अलंकृत बागवानी आध्यात्मिक एवं कलात्मक उद्यान विज्ञान की शाखा है, जिसमें सजावट तथा सौंदर्य के लिए एकवर्षीय, द्बिवर्षीय एवं बहुवर्षीय पौधों को उगाया जाता है ।
अलंकृत बागवानी के अंतर्गत सजावट तथा सौंदर्य के लिए बाहर उद्यान में तथा शीशे के घरों में गमलों में, टोकरियों में एवं भवनों आदि में पौधे उगाए जाते हैं ।
अलंकृत बागवानी किसे कहते है?
अलंकृत बागवानी सभ्यता का प्रतीक है, जैसे जैसे सभ्यता का विकास हुआ वैसे ही मनुष्य द्वारा सजावट के लिए पौधों का उपयोग बढ़ता गया ।
संसार की सभी प्राचीनतम सभ्यताओं में पौधों का 'असीम सुख सौंदर्य' प्रदान करने के लिए वर्णन मिलता है ।
अलंकृत बागवानी की परिभाषा - "अलंकृत बागवानी एक विज्ञान एवं कला है, जिसमें अलंकरण, सौंदर्य एवं सभ्यता के लिए पौधों को उगाया जाता है।"
भारत में अलंकृत बागवानी का महत्व, विकास एवं भविष्य
भारत में वैदिक काल से पहले की सिन्धु घाटी की सभ्यता में मोहदजोदड़ों तथा हड़प्पा में किये गये उत्खनन् में मिले बर्तनों पर बेल बूटों एवं पुष्पों के चित्र अंकित पाये गये हैं ।
वेदों की बहुत - सी ऋचाओं में प्राकृतिक सुन्दरता का वर्णन मिलता है ।
अलंकृत बागवानी किसे कहते है इसका महत्व एवं अलंकृत उद्यानों के प्रारूप |
भारत में अलंकृत बागवानी का महत्व
अलंकृत बागवानी का महत्व अलंकृत उद्यानों में प्राकृतिक सौन्दर्य का समावेश होता है, जो असीम सुखशान्ति प्रदान करने वाला होता है ।
अलंकृत बागवानी का प्रमुख महत्व -
- मनोरंजन के लिए
- सजावट एवं सौंदर्य के लिए
- वातावरण की शुद्धि के लिए
- आध्यात्मिक एवं धार्मिक महत्व
- आर्थिक मान एवं अन्य महत्व
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अलंकृत बागवानी, व्यक्ति, समाज एवं देश के लिये लाभप्रद मुख्य महत्व निम्न प्रकार है -
1. मनोरंजन ( Recreation )
मनुष्य जब दिन भर के परिश्रम से थक जाता है, तो उसे मनोरंजन की आवश्यकता होती है ।
अलंकृत उद्यान में घूमने - बैठने से स्वस्थ मनोरंजन होता है । थका - हारा पथिक भी जब सुन्दर छायादार वृक्ष के नीचे बैठता है, तो उसे अती आनन्द प्राप्त होता है ।
अलंकृत उद्यान में तो प्राकृतिक सौन्दर्य एवं दृश्यों का समावेश ही होता है ।
विशेषकर बड़े नगरों में रहने वाले व्यक्ति, जो कि प्राकृतिक दृश्यों से बहुत दूर रहते हैं । उनके लिये अलंकृत बाग वरदान स्वरूप होते हैं ।
अलंकृत बागवानी का महत्व को समझते हुए ही, अब बड़े नगरों में बाग, पार्क, एवैनयु आदि का विकास किया जा रहा है ।
आधुनिक अन्वेष्णों के अनुसार अधिकांश रोग मानसिक कारणों से होते हैं । मानसिक तनाव स्वास्थ्य के लिये अत्यधिक हानिकारक होता है ।
प्राकृतिक हरियाली एवं सुन्दर फूलों को देखने से मानसिक तनाव कम होता है तथा मन को शान्ति मिलती है ।
2. सजावट ( Beautification )
हरियाली (greenry) एवं पुष्प (flowers) प्रकृति के अनोखे उपहार हैं । इनकी सुन्दरता का कोई समानान्तर नहीं है । इनकी उपस्थिति सुन्दरता एवं स्वच्छता की परिचायक है ।
अतः नगरों एवं ग्रामों को सुन्दर बनाने के लिये फूल वाले पेड़ों एवं पौधों का उपयोग करना चाहिये ।
पब्लिक इमारतों , जैसे स्कूल व कालेज, डाकघर, रेलवे स्टेशन, पंचायत घर, नगरपालिका, इत्यादि स्थानों को पेड़ - पौधों से सज्जित करना चाहिये ।
