कृषि अर्थशास्त्र (agriculture economics in hindi) कला एवं विज्ञान दोनों है ।
संक्षेप में कृषि अर्थशास्त्र (agriculture economics in hindi) एक विज्ञान है जो अर्थशास्त्र की पद्धतियों और नियमों का (चयन के सिद्धांत का) व्यावहारिक विज्ञान की हैसियत से कृषि कार्यों में में प्रयोग होता है ।
इसके अतिरिक्त कृषि समस्याओं का समाधान अधिकतम उत्पादन एवं उनके न्यायोचित विवरण को कृषि अर्थशास्त्र (agricultural economics in hindi) ही प्रस्तुत करता है ।
कृषि अर्थशास्त्र का अर्थ | meaning of agriculture economics in hindi
यदि कृषि अर्थशास्त्र का अर्थ (meaning of agricultural economics in hindi) सीमित साधनों के चुनाव और उनके मितव्ययितापूर्ण उपयोग से लिया जाए तो अमेरिकी अर्थशास्त्र प्रो० टेलर के अनुसार -
विशेष रूप से कृषि अर्थशास्त्र (agricultural economics in hindi) भूमि, श्रम, कृषि के औजार, फसलें, पशुपालन व्यवसाय आदि को चुनने तथा इन सब शाखाओं को उचित अनुपात में मिलाने के बारे में अध्ययन कराता है ।
कृषि अर्थशास्त्र (agriculture economics in hindi) केवल उत्पादन अर्थशास्त्र का ही विवेचन नहीं करता है, बल्कि धन को समाज के विभिन्न वर्गों में न्यायपूर्ण वितरण करने की समस्याओं का भी अध्ययन कर आता है ।
कृषि अर्थशास्त्र की परिभाषा | definition agricultural economics in hindi
कृषि अर्थशास्त्र (agriculture economics in hindi) एक व्यापारिक विज्ञान के रूप में कृषि समस्याओं का अध्ययन और समाधान प्रस्तुत करता है ।
कृषि अर्थशास्त्र की प्रमुख परिभाषाएं -
प्रो० ई० ओ० हैड़ी के अनुसार - "कृषि अर्थशास्त्र को ऐसा विज्ञान मानते हैं जो चयन के सिद्धांतों के आधार पर पूंजी सर और व्यवस्था आदि साधनों को खेती-बाड़ी उद्योग में उपयोग करते हैं ।"
प्रो० ग्रे० के अनुसार - "कृषि अर्थशास्त्र गृह विज्ञान है जिसमें अर्थशास्त्र के सिद्धांतों एवं विधियां कृषि उद्योग की विशेष परिस्थितियों में लागू की जाती है ।"
प्रो० ग्राॅस एवं वाॅलेस के अनुसार - "कृषि अर्थशास्त्र, अर्थशास्त्र के सामाजिक विज्ञान का एक पहलू है जिसमें कृषि संबंधी समस्याओं के सभी पहलुओं का अध्ययन किया जाता है ।"
कृषि अर्थशास्त्र किसे कहते है? | agriculture economics in hindi
कृषि अर्थशास्त्र (agriculture economics in hindi) में साधनों को उचित अनुपात में मिलाना, उत्पादन करना, उत्पादन का समाज में न्यायोचित वितरण करना आदि के अध्ययन को सम्मिलित करते हैं ।
कृषि एक आधारभूत, प्राचीन तथा विस्तृत व्यवसाय है । मानव की मूलभूत आवश्यकता - रोटी और कपड़ा की पूर्ति कृषि से होती है, इसलिये कॉलिन क्लार्क ने कृषि एवं कृषि से सम्बन्धित क्रियाओं को प्राथमिक व आधारभूत उद्योग कहा है ।
मानव सभ्यता के प्रादुर्भाव के साथ - साथ इसका भी जन्म हुआ है, तथा विश्व जनसंख्या का सबसे बड़ा भाग कृषि पर आश्रित है, इसलिये आर कॉहन ने कृषि को प्राचीनतम और विस्तृत व्यवसाय कहा है ।
कृषि अर्थशास्त्र क्या है अर्थ, परिभाषा एवं इसकी प्रकृति व कार्य क्षेत्र |
"कृषि अर्थशास्त्र मानव द्वारा कृषि से धन प्राप्त करने और उसको व्यय करने में उत्पन्न होने वाली क्रियाओं के सम्बन्धों का अध्ययन है ।"
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कृषि अर्थशास्त्र की प्रकृति | nature of agriculture economics in hindi
कृषि अर्थशास्त्र की प्रकृति या स्वभाव को जानने के लिये यह देखना होगा कि कृषि अर्थशास्त्र विज्ञान है या कला अथवा दोनों है । अतः सर्वप्रथम हमें विज्ञान और कला का अर्थ जानना आवश्यक है ।
कृषि अर्थशास्त्र की प्रकृति -
- कृषि अर्थशास्त्र विज्ञान के रूप में
- कृषि अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान के रूप में
- कृषि अर्थशास्त्र आदर्श विज्ञान के रूप में
- कृषि अर्थशास्त्र कला के रूप में
