भारत में पाई जाने वाली देसी गाय की नस्लें एवं उनकी पहचान के लक्षण ( indian desi cow breeds and identity characters)
भारतीय देसी गाय की नस्लों की पहचान (indian desi cow breeds and identity) सरल है, इनमें कूबड़ (Humped) पाया जाता है, जिसके कारण ही इन्हें कूबड़ धारी भारतीय नस्लें (Humped or Zebu Breeds) भी कहा जाता है, अथवा इन्हें प्राय: देसी नस्ल (desi cow) के नाम से ही पुकारा जाता है।
भारतीय देसी गाय का वैज्ञानिक नाम ( Indian Desi Cow Scientific Name )
गाय का वैज्ञानिक नाम - 'बोस इंडिकस Bose Indicus'
भारतीय देसी गाय की नस्लों की संख्या ( Number Of Indian Desi Cow Breeds )
भारत में देसी गाय (desi cow) की लगभग 30 नस्लें तथा मान्यता प्राप्त लगभग 28 भारतीय देसी गाय की नस्लें पाई जाती है ।
इनके अलावा भी विभिन्न क्षेत्रीय एवं नई विकसित भारतीय देसी गाय की नस्लें (indian desi cow breeds) भी है, जिनका विस्तृत विवरण उपलब्ध नहीं है ।
भारतीय देसी गाय की नस्लें एवं उनकी पहचान के लक्षण ( Indian Desi Cow Breeds Identity Characters )
भारत में विभिन्न भागों की जलवायु के अनुसार पशुओं की शारीरिक बनावट एवं गठन में विभिनता देखने को मिलती है।
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भारतीय गो-पशुओं की नस्लों के नाम
भारत में देसी गाय कि लगभग 28 नस्लें है, भारतीय देसी गाय की नस्लों (Indian Desi Cow Breeds) को तीन प्रकार से वर्गीकृत किया गया है- दुधाारु, भारवाही एवं द्विकाजी नस्लें
( 1 ) दुधारू नस्लें (Milch Breeds)
( i ) साहिवाल
( ii ) लाल सिंधी या सिंधी
( iii ) गिर
( 2 ) भारवाही नस्लें (Draught Breeds)
( i ) अमृत महल
( ii ) खिल्लारी
( iii ) हल्लीकर
( iv ) कंगायम, कंगनाड़ या कोन्गू
( v ) नागौरी या नागौड़
( vi ) मालवी, मन्थनी या महादेवपूरी
( vii ) गंगातीरी या शाहाबादी
( viii ) पंवार
( viiii ) खीरीगढ़
( x ) केनकथा या कैनवरिया
( xi ) सीरी या त्रभुम
( xii ) बरगुर
( 3 ) द्विकाजी अथवा द्विप्रयोजनीय नस्लें (Dual Breeds)
( i ) देवनी
( ii ) हरियाणा
( iii ) मेवाती या कोसी
( iv ) थारपारकर
( v ) कॉकरेच
( vi ) कृष्णा घाटी
( vii ) अंगोल या ओंगोल या नेल्लोर
( viii ) राठ या राठी
( viiii ) गोलाओं
( x ) निमाड़ी या खारगोनी
A. भारत में पाई जाने वाली देसी दुधारू गाय की नस्लें एवं उनकी पहचान के लक्षण
भारतीय देसी दुधारू गाय की नस्लें ( Indian Desi Cow Milch Breeds ) इन दुधारू नस्लों के पशुओं का शरीर भारी, गलकम्बल तथा मुतान लटके हुए और सींग सिर के दोनों और निकल कर प्राय: मुड़े हुये होते हैं ।
साहीवाल, लालसिन्धी एवं गिर इस समूह की प्रमुख भारतीय देसी नस्लें है । इस वर्ग की गायें अधिक दूध देने वाली होती हैं, बैल कृषि कार्यों के लिये सुस्त होते हैं ।
इन दुधारू नसलों का विवरण निम्न प्रकार है-
साहीवाल नस्ल की गाय के बारे में पूरी जानकारी - इसे मोण्टगोमरी , लम्बीवार , गोला , मुल्तानी , तेली आदि विभिन्न नामों से भी जाना जाता है ।
साहीवाल नस्ल की गाय का जन्म स्थान
इसका जन्म स्थान पाकिस्तान का मोण्टगोमरी जिला है । इसलिये इसे मोण्टगोमरी भी कहते हैं ।
भारत में साहीवाल नस्ल की गाय कहां पाई जाती है?