बड़े नगरों में घने बसे व गन्दे स्थानों के मध्य पार्क व छोटे उद्यान लगाना आवश्यक है ।
सजावट वाले पेड़ - पौधों का स्थान प्रत्येक घर में आवश्यक रूप से होना चाहिये ।
प्राचीन काल से ही नारियाँ श्रृंगार के लिये पुष्पों का उपयोग करती हैं । माला, वेणी एवं जूड़ों में पुष्प के श्रृंगार का कोई समानान्तर नहीं हैं ।
3. वातावरण की शुद्धि ( Purity of Environment )
पौधे वातावरण को शुद्ध करते हैं । क्योंकि ये प्रकाश - संश्लेषण क्रिया में कार्बन - डाई - ऑक्साइड (CO) लेते हैं तथा आक्सीजन (O) निकालते हैं, जिससे वातावरण शुद्ध होता है ।
आज के औधोगिक युग में अलंकृत बागों, बाटिकाओं एवं पार्को का महत्व और भी अधिक हो गया है ।
औद्योगिक एवं शहरी क्षेत्रों में बागों एवं पार्कों के लिये स्थान होना चाहिये ।
नयी सुनियोजित एवं सुव्यवस्थित बस्तियों में बागों एवं पाकों के लिये स्थान आवश्यक रूप से छोड़ा जाता है ।
सभी पब्लिक, इमारतों एवं निजी मकानों में पेड़ - पौधों का स्थान अवश्य होना चाहिये ।
पौधों का वातावरण पर दूसरा मुख्य शीतलन प्रभाव (Cooling effect) पड़ता पेड़ - पौधों में वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) की क्रिया द्वारा जलवाष्प ( Water vapour) निकलती रहती है, जो कि जड़े, भूमि में अधिक गहराई से पानी का अवशोषणन (absorpation) करती हैं तथा इनका शाकीय क्षेत्र अधिक होता है ।
अतः ये अधिक मात्रा में जल - वाष्प निकालते हैं ।
उदाहरण - स्वरूप बढ़ते हुए रेगिस्तान को रोकने के लिये उस क्षेत्र के आस - पास अत्यधिक मात्रा में वृक्ष लगाये जा रहे हैं ।
भारत में वृक्षारोपण को एक राष्ट्रीय योजना के रूप में लिया जा सकता है ।
वातावरण पर तीसरा मुख्य प्रभाव सुगन्धित फूलों व पौधों का पड़ता है । इनसे वातावरण मनमोहक होता है ति ये वातावरण को पवित्र करते हैं ।
तुलसी, रात की रानी, चमेली, रूकमणी, मोगरा आदि पौधों के प्रभाव का वर्णन करना कठिन है ।
यह मनमोहक, सुगन्धित एवं आनन्ददायक प्रभाव को उत्पन्न करते ही हैं, साथ - साथ इनका एन्टी - सैप्टिक प्रभाव भी होता है ।
4. आध्यात्मिक एवं धार्मिक महत्व ( Spiritual and Religious Importance )
उद्यानों से असीम सुख - शान्ति प्राप्त होती है ।
प्राकृतिक वातावरण में मनुष्य सांसारिक चिन्ताओं से मुक्त होता है ।
प्राचीन काल में ऋषि - मुनि अपने आश्रमों में पेड़ - पौधे लगाते थे । बौद्ध भिक्षुक अपने मठों व मन्दिरों में पेड़ पौधों को लगाते थे ।
वह वातावरण ध्यान - योग के लिये आवश्यक होता है । ऐसे वातावरण में आत्मिक शान्ति मिलती है । तुलसी एवं पीपल हिन्दुओं के पूज्यनीय पौधे हैं ।
नील कमल भगवान विष्णु का प्रतीक है । पूजा में फूल ही भगवान को अर्पित किये जाते हैं ।
सभी संस्कारों एवं पूजा कार्यों में पुष्पों का उपयोग होता है । शुभकामनाओं के लिये पुष्प भेंट किये जाते हैं ।
5. आर्थिक मान ( Economic Value )
फूलों का उगाना एक व्यवसाय भी है ।
फूलों की मालाओं, गुलदस्ते, कंगन बनाकर बेचने से आय होती है । पौधों को गमलों में उत्पन्न करके बेचा जाता है ।
फूलों वाले पौधों की पौध का काफी भविष्य (scope) है । इंग्लैण्ड में फूलों (Cut flowers) की अच्छी बिक्री होती है ।