1.कृषि अर्थशास्त्र विज्ञान के रूप में
कृषि अर्थशास्त्र एक विज्ञान है ।
कृषक का जीवन एक वैज्ञानिक का जीवन है । वह कृषि में अनेक प्रयोग करता है, कारण प्रभाव में सम्बन्ध स्थापित करता है । यदि उत्पत्ति के साधन कार्य करते हैं तो उन्हें प्रतिफल भी मिलता है । मिट्टी की उर्वरता व उसके गुण के आधार पर किसान फसल का चुनाव करता है । कोई किसान चावल इसलिये बोता है क्योंकि वहाँ वर्षा व सिंचाई सुविधा पर्याप्त है, तथा मिट्टी व जलवायु उसकी पैदावार के अनुरूप हैं ।
कृषि अर्थशास्त्र के सिद्धान्त व नियम -
- उत्पत्ति के नियम
- मांग का नियम
- मजदूरी का सिद्धान्त आदि ।
इसका उत्पत्ति हास नियम सार्वभौमिक और सार्वकालिक है । पुनश्चः, इसका अध्ययन क्रमबद्ध और वैज्ञानिक है तथा अन्य सामाजिक विज्ञानों जैसे अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, सांख्यिकी आदि से घनिष्ठ सम्बन्ध है ।
कृषि अर्थशास्त्र, अर्थशास्त्र से जो एक सामाजिक विज्ञान है, की एक शाखा है । कृषि अभियान्त्रिकी एक विज्ञान के रूप में विकसित हो चुका है ।
प्रो० हैडी स्नॉड ग्रास और वालेस, ग्रे आदि कृषि अर्थशास्त्र (agriculture economics in hindi) को एक विज्ञान मानते है, जैसा कि लेखकों द्वारा वर्णित परिभाषाओं से स्पष्ट होता है । इस प्रकार निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि कृषि अर्थशास्त्र एक विज्ञान है ।
2. कृषि अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान के रूप
यह एक वास्तविक विज्ञान के रूप में कृषक और कृषि की वस्तु स्थिति को स्पष्ट करता है - अच्छी खाद डालते हैं तो उत्पादन बढ़ता है, इस प्रकार के कार्यकारण सम्बन्ध को स्पष्ट करता है ।
यदि कोई किसान लगातार भूमि पर खेती करता रहता है, उसे पड़ती नहीं छोड़ता है तथा खाद आदि का प्रयोग भी नहीं करता है, तो उस भूमि से प्राप्त उपज घटती जायेगी, वह बंजर भूमि में बदल जाती है ।
संक्षेप में कृषि अर्थशास्त्र (agricultural economics in hindi) वास्वतिक विज्ञान के रूप में कारण के आधार पर परिणाम की जानकारी करवा देती है ।
3. कृषि अर्थशास्त्र आदर्श विज्ञान के रूप में
आदर्श विज्ञान के रूप में कृषि अर्थशास्त्र (agricultural economics in hindi) किसान को भूमि के अनुकूलतम उपयोग की सलाह देता है, अधिक उपज प्राति के उपाय बतलाता है, भूमि के छोटे - छोटे टुकड़े करने से होने वाली हानि की ओर संकेत करता है ।
4. कृषि अर्थशास्त्र कला के रूप में
कृषि अर्थशास्त्र कला भी है क्योंकि सम्पूर्ण कृषि - कार्य निर्माणात्मक और सृजनात्मक होता है । किसान प्रतिदिन खाद्यान्न, फल, दूध आदि का निर्माण करता है, निर्जीव में जीवन डालता है ।
Prof. B.N.Pal के अनुसार - किसान सर्वप्रथम एक कलाकार बना, दीर्घकाल में वह एक वैज्ञानिक में बदल गया । कृषि कला पहले है विज्ञान बाद में ।
ग्रॉस और वॉलेस ने कृषि अर्थशास्त्र को सामाजिक विज्ञान का व्यावहारिक पहलू (Applied phase of Social Science) कहा है ।
भूमि एवं विभिन्न कृषि संसाधनों का कृषि में प्रयोग करना कृषि अर्थशास्त्र (agricultural economics in hindi) के कला स्वरूप को स्पष्ट करता है । कृषि अर्थशास्त्री राष्ट्रीय नियोजन एवं कृषि कार्यक्रमों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है ।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि कृषि अर्थशास्त्र (agriculture economics in hindi) कला और विज्ञान दोनों है । इसमें व्यावहारिकता का अंश अधिक है क्योंकि कृषि कार्य प्रयोगात्मक एवं व्यावहारिक है । कृपक और कृषि व्यवसाय की समस्याओं के कारण और उनका समाधान कृषि अर्थशास्त्र के अध्ययन में निहित है ।
कृषि अर्थशास्त्र (agricultural economics in hindi) को मूलत: व्यावहारिक किन्तु अंशत: वास्तविक विज्ञान कहा जा सकता है ।
कृषि अर्थशास्त्र के अध्ययन की क्या उपयोगिता है?
