मकानों, घरों एवं भवनों के अंदर पौधों को उगाकर उन्हें अलंकृत करना अन्त: भवन बागवानी (indoor gardening in hindi) कहा जाता है ।
मिस्र, रोम, बेबीलोन एवं भारत इत्यादि देशों में प्राचीन सभ्यताओं में घरों एवं सामूहिक भवनों को पौधों से अलंकृत करने के उदाहरण मिलते हैं ।
आधुनिक काल में जपा, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा यूरोप की धनाढ्य समाज में घरों को पौधों से अलंकृत करना एक आवश्यकता हो गई है ।
अन्त: भवन बागवानी क्या है इसकी परिभाषा | defination of indoor gardening in hindi
घरों (भवनों) को पौधों द्वारा अलंकृत करना भवन बागवानी कहलाता है ।
जिन पौधों को घरों या भवनों के अंदर उगाया जाता है, अन्त: भवन पौधे (indoor plants in hindi) कहा जाता है, जैसे एजेलिया, पैपरोमिया एवं पाम्स इत्यादि इनडोर प्लांट्स के उदाहरण है ।
अन्त: भवन बागवानी क्या है इसके लिए उपयुक्त पौधों के नाम एवं उगाने की विधि |
अन्त: भवन बागवानी की परिभाषा | defination of indoor gardening in hindi
अन्त: भवन बागवानी की परिभाषा - "मकान, घरों एवं भवनों को सुंदर पौधों से अलंकृत करना ही, अन्त: भवन बागवानी (indoor gardening in hindi) कहलाता है ।"
अन्त: भवन बागवानी के लिए उपयुक्त पौधे कोन से होते है?
भवनों के लिए उपयुक्त पौधे (indoor plants in hindi) - आमतौर से भवनों में लगाए जाने वाले पौधे सुंदर फूलों वाले या सदाबहार सुंदर पत्तियों वाले होने चाहिए ।
अन्त: भवन बागवानी के लिए उपयुक्त पौधे -
- सुंदर फूलों वाले पौधे
- सदाबहार सुन्दर पर्णीय पौधे
- अन्य सुंदर गमले वाले पौधे
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अन्त: भवन बागवानी के लिए उपयुक्त पौधे के नाम | indoor plants name in hindi
1. सुन्दर फूलों वाले पौधे -
ये पुष्पन काल में अतिसुन्दर प्रतीत होते हैं परन्तु पुष्पन काल समाप्त होने पर अच्छे नहीं लगते हैं ।
सुन्दर फूलों वाले पौधों के नाम -
एजेलिया, जैरेनियम, कोलियस, गुलदावदी , कैसिलेरिया, साइनेरिया इत्यादि लगाये जाते हैं ।
2. सदाबहार सुन्दर पर्णीय पौधे -
सदैव अलंकृत प्रतीत होते हैं ।
सदाबहार सुन्दर पर्णीय पौधों के नाम -
एसपिडिस्ट्रा, एगलोनिमा, बिगोनिया, क्रोटोन्स (Codiaeum), कैलेडियम, पैपरोमिया कैपिरैटा, साइपैरस आल्टर्निफोलिया इत्यादि ।
3. अन्य सुंदर गमले वाले पौधों के नाम -
इनके अतिरिक्त फर्नस्, पाम्स, कैक्टस, सरस, अलंकृत लताओं इत्यादि को भी लगाया जा सकता है ।
सामान्यतः पौधों को गमलों में उगा कर यथा स्थान पर रखते हैं । इसके अतिरिक्त पौधों वो सुन्दर गुलदस्तों, लटकने वाली टोकरियों (hanging baskets) चाइना बास्केट्स, विन्डों गार्डन्स, मिनिएचर गार्डन्स, बोतल गार्डन्स, बोनसाई इत्यादि से भी घरों को अलंकृत किया जाता है ।
हैन्गिग बास्केट्स क्या होती है? | hanging baskets in hindi
हैन्गिंग बास्केट्स (hanging baskets in hindi) अर्थात् लटकती हुई टोकरियों में पौधे लगाना, अलंकृत उद्यानों, प्रागणों एवं भवनों में काफी प्रचलित है ।
हैगिंग बास्केट्स में अनुसी (trailing or cascading) पौधे लगाना उपयुक्त रहता है । हैन्गिंग बास्केट्स को प्रवेश द्वारों, कमरों तथा पथों के दोनो ओर लगाया जा सकता है ।
हैगिंग बास्केट्स आकर्षण, हल्की तथा लटकाने में सुगम होनी चाहिये । बर्तन में जल निकासी के लिये छिद्र होना चाहिये ।
शीर्षीय परिधि पर तार के हुक लगाकर तीन छिद्रों वाली बास्केट्स अच्छी रहती है इन बर्तनों की वातन व्यवस्था अच्छी होनी चाहिये ।