अंलकृत बागवानी अन्य महत्व -
अंलकृत बागवानी में सुगन्धित तेलों के व्यवसाय का विशेष महत्व है ।
तारपीन, चमेली, चन्दन, यूकेलिप्टस, लैमन ग्रास जैरेनियम, आंवला एव पामरोसा के तेल का अच्छा व्यवसाय है । इनका एक से डेढ़ करोड़ रुपये मूल्य का तेल विदेशों को भेजा जाता है ।
इसके अलावा गुलाब, चम्पा, केवड़ा आदि से इत्र तैयार किया जाता है । कन्नौज तथा जौनपुर में इनके तेल निकाले जाते हैं । इनसे लगभग 10 करोड़ रुपये का व्यवसाय होता है, जिससे तेल निकाला जाता है ।
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भारत में अलंकृत बागवानी की वर्तमान स्थिति एवं भविष्य
महाराजा हरिश्चन्द्र गाथा में रोहिताश द्वारा पूजा के लिये फूलों को एकत्र करने का प्रंसग है ।
रामायण में पंचवटी का सुन्दर वर्णन मिलता है ।
रावण ने सीताजी को अशोक वाटिका में रखा था । जो कि उस काल में अलंकृत बागों के विकास का प्रमाण है ।
महाभारत में बाग - बाटिकाओं एवं उद्यानों का वर्णन किया गया है ।
ऋषियों के आश्रम, विभिन्न प्रकार के फलों एव फूलों वाले पौधों से सज्जित होते थे ।
ऋषियों ने फूलों को सुमन या सुमनस नाम दिया । जिसका तात्पर्य मन को आनन्दित करना है जो कि उनकी सौन्दर्यप्रियता एवं सौम्यता का प्रतीक है ।
प्राचीन भारतीय सभ्यता में पेड़ पौधों के अत्यधिक महत्व का पता इस बात से चलता है, कि तुलसी, पीपल जैसे पौधों की पूजा की जाती थी ।
महात्मा बुद्ध को पीपल के वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ । यह पवित्र वृक्ष माना जाता है ।
बौद्ध भिक्षुक अपने मठों एवं मन्दिरों के पास सुन्दर फूलों वाले पेड़ पौधे उगाते थे, क्योंकि ये मन को शान्ति देने वाले होते हैं ।
वास्तव में, इनमें मठों एवं मन्दिरों के पास बागवानी का विकास हुआ । बौद्ध भिक्षुक अशोक, कदम तथा पीपल के पेड़ों का सरंक्षण करते थे ।
महाराजा अशोक ने बौद्ध परम्परा का विकास किया तथा विदेशों चीन, श्रीलंका, बर्मा, श्याम, जापान आदि में बौद्ध धर्म का प्रसार किया । जिसके साथ - साथ बौद्धकालीन भारतीय बागवानी का भी प्रसार हुआ ।
विशेष रूप से , जापान में बागवानी की एक अलग शैली का विकास हुआ , जिसे जापानी शैली या जापानी उद्यान कला कहते हैं ।
महाराजा अशोक ने ( 273-223 ईसा पूर्व ) सड़कों के किनारे छायादार , आम एवं बरगद के वृक्ष लगवाये ।
अशोक के अभिलेखों में पेड़ पौधों का वर्णन मिलता है ।
अशोक के स्तम्भ पर धर्मचक्र तथा कमल का फूल बना है । कनिष्क (78-101 ई०) भी बौद्ध धर्म को मानने वाला था । उसने बौद्ध विहार तथा स्तूप बनवाये ।
मथुरा में उस काल के मन्दिरों और स्तूपों पर कदम्ब, अशोक तथा चम्पा बने हुए पाये गये हैं ।
अजन्ता एवं एलोरा की गुफाओं में ऐसे चित्र बने हैं, जिनमें औरतें गले में फूलों की मालायें पहने हुए हैं तथा अपनी वेणी को फूलों से सजा रखा महाकवि कालीदास ने 'अभिज्ञान शाकुन्तलम' तथा 'मालविका अग्नि मित्र' में प्राकृतिक सौन्दर्य तथा पुष्षों का अति सुन्दर वर्णन किया है ।
कण्व ऋषि का आश्रम फूलों वाले वृक्षों, पौधों एवं लताओं से सजा हुआ वर्णित है ।
शकुन्तला के गले को कमलनी तथा दाँतों को चमेली के फूलों के समान बताया है ।