इस नस्ल के पशु सामान्यत : पंजाब , उत्तर प्रदेश , बिहार , मध्य प्रदेश , दिल्ली तथा देश के बड़े - बड़े शहरों में पाये जाते हैं ।
साहीवाल नस्ल की गाय की पहचान के शारीरिक लक्षण
साहीवाल नस्ल की गाय के शारीरिक लक्षण – यह भारत की सबसे अधिक दूध देने वाली गाय की नस्ल मानी जाती है, इस नस्ल के पशु सामान्यत: लाल , धुंधले काले और सफेद रंग के होते हैं ।
अधिकांश पशु गहरे लाल रंग के होते हैं । कुछ पशु सफेदी लिये हुये , गहरे भूरे या काले रंग के भी मिल जाते हैं ।
इनका शरीर सममित ( Symmetrical ) होता है । ये पशु साधारणतः लम्बे और मांसल होते हैं ।
माथा चौड़ा तथा शरीर भारी - भरकम होता है । इनकी त्वचा चिकनी तथा ढीली होती है ।
नर पशु का ककुद ( कूबड़ ) कड़ा ( Massive Hump ) , गलकम्बल विपुल आयतनी ( Voluminous Dewlap ) और मुतान निलम्बी ( Pendulous Sheath ) होता है ।
इनका शरीर ऊपर से नीचे तक फैला हुआ , भारी - भरकम ( Heavy ) तथा सममित ( Symmetrical ) होता है ।
गर्दन लम्बी तथा तली एवं नाक रोमन होती है । गलकम्बल बड़ा तथा भारी होता है । छाती चौड़ी एवं गहरी होती है ।
मादा में ललाट मध्यम आकार का तथा पतला एवं नरों का ललाट स्थूल होता है । नाक रोमन होती है । इनके सींग छोटे एवं मोटे होते हैं , जिनकी लम्बाई 7.5 से ० मी ० से अधिक नहीं होती ।
शरीर के आकार के आनुपातिक ( Proportionate ) सुन्दर पैर होते हैं भूमि को छूती हुई , बड़े - काले झब्बे वाली पूँछ होती है । मादा में नाभि की खाल लटकती हुई होती है ।
गायों का अयन बड़ा , आनम्य ( Pliable ) और सुव्यवस्थित , सुन्दर एवं बराबर लम्बे थने वालों होता है ।
दुग्ध शिराएँ बड़ी - बड़ी , लम्बी , टेढ़ी तथा प्रत्यास्थ ( Elastic ) होती हैं इनकी त्वचा अच्छी गुणता वाली ढीली और मुलायम होती है । नरों में ककुद स्थूल तथा बड़ा होता है ।
गायों के सींग कभी - कभी हिलने वाले होते हैं । सीधी नाक तथा छोटी पूँछ , इनका अयोग्य लक्षण माना जाता है ।
साहीवाल नस्ल की गाय का दुग्ध उत्पादन क्षमता
साहीवाल नस्ल की गाय का दुग्ध उत्पादन क्षमता - ग्रामीण क्षेत्रों में इस जाति की गायों का औसत दुग्ध उत्पादन 1,360 किया तथा डेरी फार्मों पर 2,720 किग्रा तक आंका गया है ।
इनकी अधिकतम दुग्ध उत्पादन क्षमता 4,535 किग्रा तक आंकी गयी है ।
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2. लाल सिंधी या सिंधी नस्ल की गाय के बारे में पूरी जानकारी
लाल सिंधी या सिंधी नस्ल की गाय के बारे में पूरी जानकारी - इसे मलीर तथा लाल करांची भी कहते हैं ।
लाल सिंधी या सिंधी नस्ल की गाय का जन्म स्थान
पाकिस्तान के सिंध प्रदेश का कोहिस्तान नामक भाग इस लाल सिंधी या सिंधी गाय की नस्ल के पशुओं का असली प्रजनन क्षेत्र माना जाता है ।
भारत में लाल सिंधी या सिंधी नस्ल की गाय कहां पाई जाती है?
इस नस्ल के पशु हैदराबाद ( सिंध ) क्षेत्र में भी बहुत बड़ी संख्या में पाये जाते हैं । सिंध प्रदेश के पश्चिमी भाग में इस लाल सिंधी या सिंधी गाय की नस्ल के शुद्ध- वंशीय पशु पाये जाते हैं, भारत में इस नस्ल के पशु कई बड़े - बड़े डेरी फार्मों पर रखे गये हैं ।
लाल सिंधी या सिंधी नस्ल की गाय के सामान्य विवरण
लाल सिंधी या सिंधी नस्ल की गाय के सामान्य विवरण - इस नस्ल के विभिन्न प्रकार की जलवायु में अपने को अनुकूल बनाने की क्षमता रखते है । तथा विभिन्न रोगों के लिये प्रतिरोधी होते हैं ।
देश के विभिन्न भागों में इस नस्ल के सांडों को क्रमोन्नतिकरण के लिये प्रयोग किया गया है ।
इस नस्ल के पशुओं की कोरिया , मलाया , ब्राजील ओर क्यूबा इत्यादि देशो में बड़ी मांग है । सिंधी नस्ल के पशुओं का प्रमुख रंग गहरा लाल ( Dark deep red ) होता है , परन्तु हल्के पीले ( Duli yellow ) से लेकर गहरे कत्थई ( Dark brown ) रंग के पशु भी पाये जाते है ।
सांडों का रंग अधिक गहरा होता है । पशुओं का आकर मध्यम , सममित और ठोस होता है । गायों का रूप त्रिकोणात्मक होता है ।
गाय अत्यंत सीधी होती हैं । सिर औसत आकार का तथा सुविकसित होता है । सांड देखने में पौरूषोचित गुण सम्पन्न होता है ।
सींग मोटे तथा औसत आकार के होते हैं , जिनकी नोंक गुट्ठल होती है । कान नीचे झुके हुए , कुकद तथा मुतान पूर्ण विकसित होते हैं । गायों के अवन बहुत बड़े होते हैं ।
