बन्धित संरचना वाले कृत्रिम हार्मोन्स निम्न है -

  • इन्डोल-3 ब्युटिरिक अम्ल
  • फेनिल ऐसीटिक अम्ल
  • 1-नैफ्थेलीन ऐसीटिक अम्ल
  • 2-नैफ्थॉक्सी ऐसीटिक अम्ल
  • फिनॉक्सी ऐसीटिक अम्ल आदि हैं ।

इन यौगिकों में हॉर्मोन्स गुण बहुत कम है । वास्तव में ये हॉर्मोन्स नहीं हैं क्योंकि ये रासायनिक यौगिक हैं, जैविक नहीं । ये यौगिक हॉर्मोनों के निर्माण में उत्तेजक (stimulant) का कार्य करते हैं ।


2. जिबरेलीन/GA 3 ( Gibberelines ) -

इस समूह के हॉर्मोन्स शैवाल, फर्न, जिम्नोस्पर्म तथा एन्जियोस्पर्म आदि वर्गों के पौधों में पाए जाते हैं । ये कुछ बैक्टीरियाओं व कवकों में भी पाए जाते हैं । ये पौधों में तने के शीर्ष, बाल, पत्तियों तथा अंकुरण करते हुए भ्रूण आदि वर्धनीय भागों में अधिक मात्रा में होते हैं ।

पोधों में जिबरेलीन के प्रमुख कार्य -

  • तने का दीर्घाकरण - जिबरेलीन के छिड़काव से तना शीघ्रता से बढ़ता है । इसके छिड़काव से बौने पौधों की लम्बाई में वृद्धि हो जाती है ।
  • बीजों का अंकुरण - धान्य फसलों तथा सलाद में जिबरेलीन के प्रयोग से बीजों का अंकुरण शीघ्रता से होता है ।
  • चौड़ी पत्तियाँ - इनके प्रयोग से मटर, टमाटर, सेम, खीरा तथा बन्दगोभी की पत्तियाँ लम्बी एवं चौड़ी हो जाती हैं ।
  • पुष्पन (flowering) - इनके प्रयोग से पौधों में फूल शीघ्र बनते हैं ।
  • प्रसुप्ति (dormancy) दूर करना - आलू के पौधों पर इसके प्रयोग से शीतकालीन कलिकाओं की सुप्तावस्था समाप्त हो जाती है ।


3. इथाइलीन ( Ethylene ) – 

एथिलीन, C2H4 एक असन्तृप्त हाइड्रोकार्बन है । एथिलीन एक गैस होती है ।

इथाइलीन पादप हॉमोन के रूप में निम्न प्रकार उपयोगी है -

  • एथिलीन फलों के पकने में सहायक होती है । एथिलीन पौधों के तने के अग्रभाग में बनती है जो फूलों में विसरित होकर उन्हें पकाने में सहायता करती है ।
  • यह ऑक्सिन की भाँति अधिकांश पौधों में पुष्पन (flowering) को कम करती परन्तु यह अनन्नास में पुष्पन को तीव्र करती है ।
  • यह नर पुष्पों की संख्या में कमी और मादा पुष्पों की संख्या में वृद्धि करती है ।
  • यह पत्तियों, पुष्पों तथा फलों के विगलन (abscission) को तीव्र करती है ।
  • एथिलीन तने की लम्बाई के लिए वृद्धिरोधक होती है ।

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पादप हॉमोन्स का कृषि में महत्व | Importance of plant hormones in hindi


पादप हॉर्मोन्स का कृषि में निम्न प्रकार विशेष महत्व है -

  • ये जड़, तना पत्ती, फूल तथा फल आदि के विकास में सहायक होते हैं ।
  • विषम ऑक्सिन (hetero-auxin) के द्वारा कलम लगाने में जड़े उत्पन्न होती हैं ।
  • ये संग्रहण में फल व सब्जियों को अकुरित नहीं होने देते ।
  • ये खेती के खरपतवार नष्ट करने में काम आते हैं ।
  • पेड़ से पत्तियाँ, फूल तथा फल समय से पूर्व न गिरें, इस पर हॉर्मोन्स नियन्त्रण करते हैं ।
  • पौधों की वृद्धि अगों में बनने वाले ऑक्सिन पार्श्व कलिकाओं (lateral buds) की वृद्धि को रोकते हैं ।
  • ऑक्सिन आगन्तुक कलिकाओं के उत्पन्न होने को प्रोत्साहित कर सकते हैं ।
  • परिपक्व पत्तियों में फ्लोरिजिन (florigen) नामक हार्मोन बनता है ।
  • यह वृद्धि करने वाले स्थानों पर स्थानान्तरित हो जाता है और पुष्प बनने में भी सहायक होता है ।
  • ये पकने की क्रिया को बढ़ाते हैं और फसल के पकने की अवधि कम करते हैं ।


पादप हॉर्मोन्स को प्रभावित करने वाले कारक लिखिए?