शुष्क एवं उष्ण जलवायु के लिए लकड़ी की बास्केट्स अधिक उपयुक्त होती है क्योंकि वे जल्दी शुष्क नहीं होती हैं । मिट्टी के गमले लटकाने के लिये भी उपलब्ध हो जाते हैं ।
हैन्गिंग बास्केट्स के गमलों के लिये पीटमॉस, पत्तियों की खाद, उद्यान की दोमट मृदा तथा गोबर के खाद की समान मात्रा में सुमिश्रित कम्पोस्ट उपयुक्त रहती है पौधे को गमले में यथा विधि लगा देना चाहिये तथा आवश्यकतानुसार जल देते रहना चाहिये ।
हैन्गिंग बास्केट्स (hanging baskets in hindi) - "लटकने वाली टोकरी ओ में सजावट के लिए पौधे लगाना हैन्गिंग बास्केट्स (hanging baskets in hindi) कहलाती है ।
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टोपियेरी क्या होती है एवं टोपियेरी के लिए उपयुक्त पौधों के नाम
टोपियेरी (topiary in hindi) के लिये कलशों, ट्यूब्स इत्यादि का प्रयोग किया जाता है । इनकों ग्लवेनाइज्ड वायर के फ्रेम में स्थापित कर लिया जाता हैं ।
टोपियेरे में क्लिरोडेन्ड्रोन इनैकमी, ड्युरैन्टा प्लुमेराई, बोगेनविलिया कैमिलियास, जुनिपर, थुजा इत्यादि को स्थापित किया जाता है ।
टोपियेरी को कमरों के कोनों, दीवार के सहारे या टैरेस में लगाया जाता है ।
टोपियेरी के लिए उपयुक्त पौधों के नाम -
- क्लिरोडिन्ड्रोन इनैरमी
- ड्युरैन्टा प्लुमेराई
- कैमिलियास
- बोगेनविलिय
अन्त: भवन बागवानी में पौधों को उगाने की विधि
भवनों में पौधे उगाना के लिए उनमें कृषक क्रियाएं एवं अन्य वातावरणीय कारको का भी अत्यंत ध्यान रखना आवश्यक होता है, जो निम्नलिखित है -
1. अध्यस्ता ( Acclimatisation ) -
भवन के लिये पौधे प्राप्त करने के उपरान्त उन्हें सावधानी पूर्वक रखना चाहिये ।
पौधों को एक जलवायु से दूसरी जलवायु में स्थानान्तरित आने पर उसे नयी जलवायु में अनुकूलनता की आवश्यकता पड़ती है ।
भवन में आपेक्षित प्रकाश की न्यूनता, न्युन आर्द्रता तथा अनउपयुक्त तापक्रम की अवस्था होती है अतः नये लगाये गये पौधे की पत्तियों पीली पड़ जाती है तथा कभी - कभी झड़ने लगती हैं ।
अतः पौधे को कालान्तर से उसकी उपयुक्त मौसमीय दशाओं में कुछ समय के लिये रखते रहना चाहिये । इससे पौधे की धीरे - धीरे अनुकूलनता हो जाती हैं । मानक शरीर क्रियाओं आदर्श वातावरणीय दशाओं में होती है ।
भवन में पौधे को स्थानान्तरित करने पर कई कारक आदर्श अवस्था से न्युन हो जाते हैं । इन प्रतिकूल अवस्थाओं की परिसीमाओं में पौधों में काफी प्रतिबल (stress) उत्पन्न हो जाता है जिस पर अतिक्रमण (overcome) परिहरण (avoid) या उदासीन (neutralize) करने के लिये निम्नलिखित कारको को उपयुक्त बनाने की आवश्यकता पड़ती है
2. प्रकाश ( Light ) -
भवन में पौधे उगाने के लिये प्रकाश महत्वपूर्ण कारक होता है क्योंकि भवन के अन्दर सामान्यतः प्रकाश : की न्यूनता होती है ।
हालाकि भिन्न - भिन्न जातियों के पौधों की प्रकाश आवश्यकता विभिन्न होती है जैसे हैडरा (Hedera helix) आपेक्षित बहुत न्यून प्रकाश में भी अच्छा पनप जाता है जबकि सैन्सिवियरा (Sansevier atrifasciata) को काफी अधिक प्रकाश की आवश्यकता पड़ती है ।
मकान के जिन कोणों भागों में आपेक्षित न्यून प्रकाश होता है वहाँ पर बिजली फ्लोरिसैन्ट ट्युब्स के द्वारा उपर्युक्त प्रकाश उपलब्ध कराना चाहिये ।
सामान्यतः 15-20 वाट फ्लोरिसैन्ट प्रकाश प्रति 30 cm पादप - क्षेत्र के लिए काफी होता है । सामान्यतः 60 cm लम्बी ट्युब 20 वाट प्रकाश उत्पन्न करती है ।