लाल सिंधी या सिंधी नस्ल की गाय की पहचान के शारीरिक लक्षण
लाल सिंधी या सिंधी नस्ल की गाय के शारीरिक लक्षण - सिर साधारण आकार का आनुपातिक होता है । ललाट चौड़ा जिस पर छोटे - छोटे बाल उगे होते हैं ।
चेहरा मध्यम आकार का व पूर्ण विकसित तथा काले थूथन , चौड़े नथुने और मोटे - मोटे ओष्ठायुक्त होता है । आँखे बड़ी - बड़ी होती हैं । कान मध्यम आकार के व लटकते हुये होते हैं ।
सींग छोटे एवं मोटे होते हैं , जिनका सिरा मोटा होता है । गर्दन लम्बी तथा मोटी होती है । गलकम्बल बड़ा पतला तथा मुलायम होता है । पैर सीधे , मध्यम आकार के तथा बलिष्ठ होते है ।
सांडों में ककुद तथा मुतान बड़े - बड़े होते हैं । पूंछ काले झब्बे युक्त पतली होती है । गायों का अयन बड़े आकार का लम्बा - चौड़ा तथा गहरा निलम्बी होता है , जो आगे अधिक तथा पीछे कम फैला रहता है ।
थन समान आकार तथा लम्बाई वाले होते हैं पेट पर सुविकसित ( Elastic ) और शाखीय दुग्ध शिराएँ होती हैं त्वचा , ढीली , आनम्य , मुलायम ( Mallow ) होती हैं काले रंग की त्वचा इस लाल सिंधी या सिंधी गाय की नस्ल का मुख्य लक्षण है ।
बैल कृषि कार्य में सुस्त , परन्तु देर तक काम करने की क्षमता रखने वाले होते हैं । रोमन नाक तथा हिलते सींग इस नस्ल के अयोग्य लक्षण माने जाते हैं ।
लाल सिंधी या सिंधी नस्ल की गाय की दुग्ध उत्पादन क्षमता
लाल सिंधी या सिंधी नस्ल की गाय की दुग्ध उत्पादन क्षमता - ग्रामीण दशा में 300 दिन के ब्यांततततत में , इनकी दुग्ध उत्पादन क्षमता 1,134 क्रिया तथा डेरी फार्मों पर 1,815 किग्रा तक रिकार्ड की गयी है ।
इनकी अधिकतम दुग्ध उत्पादन क्षमता 5,440 किग्रा तक पायी गयी है ।
सिंधी गाय ब्याने में नियमित होती है । बैल छोटे आकार के होने पर भी भारवाही पशुओं के रूप में बहुत काम करते हैं ।
गिर नस्ल की गाय की पूरी जानकारी - इस नस्ल को कठियावाड़ी , सूरती , डेकन ( Decan ) इत्यादि नामों से भी जाना जाता है ।
गिर नस्ल की गाय का जन्म स्थान
गिर नस्ल की गाय का जन्म स्थान, काठियावाड़ है । इनका उद्भव दक्षिणी काठियावाड़ के गिर जंगलो में माना जाता है । अब इस नस्ल के पशु शुद्ध रूप में दक्षिण काठियावाड़ के जूनागढ़ क्षेत्र में पाये जाते है इनको बड़ी संख्या में बहुत से पशु प्रजनन फार्मों एव गौशालाओं पर रखा गया है ।
गिर नस्ल की गाय का सामान्य विवरण
गिर नस्ल की गाय का सामान्य विवरण - यह नस्ल भारत की सबसे पुरानी नस्ल मानी जाती है । इन पशुओं का शरीर सुव्यवस्थित और गठीला होता हैं । ललाट प्रशस्त और उभरा होता है ।
कान लम्बे एवं ऐठे हुए तथा सींग टेढ़े होते हैं , जो सिर पर पाछे की ओर मुड़े होते हैं । इनका लोकप्रिय रंग सफेद होता है जिस पर चारों ओर लाल या कत्थई रंग के धब्बे होते हैं ।
गिर नस्ल की गाय की पहचान के शारीरिक लक्षण
गिर नस्ल की गाय के शारीरिक लक्षण - सिर साधारण लम्बा , परन्तु आभास में स्थूल होना इस जाति का अत्यंत महत्वपूर्ण गुण है । ललाट अत्यंत उभरा हुआ होता है , जो सामने से चिकना तथा गोल दिखाई पड़ता है ।
निचला जबड़ा शाक्ति शाली होता है । गलकम्बल बड़ा होता है । आँखे बड़ी - बड़ी तथा उभरी हुई होती हैं , जिनके ऊपर बड़ी - बड़ी भौहें ( Eye brows ) होती हैं कान बहुत बड़े - बड़े निलम्बी होते हैं , जो मुड़ी हुई पत्ती के समान लटके रहते हैं ।
सींग साधारण मोटाई- लम्बाई के होते हैं , जो माथे पर से पीछे तथा आगे की ओर S के रूप में मुड़े रहते हैं । नर पशुओं की गर्दन छोटी और मोटी होती है ।
गलकम्बल पतला तथा छोटी - छोटी सिकुड़न युक्त होता है , जो नरों में अधिक विकसित होता हैं कूल्हे की हड्डियाँ बाहर निकली हुई होती है ।
अयन का आकार मध्यम तथा पीछे ऊपर तक फैला हुआ होता है । थनों की लम्बाई 10-0 से 11-4 से ० मी ० होती है तथा वे पास - पास स्थित होते हैं ।
दुग्ध शिराएँ बहुत प्रमुख तथा शाखीय होती है त्वचा ढीली , आनम्य और अच्छी गुणता वाली होती है । पूँछ भूमि को छूती हुई सुन्दर तथा झब्बेयुक्त होती है ।
लाल रंग के अतिरिक्त अन्य किसी एक ही रंग का होना , इनका अयोग्य लक्षण है । इसके अतिरिक्त चपटा ललाट , सीधे तथा छोटे कान और यीधे सींग भी इनके अयोग्य लक्षण है ।
गिर नस्ल की गाय के दुग्ध उत्पादन क्षमता
