भारत में वनों की स्थिति रिपोर्ट - भारतीय भौगोलिक एवं जनसंख्यात्मक परिवेश
गत शताब्दियों में भारत में वनों का इतना अधिक दोहन हुआ है, कि वर्तमान भारत में वनों की स्थिति अच्छी नहीं है ।
भारत में वनों की स्थिति रिपोर्ट - वन पृथ्वी पर मानवता की अमूल्य निधि हैं ।
वे कृषि एवं उद्योग के ही नहीं अपितु समस्त अर्थव्यवस्था के अनिवार्य अंग हैं ।
आदिकाल से सभी ने भारत में वनों के महत्त्व को स्वीकारा गया है ।
भारत में वनों की स्थिति रिपोर्ट |
भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2019 - 20 (Indian Forestry Report)
वनों के विस्तृत राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व को देखते हुए ही राष्ट्रीय वन नीति को अपनाकर भारत ने अनेक वन विकास के कार्यक्रमों का आयोजन किया है एवं साथ ही इनके क्रियान्वयन के लिए अनेक संस्थाओं का निर्माण भी किया है ।
भारत के वन संरक्षण अधिनियम 1980 तथा राष्ट्रीय वन नीति, 1988 में वन संरक्षण एवं वर्गीकरण हेतु स्पष्ट दिशा निर्देश दिए गए हैं, परन्तु वन क्षेत्र पर अत्यधिक दबाव बना हुआ है , क्योंकि 20 करोड़ से अधिक लोग यहाँ अपनी आजीविका के लिए वनों पर निर्भर है ।
इस सन्दर्भ में देश में वनावरण एवं वृक्षावरण की वैज्ञानिक निगरानी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हो जाती है तथा इसी परिप्रेक्ष्य में देहरादून स्थित भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग द्वारा प्रत्येक दो वर्ष पर रिमोट सेंसिंग आधारित उपग्रह चित्रण के माध्यम से देश में वनों एवं वृक्षों की स्थिति पर आधारित 'भारत वन स्थिति रिपोर्ट' ( Indian State of Forest Report ) जारी की जाती है ।
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भारत की पहली वन स्थिति रिपोर्ट, 1987 में जारी की गयी थी । इस श्रृंखला की 12 वीं भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2011, मार्च 2011 में जारी की गई है, जो अक्टूबर 2008 से मार्च 2009 तक के उपग्रह आंकड़ों पर आधारित है ।
भारतीय परिस्थितियों के सन्दर्भ में अक्टूबर - दिसम्बर का समय वनावरण मानचित्रण सम्बन्धी उपग्रह आंकड़ों को प्राप्त करने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त रहता है, क्योंकि इस समय में आकाश मेघ मुक्त एवं बादल रहित रहता है, वन स्थिति रिपोर्ट, 2011 में भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह रिसोर्ससेट- I के सेंसर IRS - P6LISS III द्वारा 1 : 50,000 के मापक तथा 23.5 मीटर के विभेदीकरण पर आधारित आंकड़े प्रस्तुत किए गए हैं ।
वन स्थिति रिपोर्ट, 2011 के प्रमुख तथ्य निम्न प्रकार हैं -
( 1 ) देश में कुछ वनाच्छादित क्षेत्र 6,92,027 वर्ग किमी ० में है, जोकि कुल भू - भाग का 21.05 प्रतिशत है ।
इसका वितरण इस प्रकार है - ( i ) अति सघन वनों का विस्तार 83,471 वर्ग किमी ० में है, जोकि कुल क्षेत्र का 2.54 प्रतिशत है ।
( ii ) मध्यम सघन वनों का विस्तार 3,20,736 वर्ग किमी ० में है, जोकि कुल क्षेत्र का 9.76 प्रतिशत है ।
( iii ) खुले वनों का विस्तार 287 वर्ग किमी ० में है, जोकि कुल क्षेत्र का 8.75 प्रतिशत है ।