कविवर जयदेव ने राधा - कृष्ण को फूलों की कालीन पर प्रेमरत दर्शाया है ।
वात्सायन ने उद्यान को मकानों का अभिन्न अंग बताया है ।
उद्यान में तालाब, जिसमें कमल एवं कमलनी खिले हों, बगुल, बत्तख एवं सारस हों, को आवश्यक अंग माना है ।
वात्सायन ने उद्यानों की चार प्रकार - प्रमोद - उद्यान, वृक्षवत्तिका फलोद्यान और नन्दनवन बतायी ।
भारतीय कला में अशोक, पीपल, कम्ब, अर्जुन, कचनार, अमलताश, चम्पा, चमेली, गेन्दा, सदावहार, मधुमालती, कमल एवं कमलनी का विशेष स्थान रहा है ।
मुसलमानों के भारत में आगमन से परसियन शैली के उद्यानों का प्रवेशन हुआ ।
विशेषरूप से मुगल बादशाहों का उद्यानों से अतीव प्रेम था ।
बाबर ने बागे - वफा, बागे - कलां तथा रामबाग आगरे में जमुना के किनारे लगवाये ।
जहाँगीर और उसकी परसियन बेगम नूरजहाँ चे शहादरा (लाहौर) वहा, तक हसन अब्दल में बाग लगवाये ।
मुगल बादशाहों में शाहजहाँ सबसे अधिक उद्यानप्रिय था ।
शाहजहाँ ने शालीमार बाग तथा निशात बाग काश्मीर में, ताजमहल आगरा तथा लालकिला दिल्ली में प्रसिद्ध बाग लगवाये, जो कि अब भी अपनी उत्कृष्टता के लिये प्रसिद्ध है ।
उसी काल में फदैह खान बाग पिन्जौर में लगवाये थे ।
इंगलिश गार्डनस् में मुख्य ध्यान फूलों के रंग, पौधों की विभिन्न प्रकार, उनके प्रजनन एवं वृद्धि तथा लॉन्स (Lawns) पर जोर दिया जाता है ।
शाकीय पट्टी (Herbaceous borders) तथा झाडीय पट्टी (Shrubbery borders) इस शैली की देन हैं ।
अंग्रेजों को विच्छेदित फूल (Cut flowers) बहुत प्रिय होते हैं ।
जापानी उद्यान शैली सबसे सुन्दर एवं विकसित है ।
इसमें प्राकृतिक सौन्दर्य का समावेश अत्यधिक सुखद एवं शान्ति प्रदान करने वाला होता है, जापानी लैड स्केप गार्डन्स शैली संसार के सभी देशों में अपनायी जा रही है ।
अलंकृत उद्यानों के प्रारूप
अलंकृत उद्यानों के तीन मुख्य प्रारूप विकसित हुये हैं -
- बनावटी प्रारूप (Formal or Symmetrical Style)
- प्राकृतिक प्रारूप (Natural or Informal or Landscape gardening)
- स्वतन्त्र प्रारूप (Free or Picturesque Style)
1. बनावटी प्रारूप ( Formal Style ) -
ये उद्यान ज्यामितीय (geometrical) सिद्धान्तों के आधार पर सममित ( symmetrical ) आकार में लगाये जाते हैं । स्थान का सीधी रेखाओं में विभाजन किया जाता है । समानता ( Uniformity ) इनका विशेष गुण हैं । इन उद्यानों के केन्द्र सीधी रेखा द्वारा विभाजन करने पर दो बराबर भाग हो जाते हैं ।
भारत में इस उद्यान शैली के उदाहरण ताज उद्यान आगरा, पिन्जोर उद्यान पिन्जोर, शालीमार बाग तथा निशात बाग काश्मीर, मुगल गार्डन्स दिल्ली, बेबीलॉन उद्यान एवं वृन्दावन उद्यान मैसूर इत्यादि ।
2. प्राकृतिक प्रारूप ( Informal Style ) -
इस विधि को Natural or Informal or Land Scape gardening भी कहते हैं । इस विधि का मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक दृश्य निर्मित करना होता है । सम्पूर्ण उद्यान का डिजाइन इस प्रकार प्रतीत होना चाहिये, जैसे कि प्रकृति में इनकी उत्पत्ति स्वयं हुई हो ।
इसमें ऊँचे - नीचे, टेढ़े - मेढ़े रास्ते, पहाड़, नदियों, झरनों, चट्टानों इत्यादि के समावेश से प्राकृतिक सुन्दर दृश्य उत्पन्न किया जाता है । सममित (symmetry) तथा समानता (uniformity) नहीं रखी जाती है , जिससे बनावटीपन नजर न आये ।