गिर नस्ल की गाय के दुग्ध उत्पादन क्षमता - ग्रामीण दशा में 300 दिन के ब्यांत में औसत दुग्ध उत्पादन क्षमता 907 किग्रा तथा डेरी फार्मों पर 1,675 किग्रा तक रिकार्ड किया गया है ।
इनकी अधिकतम दुग्ध उत्पादन क्षमता 3,175 किग्रा तक पायी गयी है ।
गिर नस्ल के बैल बलिष्ठ, परन्तु सुस्त एवं आलसी होते हैं । भारवाहक पशुओं के रूप में इनका काफी प्रयोग किया जाता है ।
B. भारत में पाई जाने वाली देशी भारवाही गाय की नस्लें एवं उनकी पहचान के लक्षण
भारतीय देशी भारवाही गाय की नस्लें बहुत कम दूध देती हैं । बैल भारवाही कायों के लिये अच्छे होते हैं ।
डेरी पर रखे गये पशुओं में लगभग 42 प्रतिशत भारवाही पशु होते हैं । बैलों का प्रयोग खाली समय में यातायात तथा ग्रामीण उद्योग - धंधों में किया जाता है ।
भारवाही नस्लों को चार उपसमूहों में विभक्त किया गया है -
1. छोटे सींग वाले , जिनका रंग सफेद या धूसर होता है । इनका चेहरा तथा खोपड़ी , लम्बी एवं बनावट कुछ उन्नतोदर होती है ।
जैसे - नागौड़ तथा बछौर ।
2. वीणा के आकार के सींग वाले पशु , जिनका रंग धुसर , मस्तक चौड़ा , आँखें बड़ी - बड़ी , शरीर भारी तथा कार्य करने की क्षमता बहुत अधिक होती है ।
जैसे - कैनकथा तथा मालवी ।
3. मैसूर प्रकार के पशु , जिनका मस्तक बड़ा , सींग एक - दूसरे के पास से निकलकर लम्बे तथा नुकीले होते हैं । बैल चुस्त , जोशीले तथा तेज चाल वाले होते हैं ।
4. छोटे कद , काले - लाल अथवा काले - भूरे रंग के पशु , जिनके शरीर पर प्राय : सफेद रंग के बड़े - बड़े चकते होते हैं । सींग छोटे अथवा कुछ - कुछ वीणा के आकार के होते है ।
जैसे - हल्लीकार , खिल्लारी , अमृतमहल , वरगुर , कंगायम ।
अमृतमहल नस्ल की गाय के बारे में पूरी जानकारी - अमृतमहल भारत की सर्वोत्तम भारवाहक नस्ल के रूप में प्रसिद्ध है । इस नस्ल के पशु चुस्त, जोशीले तथा भड़कीले होते हैं ।
अमृतमहल नस्ल की गाय का जन्म स्थान
इस नस्ल का मूल स्थान कर्नाटक राज्य है । ये तमिलनाडु के दक्षिणी भाग में भी पर्याप्त संख्या में पाये जाते हैं ।
अमृतमहल नस्ल की गाय की पहचान के शारीरिक लक्षण
अमृतमहल नस्ल की गाय के शारीरिक लक्षण - अमृतमहल भारत की सर्वोत्तम भारवाहक नस्ल के रूप में प्रसिद्ध है ।
अमृतमहल नस्ल के पशु चुस्त , जोशीले तथा भड़कीले होते हैं । इनके सिर तथा सींगों की बनावट विशिष्ट प्रकार की होती है ।
इनका शरीर गठा होता है । पीठ छोटी व सीधी तथा पसलियाँ अच्छी शाक्तिशाली एवं गोल होती हैं । सींग लम्बे , महराबदार तथा गर्दन के दोनों ओर फैले रहते हैं ।
रंग भूरा , परन्तु सिर , गर्दन , ककुद तथा धड़ का रंग गहरा भूरा या काला होता है । अगली टाँगें लम्बी होती हैं । सींग लम्बे , महराबदार एवं पीछे तथा ऊपर को फैले हुए नुकीले होते हैं ।
कान छोटे - छोटे सुन्दर एवं सुविकसित होते हैं गलकम्बल तथा ककुद सुविकसित होते हैं मुतान अत्यंत छोटा होता है ।
त्वचा खिंची हुई होती है । पूँछ टखनों तक लटकती हुई , काले झब्बे युक्त होती है , जो अमृतमहल गाय की नस्ल के प्रमुख लक्षण हैं।
अमृतमहल नस्ल की गाय का कार्य उत्पादन क्षमता
अमृतमहल नस्ल की गाय का कार्य उत्पादन क्षमता - अमृतमहल के बैल छोटे , कार्यपटु , मेहनती तथा अधिक कार्यक्षमता वालेक होते हैं ये सड़क पर भारवाहन तथा अधिक समय तक कार्य करने वाले माने जाते हैं ।
अमृतमहल नस्ल की गाय का प्रजनन केन्द्र
1. राजकीय पशु प्रजनन फार्म , आजमपुर ( कर्नाटक ) तथा
2. राजकीय पशु प्रजनन फार्म , बोकापुर ( धारवाड़ ) में अमृतमहल गाय की नस्ल के पशु रखे गये हैं ।
2. राजकीय पशु प्रजनन फार्म , बोकापुर ( धारवाड़ ) में अमृतमहल गाय की नस्ल के पशु रखे गये हैं ।
खिल्लारी नस्ल की गाय के बारे में पूरी जानकारी- इसे खानदेशी तथा खिल्लारी नस्ल भी कहा जाता है ।
खिल्लारी नस्ल की गाय का जन्म स्थान
इस नस्ल का मूलस्थान कर्नाटक राज्य ही माना जाता है । गुकी सतपुड़ा पहाड़ी शृंखला में एवं महाराष्ट्र के दक्षिणी में भी खिल्लारी गाय की नस्ल के पशु पाये जाते हैं ।
खिल्लारी नस्ल की गाय की पहचान के शारीरिक लक्षण
खिल्लारी नस्ल की गाय के शारीरिक लक्षण – यह मध्यम आकार की प्रसिद्ध भारवाही नस्ल है । खिल्लारी जाति मैसूर की हल्लीकर तथा अमृतमहल जातियों से मिलती - जुलती है । इनका रंग धूसर - सफेद होता है ।