प्रत्येक विषय के अध्ययन का महत्व उसकी उपयोगिता में निहित होता है ।
कृषि अर्थशास्त्र की प्रमुख उपयोगिता -
- भूमि उपयोग नियोजन
- उचित फसलों का चयन
- कृषि उपज के विपणन में सहायत
- कृषि साख की व्यवस्था
- अन्य उपयोगिताएं
कृषि व्यवसाय की समस्याओं के समाधान की दृष्टि से तथा कृषि के बढ़ते हुये महत्व की दृष्टि से कृषि अर्थशास्त्र के अध्ययन की आवश्यकता निरन्तर बढ़ती जा रही है ।
ग्राम्य जीवन की प्रगति तथा कृषि - प्रधान अर्थव्यवस्था की उन्नति कृषि पर निर्भर है तथा कृषि की प्रगति एवं उसकी समस्या का समाधान कृषि अर्थशास्त्र में निहित है ।
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कृषि अर्थशास्त्र के अध्ययन की उपयोगिता पर विभिन्न दृष्टिकोणों से प्रकाश डाला जा सकता है -
1. भूमि उपयोग नियोजन -
भूमि जो सीमित है, पूर्ति बेलोच है, तथा जिसके वैकल्पिक उपयोग है, के उचित नियोजन की जानकारी कृषि अर्थशास्त्र (agricultural economics in hindi) से प्राप्त होती है । जिन फसलों की माँग व कीमत बाजार में अधिक होती है, उन्हीं फसलों का उत्पादन किसान कोकरना चाहिये तथा कितने क्षेत्र में, यह जानकारी इसके अध्ययन से मिलती है । किसान अपनी आवश्यकता के अनुरूप उपलब्ध भूमि का प्रयोग अनाज, दाल, तिलहन, फल, नकद फसल व पशु चारे में करके अधिकतम लाभ प्राप्त करता है ।
2. उचित फसलों का चयन -
किसान कृषि अर्थशास्त्र के अध्ययन से भूमि के गुण, सिंचाई सुविधा की उपलब्धि तथा विभिन्न फसलों की मांग, पूर्ति व कीमत को ध्यान में रखकर उचित किस्म की फसल का चुनाव करने में सफल हो पाता है । अल्पावधि में पकने वाले बीजों के प्रयोग से वर्ष में तीन बार फसल प्राप्त कर सकता है ।
3. कृषि उपज के विपणन में सहायता -
विपणन का अर्थशास्त्र कृषि अर्थशास्त्र की एक शाखा है जो कृषि उपज की बिक्री में उत्पन्न होने वाली समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है । विपणन के अर्थशास्त्र के अध्ययन से किसान को सहकारी विपणन व्यवस्था, भण्डारण व्यवस्था, विभिन्न कृषि उत्पादनों के प्रचलित व सरकारी मूल्य की जानकारी प्राप्त होती है, जिससे व्यापारी एवं बिचौलिये अनावश्यक कटौतियाँ नहीं कर पाते हैं । विपणन के अर्थशास्त्र से उत्पादन और उपभोक्ता दोनों को लाभ मिलता है । उचित मात्रा में उपज का वितरण विभिन्न स्थानों पर किया जाता है ।
4. कृषि साख की व्यवस्था -
कृषि अर्थशास्त्र में कृषि वित्त का विस्तृत अध्ययन किया जाता है । साख की आवश्यकता का अनुमान उसकी पूर्ति के विभिन्न स्त्रोत व प्रचलित ब्याज दर की जानकारी सरकार को प्राप्त होती है, उसके आधार पर सरकार या केन्द्रीय बैंक कृषि साख की व्यवस्था उचित ब्याज पर पर करती है । सहकारी साख समस्याओं व अन्य ऋण प्रदान करने वाली संस्थाओं की जानकारी किसानों को प्राप्त होती है ।
इसके अतिरिक्त कृषि अर्थशास्त्र की अन्य उपयोगिता निम्नलिखित है -
उन्नत बीजों, उपकरणों तथा उन्नत उत्पादन विधियों की जानकारी कृषकों तथा कृषि स्नातकों को प्राप्त होती है ।कृषकों तथा कृषि स्नातकों की सौदेबाजी की शक्ति बढ़ती है जिससे उनकी फसल का उचित मूल्य मिल जाता है ।
कृषि कानूनों, नियमों तथा कृषि विकास योजनाओं की जानकारी किसानों को मिलती है ।
किसानों का दृष्टिकोण व्यापक तथा वैज्ञानिक बनता है ।
अन्त में यह कहा जा सकता है कि कृषि अर्थशास्त्र (agricultural economics in hindi) के अध्ययन से कृषि पदार्थों के उत्पादन उनका समाधान किया जा सकता है । वितरण, मूल्य, कर - निर्धारण, कृषि श्रमिकों की मजदूरी आदि सभी समस्याओं का अध्ययन और उनका समाधान किया जा सकता है ।
कृषि अर्थशास्त्र का क्या महत्व है? | Importance of agriculture economics in hindi