इस उद्यान कला की चट्टानें तथा पत्थर ढाँचा बनाते हैं, जिन्हें पेड़ - पौधों से अलंकृत किया जाता है, जो कि माँस एव वस्त्र के समान होते हैं तथा जल इन्हें जीवन प्रदान करता है । जल में सितारे गुणित होते हैं , चन्द्रमा का आकर्षण होता है । जिससे अन्धेरे में प्रकाश की किरण प्रज्जवलित होती हैं । ये उद्यान शान्ति एवं सौम्यता प्रदान करते हैं । यहाँ बैठकर मनुष्य चिन्तामुक्त होता है ।
इस विधि में लॉन भी ऊँचे - नीचे ढलावदार होते हैं । पेड़ झुन्ड में लगाये जाते हैं, जिनके मध्य में झाड़ियाँ लगायी जाती है । वृक्षों पर फूलों वाली लतायें चढ़ाई जाती हैं । लैंड स्केप गार्डन में सुन्दर मूर्ति , मकान , झरने , फव्वारे या अन्य रचनायें भी बनायी जाती हैं । टेढ़ी - मेढ़ी बहती नदी , झर - झर गिरता झरना , तालाब में तैरती बत्तखें , बगुले , सारस व अन्य पक्षी , कबूतरों व अन्य चिड़ियाओं का स्थान इत्यादि प्राकृतिक दृश्यावली इनकी विशेषतायें हैं ।
3. स्वतन्त्र प्रारूप ( Free Style ) -
इस विधि को Picturesque Style या Artististic Style भी कहते हैं । ये उद्यान बनावटी (Formal) तथा लैंड स्केप गार्डनिंग के सम्मिश्रण होते हैं । इनमें सुविधानुसार दोनों तरह के डिजाइनों का उपयोग किया जाता है, जिससे कि ये कलात्मक लगते हैं ।
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आप एक उद्यान का रेखांकन कैसे करेंगे?
उद्यान का रेखांकन ही वह व्यवस्था है, जिसके अनुसार उद्यान स्थापित किया जाता है अतः उद्यान का नक्शा पहले कागज पर बना लिया जाता है ।
रेखांकन के लिये आधाभूत सिद्धान्त उद्यान की प्रकार (Style of Garden) पर निर्भर करते हैं । अर्थात उद्यान का बनावटी (Formal) या लैंडस्केप (Land scape) या स्वतन्त्र (Free Style) या जापानी (Japane), प्रारूप (Style) स्थापित करना है ।
इसके अनुसार ही पौधे, संरचनायें व रास्ते बनाये जाते हैं । उद्यान की कुछ आवश्यक आकृतियाँ (Essential Features) होती हैं ।
जो कि आवश्यक रूप से बनाई जाती हैं -
- बाड़ ( Fence )
- सड़क एवं रास्ते ( Roads and Paths )
- वृक्ष ( Trees )
- बाढ़ ( Hedge )
- झाड़ियाँ ( Shrubs )
- हरियाली ( Lawn )
- लतायें ( Climbers )
- पुष्प क्यारियाँ ( Flower beds )
- सीमायें ( Borders )
- सब्जी एवं फल वाले पौधे ( Plants for Vegetables and Fruits )
- कम्पोस्ट के गड्ढे ( Compost Pits )
इसके उपरान्त उद्यान को अलंकारों (ornaments) से सजाया जाता है, जिन्हें उद्यान अलंकार (Garden Ornaments) कहते हैं ।
आवश्यक आकृतियाँ ( Essential Features )
1. बाड़ ( Fence ) -
उद्यान का क्षेत्र दीवार अथवा कांटे वाले तारों की बाड़ से घिरा होना चाहिये । इससे उद्यान का रक्षण होता है तथा एकांत (privacy) मिलती है ।
2. सड़क एवं रास्ते ( Roads and Paths ) -
उद्यान में आवागमन के लिये सड़क एवं रास्तों की सुव्यवस्था होनी चाहिये । मुख्य द्वार के पास चौड़ी सड़क, तथा मोटर कार घुमाने के लिये अर्द्धचन्द्राकार सड़क तथा गैरेज की व्यवस्था होनी चाहिये । उद्यान के अन्दर कंकरीट अथवा सीमेन्ट की सड़कें यथा स्वरूप होनी चाहिये । अन्दर घूमने के लिये रास्ते भूमि से ऊँचे होने चाहिये ।