इनका शरीर पुष्ट होता है तथा पशु कम चारे पर निर्वाह करने वाले एवं अधिक समय तक कार्य की क्षमता रखने वाले होते है ।
शरीर अपेक्षाकृत कम गठीला तथा कम चुस्त होता है । पसलियां महराबदार होती हैं सिर भारी , माथा उभरा हुआ एवं चेहरा पतला होता है ।
सींग लम्बे , सटे हुये तथा एक - दूसरे के निकट से निकलकर ऊपर की ओर उठे हुये होते हैं ककुद काफी विकसित तथा गलकम्बल झूलता हुआ होता है । छोटी , काले झब्बे युक्त पूँछ इस नस्ल के प्रमुख लक्षण हैं ।
खिल्लारी नस्ल की गाय की कार्य उत्पादन क्षमता
खिल्लारी नस्ल की गाय की कार्य उत्पादन क्षमता - खिल्लारी नस्ल के बैल तेज चाल तथा बोझा ढोने में प्रसिद्ध है, परन्तु गाय बहुत कम दूध देती हैं ।
खिल्लारी नस्ल की गाय का प्रजनन केन्द्र
1. राजकीय पशु प्रजनन फार्म , रंजनीकरन ( दक्षिणी सतारा ) तथा
2. राजकीय पशु प्रजनन फार्म , राइबाग महल ( बेलगांव ) इस नस्ल के मुख्य प्रजनन केन्द्र हैं ।
2. राजकीय पशु प्रजनन फार्म , राइबाग महल ( बेलगांव ) इस नस्ल के मुख्य प्रजनन केन्द्र हैं ।
3. हल्लीकर नस्ल की गाय के बारे में पूरी जानकारी
हल्लीकर नस्ल की गाय की जानकारी - इसे हालीकर या हल्लीकार नाम से भी जाना जाता है ।
हल्लीकर नस्ल की गाय का जन्म स्थान
हल्लीकर गाय की नस्ल के पशु कर्नाटक राज्य के तंकुर , हसन तथा मैसूर जिलों में बहुतायत से पाये जाते हैं ।
हल्लीकर नस्ल की गाय की पहचान के शारीरिक लक्षण
हल्लीकर नस्ल की गाय के शारीरिक लक्षण - हल्लीकर नस्ल के पशुओं का सिर संकरा- लम्बा एवं माथा चौड़ा होता है , जो बीच में धंसा रहता है । छोटे - छोटे नुकीले कान व गलकम्बल मध्यम होता है ।
रंग गहरा - धूसर तथा कभी - कभी बिल्कुल काला होता है । चेहरे , गलकम्बल ओर शरीर के निचले हिस्से पर धूसर रंग के चकत्ते होते हैं ।
ककुद छोटा व गलकम्बल मध्यम तथा मुतान कसा हुआ होता है । पीठ सीधी होती है । पुढे , बलिष्ठ होते हैं । पिछले पैर के जोड़ तक लटकती हुई काले झब्बे युक्त पूँछ हल्लीकर गाय की नस्ल के प्रमुख लक्षण हैं ।
हल्लीकर नस्ल की गाय का कार्य उत्पादन क्षमता
हल्लीकर नस्ल की गाय का कार्य उत्पादन क्षमता — हल्लीकर नस्ल के बैल बड़े मजबूत होते हैं , जो भार वाहन तथा कृषि कार्य के लिये अच्छे समझे जाते हैं बैल फुर्तीले , तेज तथा लगन से काम करने वाले होते है । गाये बहुत कम दूध देती हैं ।
हल्लीकर नस्ल की गाय का प्रजनन केन्द्र
1. राजकीय डेयरी फार्म हैसरघट्टा ( कर्नाटक ) तथा
2. कैटिल एण्ड शीप फार्म , कुरुकुप्पी ( बेल्लारी ) हल्लीकर गाय की नस्ल के मुख्य प्रजनन केन्द्र हैं ।
2. कैटिल एण्ड शीप फार्म , कुरुकुप्पी ( बेल्लारी ) हल्लीकर गाय की नस्ल के मुख्य प्रजनन केन्द्र हैं ।
4. कंगायम, कंगनाड़ या कोन्गू नस्ल की गाय के बारे में पूरी जानकारी
कंगायम, कंगनाड़ या कोन्गू नस्ल की गाय - इस नस्ल के पशु दक्षिणी भारत के कई भागों में पाये जाते हैं ।
कंगायम, कंगनाड़ या कोन्गू नस्ल की गाय का जन्म स्थान
कंगायम, कंगनाड़ या कोन्गू नस्ल की गाय का मूलस्थान तमिलनाडु के कोयम्बटूर जिले का कंगायम क्षेत्र माना जाता है ।
कंगायम, कंगनाड़ या कोन्गू नस्ल की गाय की पहचान के शारीरिक लक्षण
कंगायम, कंगनाड़ या कोन्गू नस्ल की गाय के शारीरिक लक्षण - कंगायम पशुओं का शरीर सामान्य लम्बाई का , सिर मध्यम , गलकम्बल छोटा एवं मुतान खिंचा हुआ होता है । पीठ सीघी , गर्दन मजबूत , त्वचा मुलायम व थूथन चौड़ी होती है ।
पुटठे मजबूत , कान छोटे - छोटे तथा नुकीले एवं सींग मजबूत और ऊपर की ओर बाहर को फैले रहते हैं । पशु सुरमई या काले रंग के होते है ।
गायों का रंग सफेद , परन्तु घुटनों एवं टखनों पर काले निशान होते हैं । इस नस्ल के पशुओं का शरीर सामान्यतः लम्बा होता है ।
सिर सामान्य एवं माथा थोड़ा - सा उभरा हुआ होता है । पीठ सीघी होती है । गर्दन छोटी एवं मजबूत होती है । गलकम्बल छोटा होता खिंचा हुआ होता है । त्वचा अच्छी मुलायम होती है ।
थूथन चौड़ी होती है । पुढें मजबूत होते हैं कान छोटे - छोटे एवं नुकीले होते हैं । सींग ऊपर को फैले एवं मजबूत होते हैं । पूँछ टखनों के नीचे तक लटकी हुई काले झब्बे युक्त होती है ।
कंगायम, कंगनाड़ या कोन्गू नस्ल की गाय की उत्पादन क्षमता