आर्थिक विकास को प्राप्त करना प्रत्येक सरकार का एक अनिवार्य धर्म है । आर्थिक विकास के लिये आर्थिक नियोजन एक अनिवार्यता है ।
कृषि अर्थशास्त्र का आर्थिक विकास में महत्व -
- कृषि विकास के लिये उचित नीति निर्माण में महत्व
- अनुकूलतम साधन संयोग एवं उत्पादन वृद्धि
- उन्नत किस्म के बीज तथा उत्पादन विधि से उत्पादन वृद्धि
- कृषक और व्यापारी वर्ग को लाभ
नियोजित आर्थिक विकास की सफलता के लिये उचित नीतियों प्रक्रियाओं तथा प्राथमिकताओं का चयन एवं निर्माण आवश्यक है ।
उचित नीतियों, प्रक्रियाओं तथा प्राथमिकताओं के निर्माण और क्रियान्वयन में कृषि अर्थशास्त्र के अध्ययन का महत्व निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है -
1. कृषि विकास के लिये उचित नीति निर्माण में महत्व -
कृषि अर्थशास्त्र समय और परिस्थिति के अनुरूप कृषि विकास के लिये नीति निर्धारण में सरकार को सहायता प्रदान करती है । कृषि समस्याओं की जानकारी तथा उनके समाधान हेतु उचित दिशा निर्देश प्रदान करती है । कृषि पदार्थों के आयात - निर्यात सम्बन्धी नीति, कर निर्धारण, साख व्यवस्था, कृषि अनुसंधान आदि विषयों पर यथोचित नीति निर्माण में कृषि अर्थशास्त्र का अध्ययन महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है ।
2. अनुकूलतम साधन संयोग एवं उत्पादन वृद्धि -
उत्पादन का अर्थशास्त्र, कृषि अर्थशास्त्र का एक भाग है । कृषि एक उद्योग है । उत्पत्ति के विभिन्न साधन जो सीमित तथा वैकल्पिक उपयोग वाले है, के चुनाव तथा उनके उचित साधन संयोग से कृषक न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है ।
3. उन्नत किस्म के बीज तथा उत्पादन विधि से उत्पादन वृद्धि -
कृषि अर्थशास्त्र के अध्ययन से उत्पादकों को नये - नये सुधरे बीजों, यन्त्रों की तथा विधियों होती है । इससे उनका उत्पादन बढ़ता है । आर्थिक विकास में मदद मिलती है ।
4. कृषक और व्यापारी वर्ग को लाभ -
कृषि अर्थशास्त्र के अध्ययन कृषक से व्यापारी अपने व्यावसायिक कार्यों का संचालन न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन प्राप्त करके करते हैं । उन्हें बड़े पैमाने के उत्पादन के लाभ - हानि, उत्पत्ति के नियम, आन्तरिक तथा बाहरी किफायतों की जानकारी मिलती है ।
इसके अतिरिक्त कृषि अर्थशास्त्र का निम्नलिखित महत्व है -
- कृषि - क्षेत्र में व्याप्त बेरोजगारी, छिपी बेरोजगारी तथा अर्थिक असमानताओं जैसी समस्याओं के समाधान में कृषि अर्थशास्त्र के अध्ययन से सहायता मिलती है ।
- कृषकों, कृषि स्नातकों तथा कृषि प्रसार कार्यकर्ताओं के लिये कृषि अर्थशास्त्र का अध्ययन अत्यन्त आवश्यक है । इसके अध्ययन से ये उचित आर्थिक नीति निर्धारण कर सकते हैं । आर्थिक समस्याओं के समाधान में दक्ष बनते हैं ।
- प्राथमिकताओं के निर्धारण में सरकार को सहायता मिलती है ।
- बजट निर्माण तथा कृषि पर कर - निर्धारण करने में कृषि अर्थशास्त्र का अध्ययन सरकार एवं अधिकारियों को लाभदायक जानकारी प्राप्त
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कृषि अर्थशास्त्र का कार्य क्षेत्र | scope of agricultural economics in hindi
किसी भी विषय के क्षेत्र का विस्तृत अध्ययन करने के लिए मुख्यत: चार प्रश्नों पर विचार करना आवश्यक होता है ।
अत: कृषि अर्थशास्त्र के क्षेत्र को जानने के लिये भी उन्ही चार प्रश्नों का अध्ययन आवश्यक है -
- कृषि अर्थशास्त्र की विषय - वस्तु
- कृषि अर्थशास्त्र का स्वभाव या प्रकृति
- कृषि अर्थशास्त्र की सीमाएं
- कृषि अर्थशास्त्र का अन्य विज्ञानों से संबंध
1. कृषि अर्थशास्त्र की विषय - वस्तु