3. वृक्ष ( Trees ) -
उद्यान के लिये अलंकृत (Ornamental) वृक्ष आवश्यक होते हैं, क्योंकि वे उद्यान की शोभा बढ़ाते हैं तथा गर्मियों में छाया प्रदान करते हैं । वृक्षों का सबसे बड़ा गुण यह है , कि ये लम्बे समय तक बने रहते हैं । रास्ते के किनारे - किनारे छोटे पंक्तिबद्ध वृक्ष अति सुन्दर लगते हैं । उद्यान के उत्तर व पश्चिम में लम्बे वृक्ष उद्यान को ठन्डी व गर्म हवाओं से बचाते हैं ।
4. बाढ़ ( Hedge ) -
उद्यान के चारों और तथा उद्यान के क्षेत्रों को विभाजन करने के लिये बाड़ का उपयोग किया जाता है । सुन्दर पत्तियों व फूलों वाली बाड़ सुन्दर होती हैं ।
5. झाड़ियाँ ( Shrubs ) -
उद्यान की शोभा बढ़ाने के लिये झाडियाँ बहुत उपयोगी होती सी सुन्दर एवं खुशबूदार फूलों वाली झाड़ियाँ सुन्दरता एवं स्वच्छता बढ़ाती हैं तथा मनमोहक प्रभाव उत्पन्न करती हैं । ये लम्बे समय तक लगी रहती हैं तथा इनसे विभिन्न आकृतियाँ भी बनायी जा सकती हैं । बहुत से झाडियों वाले पौधे एक स्थान पर संयुक्त प्रभाव ( combined effect ) उत्पन्न करते हैं ।
6. हरियाली ( Lawn ) -
उद्यान के लिये लॉन अति आवश्यक होते हैं । ये उद्यान में सुन्दर कालीन का काम करते हैं । लॉन की स्थिति उद्यान में सामने की ओर या पीछे की ओर भी हो सकती है । लॉन के चारों और एक वर्षीय (annual) पौधे सुन्दर लगते हैं । इनका आकार वर्गाकार या आयताकार अच्छा रहता है । ये मुख्यतः समतल भूमि में लगाये जाते हैं लैंड स्केप गार्डनस् में ऊंचे - नीचे व ढलावदार स्थानों में भी लॉन लगाये जाते हैं । लॉन के आधार पर ही अन्य पौधों का रेखाकंन किया जाता है ।
7. लतायें ( Climbers ) -
लताओं का उपयोग किन्हीं संरचनाओं पर चढ़ा कर किया जाता है, जैसे मुख्य द्वार, द्वार, गोले, परगोले, वृक्ष एवं झाडियाँ इत्यादि । बहुत सी सुन्दर फूलों वाली लतायें हैं, जिनका उपयोग सुन्दरता बढ़ाने के लिये किया जा सकता है ।
8. पुष्प क्यारियाँ ( Flower beds ) -
उद्यान की सजावट के लिये एकवर्षी ( annual ) फूलों वाले पौधों की विभिन्न आकार वाली क्यारियाँ अति आवश्यक होती हैं । ये मुख्यतः लॉन के किनारे अथवा रास्तों के किनारे पर लगाये जाते हैं ।
9. सीमायें ( Borders ) -
किन्हीं विशेष स्थानों को शोभायमान करने के लिये हरबेशियस तथा शरबरी बार्डरस् का उपयोग किया जाता है ।
10. सब्जी एवं फल वाले पौधे ( Plants for Vegetables and Fruits ) –
सब्जी तथा फलों वाले पौधे भी उद्यान के लिये आवश्यक होते हैं । इनके लिो स्थान मुख्यतः बंगले के पीछे होता है या इनके स्थान को बाड़ से ढक दिया जाता है ।
11. कम्पोस्ट के गड्ढे ( Compost Pits ) -
उद्यान में लगाये जाने वाले पौधों के लिये खाद अति आवश्यक होती है । इसके लिये उद्यान में गिरे पेड़ - पौधों की पत्तियों से कम्पोस्ट तैयार करना लाभदायक होता है ।
उद्यान - अलंकार ( Garden - Ornaments )
उद्यान के आवश्यक अंगों के अलावा, उद्यान को सजाने के लिये विविध अलंकारों का उपयोग किया जाता है ।
मुख्य अलंकार निम्नांकित होते हैं -
- चबूतरे ( Terraces )
- तालाब ( Pool )
- मत्स्य - ताल ( Fish Pond )
- पक्षियों के लिये स्थान ( Place for Birds )
- बैठने का स्थान ( Seats )