कंगायम, कंगनाड़ या कोन्गू नस्ल की गाय की उत्पादन क्षमता - बैल कठिन कार्य के लिये प्रसिद्ध हैं । गाय कम दूध देने वाली होती है ।
5. नागौरी या नागौड़ नस्ल की गाय के बारे में पूरी जानकारी
नागौरी या नागौड़ नस्ल की गाय - भारतीय नस्लों में यह मुख्य भारवाही नस्ल है । पशु प्रायः सफेद अथवा धूसर रंग के होते है।
नागौरी या नागौड़ नस्ल की गाय का जन्म स्थान
नागौरी या नागौड़ नस्ल की गाय का मूलस्थान भूतपूर्व जोधपुर रियासत का उत्तर - पूर्वी भाग है , जिसे नागौड़ कहते हैं
नागौरी या नागौड़ नस्ल की गाय की पहचान के शारीरिक लक्षण
नागौरी या नागौड़ नस्ल की गाय के शारीरिक लक्षण - इनका शरीर लम्बा एवं शक्तिशाली तथा रंग गहरा होता है । पीठ सीधी और गर्दन सामान्य चौड़ी होती है ।
छाती तथा पिछला घड़ मजबूत होता है । टाँगे सीधी , मांसल और मजबूत । होती है । चेहरा पतला , लम्बा और ललाट चपटा होता है । ककुद मध्यम होता है । कान बड़े - बड़े सींग मध्यम आकार के तथा कनपटी से निकलकर बाहर की ओर फैले हुए होते हैं त्वचा मुलायम होती है ।
गलकम्बल तथा मुतान छोटा होता है । पूँछ काले झब्बे युक्त तथा छोटी होती है । पशु स्वभावतः चंचल , परन्तु सीधे होते हैं ।
नागौरी या नागौड़ नस्ल की गाय की उत्पादन क्षमता
नागौरी या नागौड़ नस्ल की गाय की उत्पादन क्षमता - बैल शाक्तिशाली तथा तेज चाल के लिये प्रसिद्ध हैं । आकार में काफी बड़े होते है तथा गाड़ी में जोतकर काफी तेज भागते हैं, गाय औसतन 3.6 किग्रा दूध प्रतिदिन देती है।
नागौरी या नागौड़ नस्ल की गाय का प्रजनन केन्द्र
नागौरी या नागौड़ नस्ल की गाय का प्रजनन केन्द्र - ये पशु राजकीय पशु प्रजनन फार्म , नागौड़ में रखे गये हैं ।
6. मालवी, मन्थनी या महादेवपुरी नस्ल की गाय के बारे में पूरी जानकारी
मालवी, मन्थनी या महादेवपुरी नस्ल की गाय - इनका शरीर गठा हुआ और पुष्ट होता है । इन्हें चरागाह में चराकर रखा जा सकता है । पशुओं का रंग प्राय : धूसर होता है । आयु वृद्धि साथ - साथ नर पशुओं का रंग गहरा होता जाता है । गर्दन तथा ककुद का रंग तो प्राय : काला हो जाता है ।
मालवी, मन्थनी या महादेवपुरी नस्ल की गाय का जन्म स्थान
मालवी, मन्थनी या महादेवपुरी नस्ल की गाय का जन्म स्थान मध्य प्रदेश का मालवा क्षेत्र इस नस्ल का मूलस्थान माना जाता हैं । मालवा क्षेत्र के नाम पर ही इसका नाम मालवी पड़ा है । ये पशु मध्य प्रदेश तथा राजस्थान में पाये जाते हैं ।
मालवी, मन्थनी या महादेवपुरी नस्ल की गाय की पहचान के शारीरिक लक्षण
मालवी, मन्थनी या महादेवपुरी नस्ल की गाय के शारीरिक लक्षण - इनका शरीर ठिगना , गठीला और ठोस होता है । कमर सीधी होती है तथा पिछला भाग शिथिल होता है । मुतान झूलता हुआ तथा गलकम्बल आकार का होता है ।
छाती चौड़ी होती है । ककूद विकसित , सिर छोटा एवं चेहरा लम्बा होता है । माथा धंसा हुआ एवं थूथन चौड़ा होता है ।
सींग मजबूत एवं नुकीले और माथे के बाहर से निकलकर आगे बढ़ जाते हैं तथा अन्त में नुकीले हो जाते हैं । कान छोटे एवं नुकीले होते हैं पूँछ टखनों तक लटकती हुई होती है ।
मालवी, मन्थनी या महादेवपुरी नस्ल की गाय की उत्पादन क्षमता
मालवी, मन्थनी या महादेवपुरी नस्ल की गाय की उत्पादन क्षमता - मालवी नस्ल के बैल सड़कों पर हल्का बोझा ढोने तथा खेतों में हल चलाने के लिये लोकप्रिय हैं ।
ये अल्पाहारी और मौसम तथा भूमि संबंधी विषम परिस्थितियों को सहन करने में समर्थ होते हैं । गाय कम दूध देती हैं ।
मालवी, मन्थनी या महादेवपुरी नस्ल की गाय का प्रजनन केन्द्र
1. राजकीय पशु प्रजनन फार्म , सिमरौल ( इन्दौर ),
2. राजकीय पशु प्रजनन फार्म , आगरा ( शाजापुर ) और
3. राजकीय पशु प्रजनन फार्म , देवल ( सागर ) मालवी, मन्थनी या महादेवपुरी गाय की नस्ल के मुख्य प्रजनन केन्द्र हैं ।
2. राजकीय पशु प्रजनन फार्म , आगरा ( शाजापुर ) और
3. राजकीय पशु प्रजनन फार्म , देवल ( सागर ) मालवी, मन्थनी या महादेवपुरी गाय की नस्ल के मुख्य प्रजनन केन्द्र हैं ।
7. गंगातीरी या शाहाबादी गाय की नस्ल की जानकारी
गंगातीरी या शाहाबादी गाय की नस्ल - पशु मझोले कद तथा शांत स्वभाव के सीधे होते हैं । इनका माथा चौड़ा , सींग मोटे एवं गर्दन छोटी होती है । रंग सफेद , सिर लम्बा एवं आँखे चमकीली होती हैं ।