कृषि एक विस्तृत व्यवसाय है, अत: कृषि अर्थशास्त्र की विषय - वस्तु भी विस्तृत है । इनमें कृषि रसायन, पशु विज्ञान, कृषि अभियान्त्रिकी, पौध संरक्षण, भूमि एवं मिट्टी आदि सभी का अध्ययन सम्मिलित है ।
ग्रॉस और वॉलेस ने कृषि अर्थशास्त्र की विषय वस्तु को निम्न वर्गों में विभक्त किया है -
- कृषि का फार्म क्षेत्र
- फार्म के अतिरिक्त कृषि का क्षेत्र
- अन्य सम्बन्धित सेवा उद्योग इसमें
- उत्पादन का अर्थशास्त्र
- भूमि का अर्थशास्त्र
- विपणन का अर्थशास्त्र
- कृषि श्रमिक
- ग्रामीण समाजशास्त्र
- कृषि वित्त
- कृषि आयोजन
( i ) कृषि का फार्म क्षेत्र -
इसमें खेती वाली कृषि सम्बन्धी क्रियायें सम्मिलित होती हैं ।
( ii ) फार्म के अतिरिक्त कृषि का क्षेत्र -
कृषि उपकरण बनाने वाले उद्योग, सिंचाई के औजार, मशीनें, रासायनिक खाद, ट्रैक्टर के लिये तेल आदि की पूर्ति से सम्बन्धित सभी छोटे - बड़े उद्योग आते हैं । व्यावसायिक बैंक एवं सहकारी साख संस्थायें भी सम्मिलित होती हैं ।
इसमें कृषि उपज या उत्पादन का विवरण करने की प्रक्रिया में सहायक उद्योग सम्मिलित होते हैं जैसे कृषि मण्डियाँ व परिवहन के साधन आदि ।
( iii ) अन्य सम्बन्धित सेवा उद्योग -
- शिक्षण संस्थायें जैसे विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय, कृषि प्रशिक्षण संस्थान, पुस्तकें, पत्रिकायें आदि ।
- संचार व्यवस्था - कृषि कार्य में उपयोगी संचार साधन ।
- अनुसंधान - नवीन तकनीक, उच्च किस्म के बीज, दवा, उपकरण आदि के अनुसंधान कार्यों से सम्बन्धित विषयों का समावेश है ।
- कृषि कार्य की सरकारी सेवायें, कृषि कार्य में प्रयुक्त सरकारी मशीनरी, कृषि नीति निर्धारण समितियाँ, कृषि विकास हेतु संगठित सरकारी संस्थायें ।
चूँकि अर्थव्यवस्था विकासशील है । अत: कृषि अर्थशास्त्र की विषय सामग्री भी विकासशील है । इस दृष्टि से कृषि अर्थशास्त्र की विषय सामग्री को सुव्यवस्थित, अधिक वैज्ञानिक, प्रगतिशील और सुस्पष्ट रूप में अध्ययन कर सकते हैं ।
( iv ) उत्पादन का अर्थशास्त्र -
कृषि में उत्पादन कृषि कार्य उद्योगों से भिन्न तरीके से होता है । उद्योग की भाँति क्रियाओं को चाहरदीवारी में सीमित नहीं किया जा सकता है । प्रकृति का सर्वाधिक प्रभाव कृषि पर होता है । कृषि उत्पादन भूमि, वर्षा, जलवायु उत्पादन के तरीके, उनमें सुधार आदि पर निर्भर करता है । इसमें यन्त्रीकरण एवं आधुनिकीकरण का स्थान सीमित होता है । कृषि उपज संयुक्त पूर्ति के रूप में प्राप्त होती है । इन सभी विषयों का अध्ययन इस भाग में किया जाता है ।
( v ) भूमि का अर्थशास्त्र —
इसमें भूमि उपयोग, भूमि उपयोग का नियोजन, मिट्टी के प्रकार व उसके कटाव की समस्या, भू - संरक्षण, भूमि पुनः उद्धार, खेती की विभिन्न प्रणालियाँ, भूमि सुधार कार्यक्रम आदि सम्मिलित किये जाते हैं ।
( vi ) विपणन का अर्थशास्त्र -
कृषि विपणन, दोष, समस्यायें, नियन्त्रित बाजार, कृषि उपज के भण्डारण की समस्या, यातायात साधन, उपभोक्ताओं द्वारा उच्च कीमत देना तथा कृषकों द्वारा कम मूल्य प्राप्त करना, सहकारी विपणन व्यवस्था, कृषि उपज का राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, कृषि उपज के उचित वितरण की सरकार द्वारा व्यवस्था, कृषि मूल्यों में उच्चावचन, कृषि मूल्य नीति आदि का अध्ययन विपणन के अर्थशास्त्र की विषय वस्तु है ।
( vii ) कृषि श्रमिक -
मजदूरी भुगतान का तरीका, कृषि श्रमिकों की सौदेबाजी - शक्ति, बन्धुआ मजदूर व उनकी समिति, कृषि श्रमिकों की समस्यायें, उनके निराकरण के सरकारी प्रयास, ऋण भार व उससे मुक्ति आदि ।
( viii ) ग्रामीण समाजशास्त्र -
देश में ग्रामीण जनसंख्या का अनुपात, संरचना व कार्यानुसार वितरण, जीवन - स्तर, जनसंख्या का भूमि पर बढ़ता हुआ भार, ग्रामीण बेरोजगारी की समस्या व सरकारी प्रयास, ग्रामीण सामाजिक संस्थायें- (जाति प्रथा, संयुक्त परिवार प्रथा, बाल विवाह आदि) उनका कृषि कार्यों पर प्रभाव ।