पादप हॉर्मोन्स की सक्रियता को प्रभावित करने वाले कारक -

1. हॉर्मोन्स विशिष्टता ( Hormone Specificity ) -

प्रत्येक पादप हॉर्मोन अपनी विशिष्टता रखता है । जड़ों के विकास के लिए, कलिकाओं के विकास के लिए, पुष्पन के लिए, सुसुप्तावस्था विकसित करने तथा उसे समाप्त करने के लिए प्रयोग किए जाने वाले हॉर्मोन्स अपनी विशिष्टता के अनुसार ही क्रियाशील होते हैं ।


2. पादप विशिष्टता ( Plant Specificity ) –

किसी हॉर्मोन्स की सक्रियता विभिन्न फसलों के अतिरिक्त एक ही फसल की विभिन्न प्रजातियों की विशिष्टता से प्रभावित होती है ।


3. हॉर्मोन्स का सान्द्रण ( Concentration of Hormones ) -

हॉर्मोन्स का सान्द्रण बढ़ने से हॉर्मोन्स की सक्रियता बढ़ जाती है परन्तु एक उचित सान्द्रण के पश्चात् सान्द्रण बढ़ाने पर कोई अनुकूल प्रभाव नहीं पड़ता है ।


4. कलम किए हुए टुकड़ों की लम्बाई ( Length of Cuttings ) -

कलम किए हुए टुकड़ों की लम्बाई एक सीमा से कम होने पर हॉर्मोन्स की सक्रियता कम हो जाती है परन्तु लम्बे टुकड़ों पर इसके प्रयोग से जड़ों एवं कलिकाओं का विकास तीव्रता से होता है ।


5. रोपण के समय कलम की दिशा ( Direction of Cuttings during Transplantation ) -

यदि कलम के ऊपरी भाग को मृदा में तथा निचले भाग को वायु रखकर रोपण किया जाएं तो सीधे तरीके से रोपण की तुलना में जड़ों एवं कलिकाओं का विकास मन्द गति से होता है ।


6. पौधे का अंग एवं पौधे के मुख्य शरीर से इसकी दूरी ( Part of the Plant and its Distance from Main Plant Body ) -

प्रयोग किए जाने वाले हॉर्मोन्स की सक्रियता पौधे के विभिन्न भागों पर प्रयोग करने पर निश्चित रूप से भिन्न होती है । यह सक्रियता पौधे के उस भाग तथा मुख्य शरीर से इस भाग की दूरी पर निर्भर करती है ।


7. पौधे की आयु ( Age of Plant ) -

हॉर्मोन्स की सक्रियता प्रयुक्त पौधे की आयु पर निर्भर करती है । कम आयु के पौधों पर हॉर्मोन्स की सक्रियता अधिक तथा अधिक आयु के पौधों पर इसकी सक्रियता कम होती है ।


8. पौधे का प्रकाश काल ( Photoperiod of the Plant ) -

पौधों के लिए उपलब्ध प्रकाश काल बढ़ने से हॉर्मोन्स की सक्रियता बढ़ जाती है तथा इसके कम होने पर हॉर्मोन्स की सक्रियता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ।


9. स्थानीय तापक्रम -

प्रारम्भ में तापक्रम में वृद्धि करने पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है परन्तु बाद में एक निश्चित ताप के पश्चात् वृद्धि करने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ।


10. आर्द्रता तथा वर्षा ( Humidity and Rainfall ) -

मौसम में आर्द्रता एवं वर्षा का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता और हॉर्मोन्स की सक्रियता कम हो जाती है ।


11. प्रयुक्त हॉर्मोन्स की गतिशीलता -

प्रयोग किए जाने वाले हॉर्मोन्स की गतिशीलता कम होने पर सक्रियता कम तथा अधिक होने पर सक्रियता बढ़ जाती है ।


12. हॉर्मोन्स प्रयोग करने की विधि ( Mode of Hormone Application ) -

किसी भी हॉर्मोन्स की सक्रियता उसके प्रयोग करने की विधि पर भी निर्भर करती है । इन्जेक्शन विधि अत्यधिक प्रभावी, छिड़काव (spraying) विधि अधिक प्रभावी, घोल का लेप करना साधारण विधि तथा चूर्ण को सिंचाई जल या मृदा में प्रयोग करना कम प्रभावी विधि होती हैं ।

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