गंगातीरी या शाहाबादी गाय की नस्ल का जन्म स्थान
गंगातीरी या शाहाबादी गाय की नस्ल का मूल क्षेत्र शाहाबाद क्षेत्र का गंगा का खादर , बिहार के सारण जिले एवं बलिया तथा गाजीपुर में गंगा तथा घाघरा का दोआब हैं ।
गंगातीरी या शाहाबादी गाय की नस्ल की पहचान के शारीरिक लक्षण
गंगातीरी या शाहाबादी गाय की नस्ल के शारीरिक लक्षण – सिर , नाक की ओर नुकीला लम्बा एवं ललाट चौड़ा होता है । गर्दन छोटी एवं मोटी होती है । आँखे चमकीली होती हैं सींग मोटे तथा भोथरे होते हैं ।
गलकम्बल मध्यम होता है ककूद पूर्ण विकसित होता हैं गायों में पूर्ण विकसित अयन गंगातीरी या शाहाबादी गाय की नस्ल के मुख्य लक्षण है ।
गंगातीरी या शाहाबादी गाय की नस्ल उत्पादन क्षमता
गंगातीरी या शाहाबादी गाय की नस्ल उत्पादन क्षमता - गंगातीरी नस्ल के बैल परिश्रम का कार्य करने के लिये प्रसिद्ध हैं गाय 3.6 किग्रा दूध प्रतिदिन देती है । अयन बड़ा होता है , जिस पर पूर्ण विकसित थन एवं दुग्ध शिराएँ स्पष्ट होती है ।
गंगातीरी या शाहाबादी गाय की नस्ल का प्रजनन केन्द्र
गंगातीरी या शाहाबादी गाय की नस्ल का प्रजनन केन्द्र - राजकीय पशुपालन तथा कृषि क्षेत्र आरा जी लाइन्स ( वाराणसी ) पर इस नस्ल के पशु मिलते हैं ।
8.पंवार गाय की नस्ल की जानकारी
पंवार गाय की नस्ल - पंवार नस्ल के पशुओं का मुँह संकरा तथा शरीर लम्बा होता है । आँखे बड़ी - बड़ी एवं चमकदार होती हैं । कान छोटे तथा सींग लम्बे एवं खड़े होते हैं शरीर तथा पूंछ लम्बी होती है ।
सामान्य रंग काला - सफेद होता है । गाय बहुत फुर्तीली तथा खुंखार होती हैं पशु स्वच्छन्द रूप से चरना पसन्द करते हैं ।
पंवार गाय की नस्ल का जन्म स्थान
पंवार गाय की नस्ल पीलीभीत जिले की पूरनपुर तहसील तथा खीरी जिले के उत्तर - पश्चिमी भाग में पायी जाती हैं ।
पंवार गाय की नस्ल की पहचान के शारीरिक लक्षण
पंवार गाय की नस्ल के शारीरिक लक्षण - इस नस्ल के पशुओं का चेहरा पतला होता है । गर्दन छोटी एवं बलिष्ठ होती है । पेट सामान्य रूप से लम्बा होता है । कान छोटे एवं चौकन्ने होते है । आँखें बड़ी एवं चमकदार होती है ।
सींग ऊपर उठे हुए लगभग 45 सेमी लम्बे होते हैं । मुतान छोटा एवं खिंचा हुआ होता है । पूँछ सफेद झब्बे युक्त लम्बी होती है । काला - सफेद मिलवां रंग पंवार गाय की नस्ल का प्रमुख लक्षण है ।
पंवार गाय की नस्ल की उत्पादन क्षमता
पंवार गाय की नस्ल की उत्पादन क्षमता - बैल हल चलाने तथा बोझा ढोने के लिये बहुत तेज होते है । बैल तेज चाल तथा शक्ति के लिये प्रसिद्ध है । गाय कम दूध देने वाली होती है ।
राजकीय पशुपालन एवं कृषि फार्म , हेमपुर ( नैनीताल ) में पंवार गाय की नस्ल के पशु रखे गये हैं ।
9. खीरीगढ़ गाय की नस्ल की जानकारी
खीरीगढ़ गाय की नस्ल - इस नस्ल के पशुओं का मुँह संकरा होता है । सींग लम्बे एवं पतले तथा कान छोटे होते हैं । आँख चमकदार एवं गर्दन छोटी होती है । नरों का ककूद काफी बड़ा होता हैं मुतान खिंचा हुआ तथा रंग सफेद होता है । पूंछ लम्बी होती है ।
खीरीगढ़ गाय की नस्ल का जन्म स्थान
घाघरा के उत्तर तथा सरयू और मोहन नदियों के बीच करा क्षेत्र इस नस्ल का मूलस्थान है । उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले के खीरीगढ़ परगना में इस नस्ल के घटिया किस्म के पशु पाये जाते हैं ।
यह नस्ल लखीमपुर ( मोहम्मदी तहसील को छोड़कर ) , बहराइच ( केसरगंज तहसील को छोड़कर ) , गोडा ( गोंडा तथा तरबगंज तहसीलों को छोड़कर ) , गोरखपुर ( बांसगांव और गोरखपुर तहसील को छोड़कर ) , बस्ती ( हरइया तथा खलीलाबाद तहसील को छोड़कर ) , देवरिया ( देवरिया तहसील की छोड़कर ) के लिये संस्तुत हैं । ये पशु तराई क्षेत्र के लिये उपयुक्त हैं ।
खीरीगढ़ गाय की नस्ल की पहचान के शारीरिक लक्षण
खीरीगढ़ गाय की नस्ल के शारीरिक लक्षण- इस नस्ल के पशुओं का रंग सफेद , चेहरा पतला एवं छोटा होता है । सीग हुए एवं पतले होते हैं आँखें चमकीली होती हैं कान छोटे एवं चौकन्ने होते हैं ।
ककूद विकसित एवं मुतान खिंचा हुआ होता है । गर्दन छोटी तथा पूँछ सफेद झब्बे युक्त लम्बी होती ऊपर उठे रहते है।
खीरीगढ़ गाय की नस्ल की उत्पादन क्षमता
खीरीगढ़ गाय की नस्ल की उत्पादन क्षमता - यह नस्ल बहुत अधिक प्रसिद्ध नहीं है । गायें कम दूध देती हैं । राजकीय फार्मों पर इनका दूध औसतन 1 किग्रा प्रतिदिन रहा है ।