( 2 ) कुछ वन एवं वृक्षावरण 78.28 मि ० हैक्टेअर है ( 7,82,900 वर्ग किमी ० ) है, जो कि देश के कुछ भौगोलिक क्षेत्र का 23.81 % है । इसमें 21.05 % वन तथा 2.76 % वृक्षावरण है ।
( 3 ) यदि 4000 मीटर ऊँचाई स्तर ( जिसमें ऊपर के क्षेत्र में वृक्ष और वनस्पतियाँ बहुत कम होते हैं ) ऊपर के क्षेत्र ( 1,83,135 वर्ग किमी ० ) को हटा दिया जाए, तो वन और वृक्षावरण का क्षेत्र कुल भौगोलिक क्षेत्र का 25.22 % हो जाता है ।
( 4 ) 2009 के आकलन की तुलना में 2011 के आकलन में वन क्षेत्र में 376 वर्ग किलोमीटर की कमी आई है ।
( 5 ) पिछले आकलन की तुलना में वर्तमान में पर्वतीय और जनजातीय जिलों में वनाच्छादित क्षेत्र में क्रमश: 548 वर्ग किमी ० और 679 वर्ग किमी ० की कमी आई है ।
( 6 ) देश के लगभग एक चौथाई वन क्षेत्र वाले देश के उत्तर - पूर्वी राज्यों में वन क्षेत्र में 549 वर्ग किमी ० की शुद्ध कमी हुई है ।
( 7 ) देश में मैंग्रोव्स ( Mangroves ) क्षेत्र में 23.44 वर्ग किमी ० की वृद्धि हुई है और वर्तमान में यह क्षेत्र 4,622 वर्ग किमी ० है ।
( 8 ) भारत के वनों एवं वृक्षों का उगता स्टॉक 6,047.15 मि ० क्यूबिक मीटर है, जिसमें से 4,498.73 मि ० क्यूबिक मी ० वनों के अन्दर व 1,548.42 मि ० क्यूबिक मी ० वनों के बाहर है ।
( 9 ) बांस उगाने वाले क्षेत्र का कुछ अनुमान 13.96 मि ० हैक्टेअर है ।
( 10 ) देश के वनों में कुछ कार्बन स्टॉक 6,663 मि ० टन अनुमानित किया गया है ।
( 11 ) वनों से लकड़ी का वार्षिक उत्पादन 3.175 मि० क्यू० मी० अनुमानित किया गया है ।
( 12 ) वनों से ईंधन लकड़ी का वार्षिक उत्पादन 1.23 मि ० टन है ।
( 13 ) देश में घर निर्माण, फर्नीचर, औद्योगिक निर्माण एवं कृषि उपकरणों में लकड़ी का वार्षिक उपभोग 48 मि ० क्यूबिक मीटर है ।
भारत में वन स्थिति रिपोर्ट 2020
वन एवं वृक्ष जीवन का आधार हैं ।
हरे - भरे खूबसूरत पेड़.......दूर तक फैले हुए भला किसे सुखद नहीं लगते, किन्तु संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक वर्ष धरती के धरातल से एक प्रतिशत जंगलों का सफाया किया जा रहा है ।
इस भाँति प्रत्येक सप्ताह वसुंधरा के में से पांच लाख हैक्टेअर में फैले जंगल (वन) काट लिए जाते हैं ।
वास्तव में नगरीकरण का दबाव, जनसंख्या वृद्धि एवं विकास की लालसा हमें निरन्तर हरियाली से वंचित कर रही है ।
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ऐसे समय में जबकि हमारे वैज्ञानिक हमें बार - बार ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से चेता रहे हैं और 2013 में उत्तराखण्ड में आई भीषण बाढ़ जैसी प्राकृतिक त्रादियाँ हमें भीषण चेतावनी दे रही हैं, वनों का नष्ट होना एवं वन्य क्षेत्र का सिकुड़ते जाना एक गंभीर समस्या है ।
दुनिया के अन्य देशों के साथ ही भारत में वनों की स्थिति अधिक अच्छी नहीं है ।
विशेष रूप से उत्तर के हिमालय क्षेत्र एवं दक्षिण के पठारी क्षेत्र में वनों का दोहन तेजी से हो रहा है ।
भारत में वनों की वर्तमान स्थिति जानने के लिए पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के अधीन 'भारतीय वन सर्वेक्षण' द्वारा किया जाने वाला द्विवार्षिक वन मूल्यांकन एवं विभिन्न आधारों पर किये जाने वाले अन्य वन मूल्यांकनों का अवलोकन महत्त्वपूर्ण हैं ।
भारत में वनों की स्थिति ( Status of Forest in India )