आवश्यकता से अधिक प्रकाश देने पर पौधे पर विपरीत प्रभाव पड़ता है ।
3. तापक्रम ( Temperature ) -
तापक्रम के प्रति विभिन्न पौधों की संवेदनशीलता आपेक्षित अधिक होती है क्योंकि भवन के लिए संग्रह किये गये पौधों को विविधता एवं सुन्दरता बढ़ाने के लिये विभिन्न तापक्रम की जलवायु में से लाया जाता है ।
शीत जलवायु सम्बन्धित पौधों की उष्ण जलवायु के पौधों से तापक्रम आवश्यकता बिल्कुल भिन्न होती है ।
अतः पौधों के लिए दिन का तापक्रम अधिक विभिन्न नहीं होना चाहिये ।
सामान्यतः 15-20 C तापक्रम विस्तार में अधिकांश पौधे विकसित हो जाते हैं । तापक्रम की समस्या शीतोष्ण प्रदेशों में अधिक विकट होती है ।
आधुनिक समय में धनाड्य घरों में वायु नियमन (air conditioning) द्वारा उपयुक्त तापक्रम बनान बनाये रखने की सुविधा हैं ।
4. आर्द्रता ( Humidity ) -
मृदोद्भिद जलवायु के भवनीय पौधों, जैसे सैन्सिवियरा, एसपिडिस्ट्रा, कैक्टसों, सरस पौधों , के अलावा अधिकांश पौधे आपेक्षित अधिक आर्द्रता से सम्बन्धित होते हैं ।
घरों में आपेक्षित अधिक आर्द्रता रखना वासियों के लिये उपयुक्त नहीं होता है ।
अत: अधिक आर्द्रता की आवश्यकता वाले पौधों के आसपास आपेक्षित अधिक आर्द्र स्थिति उत्पन्न की जा सकती है ।
ऐसे पौधों को आपेक्षित बड़े गमलों में लगाना चाहिये जिससे गमले का ऊपरी भाग खाली रख कर उसमें पीट मॉस (peat moss) की एक तह भर देनी चाहिये तथा उसके ऊपर ग्रेवल या पत्थर के छोटे टुक्कड़े भर देने चाहिये ।
इन गमलों में जल भर देना चाहिये । जल के वार्षकरण से पौधों के आसपास आपेक्षित अधिक आर्द्रता बनी रहती हैं ।
पौधों के पीय भाग की अधिक तापक्रम होने पर फव्वारे से सिंचाई कर देनी चाहिये ।
5. जल देना ( Watering ) -
भिन्न - भिन्न पौधों की जल की आवश्यकता विभिन्न होती है जैसे कि एलोकेशिया को मरुद्भिद पौधों की अपेक्षा अधिक जल की आवश्यकता होती हैं ।
यहाँ तक कि एक ही पौधे की वृद्धि एवं विकास की विभिन्न अवस्थाओं में जल की भिन्न - भिन्न मात्रा की आवश्यकता होती है ।
पौधे के क्रियाशील वृद्धि काल में जल की आपेक्षित अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है ।
चिकनी मिट्टी के छिद्रित गमलों में लगाये गये पौधों को प्लास्टिक या धातु के गमलों, बर्तनों में लगाये पौधों को आपेक्षित अधिक जल की आवश्यकता पड़ती है ।
छोटे गमलों में लगे पौधों को भी अधिक बारम्बारता से जल देना पड़ता है । जलवायु भी जल देने की बारम्बारता को प्रभावित करती है ।
सामान्यतः 3-10 दिन के अन्तराल से पौधों को जल देना चाहिये ।
6. शुद्ध वायु ( Fresh Air ) -
प्रर्यावरणीय प्रदूषण से पौधे प्रभावित होते हैं अतः पौधों को फ्युम्स (fumes), अधिक धुयें, पैट्रोलियम या कैरोसिन के धुयें, डिटरजेन्ट्स इत्यादि प्रदूषण कारकों से रक्षित करना चाहिये ।
7. कृषण क्रियाओं ( Cultural Practices ) -
पौधों के आसपास स्वच्छता रखनी चाहिये । सुखी तथा अन्य प्रकार से हानिग्रस्त पत्तियों तथा अन इच्छित शाखाओं या भागों का आवश्यकतानुसार कृतन कर देना चाहिये ।
कम्पोस्ट के खराब होने पर पौधों को नयी कम्पोस्ट युक्त गमलों में लगा देना (repotting) चाहिये ।
आवश्यकतानुसार तरल पोषणयुक्त खाद की गमलों में आपूर्ति (top dressing) कर देनी चाहिये । पौधों के वायुवीय भागों पर धूल जमने पर उन्हें धोकर स्वच्छ कर देना चाहिये ।
पौधों के किसी प्रकार के रोग से ग्रस्त होने पर सामान्य कृषि विधियों के अनुसार उपचार करना चाहिये ।