- सूर्य - घड़ी ( Sundials )
- टेढ़े - मेढ़े रास्ते ( Paved paths )
- सीढ़ियाँ ( Steps )
- अलंकृत फूलदान ( Ornamental Vases )
- कम ऊंची दीवार ( Low . Walls )
- परगोला ( Pergola )
- महराव ( Arches )
- फव्वारा ( Fountain )
- ग्रीष्म - गृह ( Summer house )
- शैलाय ( Rockery )
- खम्भे ( Pillars )
- गुलाब - बाग ( Rosery )
- मूर्ति ( Statue )
अलंकृत उद्यान में उपरोक्त अलंकरणों का समावेश स्थान तथा स्थिति के अनुसार किया जाता है वृन्दावन उद्यान मैसूर चबूतरायुक्त (Terrace) उद्यान है । जो कि अति सुन्दर है ।
नाली के मध्य फव्वारों (Fountains) की पंक्तियाँ, सभी मुगल उद्यानों तथा आधुनिक उद्यानों में पायी जाती है । ग्रीष्मकाल में फचारों से निकलती जल धारायें बेहद मनमोहक प्रतीत होती हैं ।
शैलाय (Rockery) आधुनिक लैंडस्केप गार्डनस के आवश्यक अंग हैं । शैलाय (Rockery) से प्राकृतिक दृश्य उत्पन्न होता है ।
तालाब में तैरती बत्तखें, सारस तथा अन्य पक्षी सुन्दर प्रतीत होते हैं । जल में तैरती रंग - बिरंगी मछलियाँ बहुत अच्छी लगती हैं ।
परगोला तथा महराबों को एक भाग से दूसरे भाग के मध्य बनाकर उन पर फूलों वाली लतायें चढ़ाने से सुन्दर द्वारों का
कार्य करती हैं । उद्यान के ऊँचे - नीचे स्थानों को मिलाने का सीढियाँ अच्छा कार्य करती हैं । लैंड - स्केप गार्डनस् में टेढ़े - मेढ़े तथा ढलावदार रास्ते प्राकृतिक चित्र उपस्थित करते हैं ।
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व्यक्तिगत उद्यान का क्या तात्पर्य हैं?
व्यक्तिगत उद्यान (Private Garden) - ये व्यक्तिगत उद्यान होते हैं, इन उद्यानों में आवश्यक अंगों के अलावा अन्य उद्यान अलंकरणों का निर्माण मालिक की व्यक्तिगत इच्छा पर निर्भर करता है ।
अमातौर से इनका स्थान छोटा एवं सीमित होता है इनमें थोड़े स्थान में अधिक अलंकरणों का समावेश किया जाता है । इनमें रास्ते कम होते हैं ।
व्यक्तिगत रूचियों तथा सुविधाओं का अधिक ध्यान रखा जाता है । उद्यान की व्यवस्था बंगले के निर्माण के अनुसार होती है ।
इनमें आवश्यक अंगों के अलावा टैनिस या बैडमिन्टन कोर्ट, बच्चों के खेलने का स्थान, कार के लिये गैरेज शैलाय (Rockery), मत्स्य - ताल (Fish tank), गुलाब की क्यारी (Rosery) तथा रसोई उद्यान (Kitchen Garden) अवश्य होने चाहिये ।
व्यक्तिगत उद्यानों में लम्बे वृक्ष मकान के पीछे होने चाहियें ।
रसोई उद्यान भी पीछे के भाग में स्थित होना चाहिये तथा इसे सुन्दर बाड़ (Hedge) से ढक देना चाहिये ।
लॉन बंगले के सामने होना चाहिये, जिसके चारों और सुन्दर वार्षिक फूलों की क्यारियाँ होनी चाहियें ।
सामने के हिस्से में छोटी सुन्दर फूलों की झाड़ियाँ होनी चाहिये । शैलाय (Rockery) का स्थान एक कोने में होना चाहिये । पौधों की व्यवसा इस प्रकार की होनी चाहिये, जिससे पौधों को धूप ठीक प्रकार से मिले ।
स्नानागार के पास की खिड़की के पास सुगन्धित फूलों वाली झाड़ी ( Shrub ) लगानी चाहियें । बंगले में गोलाकार सड़क अधिक सुविधाजनक रहती है ।
बाहर की दीवार पर लताये चढ़ाना सुन्दर प्रतीत होता है । व्यक्तिगत उद्यान का अलंकरण मकान को केन्द्र मानकर करना चाहिये ।
सार्वजनिक उद्यान की क्या सार्थकता होती हैं?