भारत का कुल क्षेत्रफल 329 मिलियन हेक्टेयर है ।
जिसमें से लगभग 196 मिलियन हेक्टेयर कृषि कार्य में प्रयुक्त होता है, जबकि शेष भूमि अनेक भू - समस्याओं यथा - भू कटान, बाढ़, रेह, अम्लता आदि से ग्रसित है ।
साथ ही लगभग 600 मिलियन टन उपजाऊ मृदा एवं भूमि के पोषक तत्त्व प्रति वर्ष वर्षा जल में बह जाते हैं ।
साथ ही पर्यावरण प्रदूषण न केवल नगरों वरन गाँवों तक में खतरे की घंटी बजाने लगा है ।
इन सबका प्रमुख कारण वन क्षेत्र की अपर्याप्तता है, जबकि वनों के कम होने का प्रमुख कारण जनसंख्या का दबाव है ।
भारत का कुल क्षेत्रफल सम्पूर्ण विश्व के भू - क्षेत्र का मात्र 2.4 प्रतिशत है जबकि जनसंख्या सम्पूर्ण विश्व की 16 प्रतिशत एवं पशुधन 10 प्रतिशत है ।
ऐसे में प्राकृतिक संसाधनों, विशेष रूप से वन्य संसाधनों, का अत्यधिक दोहन हुआ है तथा वर्तमान में वनों का विस्तार 15 प्रतिशत से भी कम रह गया है, जबकि आदर्श रूप में इसके 33 प्रतिशत से अधिक की आवश्यकता है ।
वास्तव में जितनी तेजी से हम अपरिचित - असंतुष्ट विकास के उच्चतम शिखरों को छूने के लिए भागे जा रहे हैं उतनी ही तेजी से वन्य विनाश एवं पर्यावरण असन्तुलन का पहाड़ उपर उठता जा रहा है ।
बेलगाम विकास की रौ में जिस तेजी से हम प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहे हैं, आखिर कब तक वे बचेगें और उनके चुक जाने पर...कैसे हम जी पायेगें?
सम्पूर्ण विश्व के साथ यह प्रश्न भारतीय समाज के लिए महत्त्वपूर्ण हो गया है ।
भारत में आज एक ओर सदियों से परम्परागत आध्यात्मिक जीवन की धुरी पर घूमती नैसर्गिक ग्रामीण सहज प्रवृत्ति सिमटती जा रही है, तो दूसरी ओर भौतिकवादी मानसिकता के नगर विकसित हो रहे हैं ।
भारतीय परिवेश की इस नवीन विडम्बना को लोकेश विश्वभारती की इन पंक्तियों में स्पष्ट किया जा सकता है - "वह कट गया जो पेड़ था, वह मर गया जो गाँव था । शहर फैला इस कदर, कहीं हाथ था कहीं पाँव था ।"
वास्तव में, जब तक भारतीयों का रुझान अधिकाधिक ग्रामीण परिवेश की ओर रहा तब तक देशवासियों के क्रियाकलाप पर्यावरण से सामंजस्य करते रहे किन्तु जैसे - हम नगरीकरण सरीखी नवीन प्रवृत्तियों को अपनाते जा रहे हैं, वैसे - वैसे हमारे कदम वन्य जीवन एवं पर्यावरण के विरुद्ध उठने लगे हैं ।
क्रिया की प्रतिक्रिया अवश्य होती है - वन्य विनाश एवं आधुनिक जीवन शैली के दुष्परिणाम खुलकर हमारे सामने आने लगे हैं ।
2013 में उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती उत्तराखण्ड में हुई भीषण तबाही इसी का प्रबल संकेत है ।
श्रीमद्भगवद्गीता' के अनुसार,
“वन हम सब लोगों को जीवन प्रदान करते हैं । इसलिए वृक्षों की सदैव सुरक्षा करनी चाहिए ।"
स्वतंत्रता पश्चात् भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहरलाल नेहरू ने उगते हुए वृक्ष को राष्ट्र की प्रगति का जीवित प्रतीक माना है ।
कृषि भूमि की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए एवं पर्यावरण को स्वच्छ बनाये रखने के लिए वन नितान्त आवश्यक हैं ।
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भारतीय भौगोलिक एवं जनसंख्यात्मक परिवेश ( Indian Geographical and Demographic Environment )
भारत एक विशाल देश है ।