( viiii ) कृषि वित्त -
कृषि वित्त की आवश्यकता का अनुमान व कारण, ऋण देने वाली संस्थायें, सरकारी ऋणदायी संस्थायें, सरकारी वित्तीय संस्थायें, ऋणों का कृषि उत्पादन व मूल्यों पर प्रभाव आदि इसमें सम्मिलित हैं ।
( x ) कृषि आयोजन -
कृषि आयोजन के सिद्धान्त व आवश्यकता, कृषि आयोजन की प्रकृति, कृषि विकास की योजनायें आदि । संक्षेप में कृषि अर्थशास्त्र की विषय सामग्री अत्यन्त विस्तृत है जिसमें न केवल फार्म की अवस्थाओं का अपितु राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय समस्यायें जो कृषि और कृषक से सम्बन्धित हैं, का भी अध्ययन करते हैं । सूक्ष्म और वृहद् स्तर की सभी फार्म व किसान से सम्बन्धित समस्याओं का समावेश इसकी विषय सामग्री में करते हैं ।
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2. कृषि अर्थशास्त्र का स्वभाव या प्रकृति
सामान्यतः निम्न शर्तों को पूर्ण करने वाले ज्ञान को विज्ञान कह सकते है -
- जिस ज्ञान का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है ।
- वह ज्ञान जिससे कारण और प्रभाव के सम्बन्ध की जानकारी मिलती है ।
- जिस ज्ञान के अध्ययन के लिये अपने निजी नियम होते हैं ।
- जिसका अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध होता है ।
- जिनके नियम सार्वभौमिक होते हों तथा जिनके प्रयोग से भविष्यवाणी की जा सके ।
पुनश्चः विज्ञान भी वास्तविक और आदर्श दो रूपों में विभक्त किया जा सकता है ।
वास्तविक विज्ञान ( Positive Science ) -
वास्तविक विज्ञान ज्ञान के यथार्थ स्वरूप को स्पष्ट करता है । वह क्या है? की जानकारी प्रदान करता है । उसके भले बुरे या हानि - लाभ का विवेचन नहीं करता है । जैसे मादक पदार्थ के सेवन से नशा आता हैं, स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है । वास्तविक विज्ञान केवल इस बात की जानकारी करवाता है । मादक पदार्थ का उपयोग करना चाहिये या नहीं इसकी जानकारी नहीं देता ।
आदर्श विज्ञान ( Normative Science ) -
आदर्श विज्ञान क्या होना चाहिये? की जानकारी देता है । क्या उचित है, क्या अनुचित है, के विषय में मत व्यक्त करता है । जैसे चूँकि मादक पदार्थ का सेवन स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है, अतः इसका सेवन नहीं करना चाहिये, इस प्रकार का मत आदर्श विज्ञान प्रस्तुत करता है ।
कला का अर्थ ( Meaning of Art ) -
यदि विज्ञान ज्ञान है, तो कला क्रिया है इसी कार्य को करना कला कहलाता है । कला विज्ञान का व्यावहारिक या प्रयोगात्मक पहलू है । विज्ञान के विभिन्न सिद्धान्तों का उपयोग और क्रियान्वयन कला है ।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हमें यह देखना है कि कृषि अर्थशास्त्र विज्ञान है या कला है, अथवा दोनों है ।
3. कृषि अर्थशास्त्र की सीमाएं
कृषि व्यवसाय की विशिष्ट प्रकृति तथा विशिष्ट समस्याओं के कारण कृषि अर्थशास्त्र की कुछ सीमायें हैं जो निम्न प्रकार हैं -
- उच्च श्रेणी की आर्थिक अनिश्चितता
- भूमि कच्चे माल के रूप में
- कृषि उपज प्रसयः शीघ्र नष्ट होने वाली होती है
- कृषि व्यवसाय की अगतिशीलता
- धीमा उत्पादन
- श्रम विभाजन का अभाव
( i ) उच्च श्रेणी की आर्थिक अनिश्चितता -
कृषि व्यवसाय में किसान और प्रकृति की साझेदारी होती है । कृषि कार्यों की सफलता उसके हिस्सेदार - प्रकृति - की कृपा पर निर्भर करती है । फसल के बोने से उसके कटने तक के समय के बीच भूमि उसकी उर्वरता, वर्षा, कीटाणु, बाढ़, सूखा, पाला, ओले, आँधी अनेक तत्व हैं जो कृषि कार्य को अनिश्चित और नियन्त्रित बना देते हैं । अत: इसमें लाभ की मात्रा तय नहीं की जा सकती है । आर्थिक अनिश्चितता का वातावरण निरन्तर बना रहता है । जैसे - जैसे तकनीकी ज्ञान का विस्तार होता जाता है, अनिश्चितता समाप्त करना कृषि व्यवसाय में सम्भव नहीं है ।