सार्वजनिक उद्यान ( Public Garden ) - सार्वजनिक उद्यान जनता के उपयोग के लिये होते हैं ।
अतः इनकी व्यवस्था पूर्णत: उद्यान व्यवस्था सिद्धान्तों के आधार पर की जानी चाहिये ।
प्रत्येक संरचना का निर्माण सार्वजनिक उपयोग के आधार पर करना चाहिये । इन उद्यानों की व्यवस्था बनावटी (Formal), प्राकृतिक (Natural), स्वतन्त्र (Free style) या जापानी प्रारूप से स्थान तथा परिस्थिति के आधार पर की जाती है ।
इन उद्यानों में निम्नलिखित अंगों का समावेश अवश्य होना चाहिये -
- सड़क एवं रास्ते ( Roads and Paths )
- पुस्तकालय ( Library )
- क्लब ( Club )
- पिकनिक स्थान ( Picnic spot )
- मुख्य इमारत ( Main building )
- सभा मैदान ( Meeting Ground )
- नाव क्लब ( Boat Club )
- पार्किंग ( Parking )
- संसाधन ( Lavotary )
- बच्चों का पार्क ( Children Park )
- स्त्रियों का कोना ( Ladies Corner )
- अजायब घर ( Museum )
- चिड़ियाघर ( Zoo )
- जलपान - गृह ( Canteen )
उपरोक्त वस्तुओं के अलावा आवश्यक अंगों (Essential features) तथा उद्यान अलंकारों (Ornaments) का समावेश यथोचित ढंग से किया जाता है, सार्वजनिक उद्यान अधिकतर बड़े क्षेत्रों में बनाये जाते हैं ।
नगरों के बीच में सार्वजनिक पार्क छोटे स्थानों में बनाये जाते हैं ।
जैव - सौन्दर्य योजना से आप क्या समझते हैं?
जैव - सौन्दर्य योजना ( Bio - aesthetic Plan ) - राष्ट्र के विकास के लिये धन - धान्य पूर्ण होने के साथ - साथ वातावरण की सुन्दरता एवं स्वच्छता भी आवश्यक होती है ।
सुन्दर एवं स्वच्छ वातावरण आनन्दायक एवं स्वास्थ्यप्रद होता है । इसमें मनुष्य का मन प्रसन्न एवं शान्त होता है ।
प्रो० होगबेन के अनुसार “राष्ट्र को सुन्दर बनाने के लिये वनस्पति समूह (Flora) तथा जन्तु समूह (Fauna) की संयत योजना को जैव - सौन्दर्य योजना (Bio - aesthetic plan) कहते हैं ।"
इस योजना के अन्तर्गत 'सम्पूर्ण देश में जंगली जीव - जन्तुओं का संरक्षण तथा सुन्दर पेड़ पौधों को लगाना' आता है ।
पूरे देश में सुन्दर शाकीय (foliage) तथा पुष्पों वाले पेड़ पौधों को लगाने की योजना बनानी चाहिये ।
नदियों, नहरों, सड़कों, झीलों, तालाबों आदि के किनारे सुन्दर वृक्ष लगाने चाहियें । इनके अतिरिक्त बेकार पड़ी भूमि में वृक्षारोपण करना चाहिये ।
देश में गांवों तथा नगरों का योजनाबद्ध ढंग से निर्माण होना चाहिये ।
हालांकि हमारे देश में प्राकृतिक वन सम्पदा बहुत अधिक है, तथापि अब देश में सुन्दर फूल वाले वृक्षों तथा क्षुपों (Shrubs) को लगाना अति आवश्यक है ।
हमारे घने बसे नगरों में बहुत अधिक गन्दी बस्तियाँ (slum areas) हैं, उनको योजनाबद्ध ढंग से खुला करने तथा पेड़ - पौधों को लगाने से वातावरण सुधर सकता है ।
नयी बस्तियों का निर्माण अच्छे योजनाबद्ध ढंग से होना चाहिये, जिससे बस्तियाँ एक उद्यान के समान लगें ।
चौड़ी सड़कें तथा बस्तियों के बीच पार्क होने चाहियें । मकान खुले एवं हवादार होने चाहियें । उनमें अलंकृत पेड़ - पौधों एवं रसोई उद्यान का स्थान होना चाहिये ।
भारत में नया योजनाबद्ध नगर चण्डीगढ़ हैं । राष्ट्र का अलंकरण प्राकृतिक रंगों से होना चाहिये ।
जैसे - लाल गुलमोहर, पीले अमलतास, नीले गुलमोहर (Jacaranda Spp.), आरक्त (Scarlet) कोल विलिस (Colvilleis), लाल पांगली (Erythrine), गुलाबो (Lagerstroemias) से सजावट की जानी चाहिये ।
नगरों में व्यक्तिगत (Private) बंगलों, मकानों एवं कोठियों में अलंकृत उद्यान लगाने चाहिये ।
सार्वजनिक स्थानों, सड़कें, पार्क, नदियों के घाट, प्लेटफार्म, सार्वजनिक इमारतों (buildings) ऐतिहासिक किले, महल, मकबरे, होटल, विश्वविद्यालय स्कूल, अस्पताल न्यायालय, डाकघर तथा अन्य संस्थानों को पेड़ - पौधों से सजाया जाना चाहिये ।