इसका क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग कि ० मी ० है ।
यह पूर्णत: उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है तथा इसकी मुख्य भूमि 8EAN और 37E6N उत्तरी अक्षांश और 68E7N और 97E25N पूर्वी देशान्तर के मध्य फैली हुई है ।
इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण तक 3,214 कि ० मी ० एवं पूर्व से पश्चिम तक 2,933 कि ० मी ० है । इसकी भूमि सीमा लगभग 15,200 कि ० मी ० है ।
मुख्य भूमि, लक्षद्वीप समूह एवं अंडमान - निकोबार द्वीप समूह के समुद्र - तट की कुल लम्बाई 7,516.6 कि ० मी ० है ।
विश्व के इस सातवें विशालतम् देश को हिमालय पर्वत एवं हिन्द महासागर शेष विश्व से अलग प्रकृत सीमायें प्रदान करते हैं ।
भारत के सीमावर्ती देशों में उत्तर - पश्चिम में पाकिस्तान और अफगानिस्तान हैं ।
उत्तर में चीन, नेपाल और भूटान हैं । पूर्व में म्यांमार और बंग्लादेश स्थित हैं, जबकि दक्षिण की ओर मन्नार की खाड़ी और पाक जलडमरूमध्य भारत को श्रीलंका से अलग करते हैं ।
भारतीय पर्यावरणीय परिवेश सम्पूर्ण विश्व में अनूठा है । इसका निर्माण अत्यन्त विविधतापूर्ण तत्त्वों से मिलकर हुआ है ।
इसमें प्रमुख है - भारत की भू - तत्वीय संरचना, इसे तीन भागों में बाँटा जा सकता है - उत्तर एवं पूर्व में हिमालय एवं पहाड़ी भू संरचना, मध्य में वन - संवर्धन सिंधु - गंगा की मैदानी भू - संरचना एवं दक्षिण में प्रायद्वीपीय भू - संरचना ।
भारत की नदियाँ यहाँ के सुरमई वातावरण के निर्माण में महत्त्वपूर्ण है ।
इन्हें चार समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है -
( 1 ) हिमालय की नदियाँ, इनमें बर्फ पिघलने से पानी आता है इसलिए ये सदानीरा हैं अर्थात् इनमें वर्षभर निर्बाध जल प्रवाह रहता है,
( 2 ) प्रायद्वीपीय नदियाँ, इनमें वर्षा का पानी आता है इसलिए इनका प्रवाह घटता - बढ़ता रहता है,
( 3 ) तटीय नदियाँ, ये छोटी एवं सीमित लम्बाई की नदियाँ हैं । ये बारहमासी नहीं हैं, एवं
( 4 ) अंत: स्थलीय प्रवाह क्षेत्र की नदियाँ ।
ये नदियाँ अपना जल समुद्र तक लेकर नहीं जाती तथा बीच में ही सूख जाती हैं, साथ ही ये भी बारहमासी नहीं हैं ।
जलवायु की दृष्टि से भारत उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में आता है तथा इस कारण यहाँ विविध प्रकार की वनस्पति पाई जाती है ।
भारत को आठ वनस्पति क्षेत्रों में बाँटा जा सकता है -
पश्चिमी हिमालय, पूर्वी हिमालय, असम, सिंधु का मैदान, गंगा का मैदान, दक्कन, मालाबार एवं अंडमान ।
प्राकृतिक पर्यावरण की व्यापकता को भारत में पाये जाने वाले 89 हजार से अधिक किस्म के जीव - जंतुओं में भी देखा जा सकता है ।
इनमें 2,577 प्रोटिस्टा ( आद्यजीव ), 5,070 मोलस्क प्राणी, 68,389 एंथ्रोपोडा, 119 प्रोटोकॉडेंटा, 2,546 किस्म की मछलियाँ, 209 किस्म के उभयचारी, 456 किस्म के सरीसृप, 1,232 किस्म के पक्षी, 390 किस्म के स्तनपायी जीव और 8,329 अन्य अकशेरुकी आदि शामिल हैं ।
भारत एक कृषि प्रधान देश है ।
जनगणना 2011 के अनुसार भारत में 83.3 मिलियन जनसंख्या गांवों में निवास करती, जबकि 37.7 मिलियन जनसंख्या नगरीय क्षेत्रों में निवास करती है ।
इस प्रकार गाँवों में जनसंख्या का प्रतिशत 68.8 हैं एवं नगरों में यह 31.2 प्रतिशत है ।