( ii ) भूमि कच्चे माल के रूप में -
भूमि कृषि व्यवसाय में कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त होती है । चूंकि भूमि की पूर्ति सीमित होती है, अत: मानव की कृषि सम्बन्धी क्रियायें भी सीमित रह जाती हैं । कृषि क्रियाओं का अचानक विस्तार नहीं किया जा सकता है । भूमि की यह सीमितता कृषि व्यवसाय के विकास की सबसे बड़ी बाधा है ।
( iii ) कृषि व्यवसाय की अगतिशीलता -
खेत में खड़ी फसल को उसकी माँग और मूल्य परिवर्तन के अनुसार दूसरे स्थान पर तुरन्त नहीं ले जा सकते हैं । कृषि में काम आने वाली जमीन को जब तक उस पर खड़ी फसल पक कर कट नहीं जाती है, तब तक उसे दूसरे काम में नहीं ले सकते हैं । कृषि में लगे मूलधन को निकालकर दूसरे स्थान पर नहीं ले जा सकते हैं ।
( iv ) कृषि उपज प्रसयः शीघ्र नष्ट होने वाली होती है -
औघेगिक उत्पादन की तुलना में कृषि उत्पादन अधिक जल्दी नष्ट हो जाता है । अत: कृषि उपज का लम्बे समय तक सुरक्षित रखने को समस्या जबरदस्त होती है ।
( v ) धीमा उत्पादन —
फसल (कृषि उपज) एक निश्चित अवधि में ही पक कर तैयार होती है । कुछ फसलें एक वर्ष की अवधि में पकती हैं, तो कुछ कम अवधि में साथ ही कृषि मौसमी व्यवसाय है । फल, फूल, अनाज आदि की खेती एक विशेष मौसम में ही की जा सकती है । अत: कृषि में उपज की पूर्ति, उसके परिवहन, साख विपणन, भण्डारण आदि की समस्यायें एक साथ ही उत्पन्न होती हैं । इससे परिवहन व्यय बढ़ता है, मूल्य घट जाता है, और किसान को हानि होती है ।
( iv ) श्रम विभाजन का अभाव —
कृषि व्यवसाय विस्तृत और बिखरा हुआ होता है, इसकी उपज अधिक स्थान घेरती है । अत: इसमें श्रम विभाजन के लाभ सीमित होते हैं ।
उपर्युक्त सीमाओं के अतिरिक्त कृषि व्यवसाय या बहुमुखी स्वरूप, कृषि में संयुक्त उत्पादन की प्राप्ति आदि अन्य सीमायें भी हैं । इन सभी समस्याओं और सीमाओं के कारण कृषि अर्थशास्त्र (agricultural economics in hindi) का व्यवहार और विश्लेषण अनिश्चित तथा विशिष्ट होता है ।
4. कृषि अर्थशास्त्र का अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध
कृषि अर्थशास्त्र एक विज्ञान है, अत: दूसरे विज्ञानों के साथ इसका घनिष्ठ सम्बन्ध होना परम आवश्यक है । कृषि अर्थशास्त्र (agricultural economics in hindi) का सम्बन्ध न केवल सामाजिक विज्ञानों से है, अपितु भौतिक विज्ञानों भी है ।
रसायन शास्त्र की एक शाखा कृषि रसायन शास्त्र है जिसमें कृषि से सम्बन्धित रासायनिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है । रसायन शास्त्र द्वारा कृषि के अध्ययन तथा कृषि के लाभ के लिये एक अलग से कृषि रसायन शास्त्र की स्थापना करना दोनों के घनिष्ठ सम्बन्धों का परिचायक है ।
कीटाणुनाशक दवाओं तथा रासायनिक खाद का निर्माण कृषि के लिये वरदान सिद्ध हुआ है । इनका निर्माण रसायन शास्त्र द्वारा किया गया है । वनस्पति शास्त्र का कृषि से गहन सम्बन्ध है । इसीलिये एक अन्य शास्त्र कृषि वनस्पति शास्त्र की स्थापना की गई है ।
वनस्पति शास्त्र में वनस्पति एवं फसलों से सम्बन्धित जैविक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है । जैसे पत्ते धूप में भोजन बनाते हैं । अतः फसल पकने के लिये धूप जरूरी है ।
प्राणिशास्त्र में विभिन्न पशुओं, मधुमक्खी, केंचुओं, सूअर, मुर्गी आदि के शरीर रचना तथा दूसरे कीड़े - मकौड़ों की रचना की जानकारी प्राप्त की जाती है जो कृषि एवं कृषक के लिये अत्यन्त लाभदायक होती है । विभिन्न कीड़े - मकाड़ों तथा पशु - पक्षियों का अध्ययन किसान को सहायता पहुंचाता है ।
भौतिक शास्त्र में विभिन्न यन्त्रों, उपकरणों के निर्माण, पानी उठाने की विधि तथा अन्य भौतिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है । पानी उठाने की विधि से पम्प सेट , ट्यूबवैल आदि कार्य करते हैं , ट्रैक्टर संचालित होते हैं ।
इन सभी यन्त्रों एवं उपकरणों तथा खाद के प्रयोग से सघन कृषि सम्भव हुई है । मौसम की जानकारी बैरोमीटर से होती है । यह यन्त्र कृषक के लिये मौसम सम्बन्धी भविष्यवाणी करता है । मिट्टी में भौतिक तथा रासायनिक क्रियायें होती हैं जिनका अध्ययन भौतिक शास्त्र तथा रसायन शास्त्र में होता है ।
इन क्रियाओं के अध्ययन से मिट्टी की महत्वपूर्ण है । गुणवत्ता तथा उत्पादकता की जानकारी मिलती है । यह जानकारी कृषि अर्थशास्त्र के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण है ।
कृषि उत्पादन पर रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, जलवायु विज्ञान, खगोल शास्त्र आदि का गहरा प्रभाव पड़ता है । हानिकारक कीटाणुओं का अध्ययन प्राणिशास्त्र का विषय है, परन्तु लाभ कृषि अर्थशास्त्र को मिलता है ।
कृषि - अभियान्त्रिकी पशु - पालन तथा दुग्ध - विज्ञान, गणित तथा सांख्यिकी विज्ञानों से भी कृषि अर्थशास्त्र गहरे रूप में जुड़ी हुई है । इन सभी का अध्ययन प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कृषि अर्थशास्त्र (agricultural economics in hindi) को प्रभावित करता है । कृषि अर्थशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में घनिष्ठ सम्बन्ध है । कृषि अर्थशास्त्र, अर्थशास्त्र का व्यावहारिक पहलू है ।
प्रो० ग्रे० के अनुसार कृषि अर्थशास्त्र -
अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों एवं विधियों का प्रयोग कृषि उद्योग में करता है । अर्थशास्त्र कृषि समस्याओं का समाधान अधिकतम उत्पादन तथा उसके न्यायोचित वितरण के लिये प्रस्तुत करता है । कृषि अर्थशास्त्र, अर्थशास्त्र की एक शाखा है ।
कृषि अर्थशास्त्र और राजनीति शास्त्र में गहरा सम्बन्ध है । सरकार भूमि के न्यायोचित वितरण तथा किसानों को उचित मूल्य दिलाने के लिये अनेक नियम बनाती है । कृषि उत्पादनों के मूल्यों के निर्धारण का औचित्, किसानों को राहत देने तथा कर्जे माफ करने के औचित्य पर प्रकाश डालने का कार्य राजनीति शास्त्र का है ।
इतिहास के द्वारा भूतकाल में प्रचलित भूमि बन्दोबस्त प्रणालियों तथा माल गुजारी के निर्धारण तथा वसूली की विधियों की जानकारी मिलती है । प्राचीन प्रणालियों में वर्तमान समय तथा परिस्थिति के अनुसार सुधार करके इन्हें लागू किया जाता है ।
कृषक समाज का अध्ययन समाजशास्त्र में किया जाता है जिसके आधार पर कृषि अर्थशास्त्र भू - धारण प्रणालियों का निर्माण करता है । न्याय शास्त्र कृषि पर कर - निर्धारण तथा उसके औचित्य पर प्रकाश डालता है ।
भूगोल में किसी देश के विभिन्न भागों में उपलब्ध जलवायु की जानकारी एक निर्धारण तथा उपलव्य जलवायु की जानकारी मिलती है जिसके आधार पर कृषि अर्थशास्त्र भू - धारण प्रणालियों का निर्माण करता है न्याय शास्त्र कृषि पर कर - निर्धारण तथा उसके औचित्य पर प्रकाश डालता है ।
भूगोल में किसी देश के विभिन्न भागों में उपलब्ध जलवायु की जानकारी मिलती है जिसके आधार पर किसान फसलें बोता है तथा सरकार उचित फसलों को प्रोत्साहन देती है । विभिन्न फसलों को विभिन्न स्थानों पर उपयुक्तता की जानकारी भूगोल से मिलती है ।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि कृषि अर्थशास्त्र (agricultural economics in hindi) का सामाजिक तथा भौतिक विज्ञानों से गहरा सम्बन्ध है ।