बैल कार्यशील होते है । तथा चराई के ही आधार पर जीवन निर्वाह कर लेते हैं ये हल्का बोझा ढोने और सवारी तांगों में जोतने के लिये अच्छे रहते हैं ।
राजकीय पशुपालन एवं कृषि फार्म , मझेरा ( लखीमपुर खीरी ) पर खीरीगढ़ गाय की नस्ल के पशु रखे गये हैं ।
10. केनकथा या कैनवरिया गाय की नस्ल की जानकारी
केनकथा या कैनवरिया गाय की नस्ल - पशुओं का आकार छोटा , पीठ सीधी , टाँगें छोटी एवं मजबूत होती हैं । माथा बीच में कुछ धंसा हुआ , सींग नुकीले , कान छोटे तथा नुकीले एवं पूँछ औसत लम्बाई की होती है । रंग धूसर , गहरा धूसर तथा सफेद चित्तीदार होता है ।
केनकथा या कैनवरिया गाय की नस्ल का जन्म स्थान
यह बुन्देलखण्ड की मुख्य नस्ल है । बांदा जिले की केन नदी के निकटवर्ती भागों में इस नस्ल के पशु बड़ी संख्या में पाये जाते हैं ।
इस नस्ल के पशु मध्य प्रदेश के पन्ना , चरखारी तथा अजयगढ़ इत्यादि स्थानों के आसपास पाये जाते हैं ।
केनकथा या कैनवरिया गाय की नस्ल की पहचान के शारीरिक लक्षण
केनकथा या कैनवरिया गाय की नस्ल के शारीरिक लक्षण — इस नस्ल के पशुओं का शरीर छोटा व गठीला एवं रंग गहरा धूसर होता है । पीठ सीधी होती है । सिर चौड़ा एवं ललाट धंसा हुआ होता है । सींग मजबूत , नुकीले , सीधे एवं ऊपर को उठे हुये होते हैं ।
कान छोटे - छोटे एवं नुकीले होते हैं पैर छोट - छोटे एवं बलिष्ठ होते हैं । मुतान औसत आकार का तथा गलकम्बल मध्यम आकार का होता है । काले झब्बे युक्त टखने तक लटकने वाली पूँछ हो है ।
पेट का रंग धूसर तथा शेष शरीर गहरा धूसर होता है । सिर पर काला धब्बा होता है : उत्पादन क्षमता - इस नस्ल के बैल बैलगाड़ी खंचने तथा खेती के हल्के काम के लिये उपयुवत रहते हैं ये तेज चाल वाले होते हैं गायें कम दूध देती हैं ।
केनकथा या कैनवरिया गाय की नस्ल का प्रजनन केन्द्र
पशुपालन एवं कृषि फार्म , सैदपुर ( झांसी ) में इस नस्ल के पशु रखे गये
11.सीरी या त्रभुम गाय की नस्ल की जानकारी
सीरी या त्रभुम गाय की नस्ल — यह नस्ल दार्जलिंग , सिक्किम और भूटान के पर्वतीय क्षेत्रों में पायी जाती है । कड़ाके की सर्दी तथा वर्षा से बचाव के लिये पशुओं के शरीर पर बालों की एक मोटी परत होती है ।
इस नस्ल के बैल पहाड़ी क्षेत्रों में 375 से 670 किग्रा भार की गाड़ियों को खींचने के काम आते हैं घर पर बांधकर खिलाने से इस नस्ल की गायें कुछ अच्छा दूध देती हैं अच्छी गायें 280 दिन के दुग्ध काल में औसतन 1,360 किग्रा दूध देती हैं । साधारण परिस्थितियों में मात्र 1.35 से 1.80 किग्रा दूध प्रतिदिन देती है ।
12. बछौर या सीतामढ़ी गाय की नस्ल की जानकारी
बछौर या सीतामढ़ी गाय की नस्ल - यह मुख्य रूप से एक भारवाही गुणो वाली नस्ल है , जो बिहार प्रांत में पायी जाती है ।
बछौर या सीतामढ़ी गाय की नस्ल का जन्म स्थान
यह नस्ल दरभंगा के बछौर परगना , भागलपुर के कोइलपुर परगना , मुजफ्फरपुर की सीतामढ़ी तहसील तथा चम्पारन जिले में पायी जाती है ।
बछौर या सीतामढ़ी गाय की नस्ल का दुग्ध उत्पादन क्षमता
इस नस्ल की गायें बहुत कम दूध देती हैं , इनका औसत दुग्ध उत्पादन 135 किग्रा प्रतिदिन है ।
बैल बहुत अच्छा कार्य करने वाले होते हैं । यह नस्ल केवल स्थानीय महत्व की है तथा अन्य धूसर नस्लों की अपेक्षा कम विख्यात है ।
13. बरगुर गाय की नस्ल की जानकारी
बरगुर गाय की नस्ल — इस नस्ल के पशु तमिलनाडु के कोयम्बटूर जिले के भवानी तालुके के बरगुर के पर्वतीय जंगलों में पाये जाते है ।
इस नस्ल के पशु हल्लीकर से मिलते - जुलते होते है । पशु छोटे , सुगठित शरीर वाले तथा आकर्षक होते हैं बैल काफी क्रोधी तथा उग्र स्वभाव के होते हैं ये साहस , मजबूती एवं चाल में अद्वितीय माने जाते हैं गाय बहुत कम दूध देती हैं ।
इन्हे भी देखें
C. भारत में पाई जाने वाली देशी दुकाजी गाय की नस्लें एवं उनकी पहचान के लक्षण
द्विकाजी नस्लें ( Dual Breeds ) इन नस्लों के पशु द्विप्रयोजनीय अथवा द्विकाजी होते हैं । गायें अच्छा दूध देती हैं तथा बैल कृषि कार्यों के लिये अच्छे होते हैं ।
इस समूह के पशुओं को दो उपसमूहों में विभाजित किया जा सकता है -
1. छोटे सींग वाले सफेद अथवा हल्के धूसर रंग के पशु जिनका चेहरा तथा खोपड़ी लम्बी एवं बनावट जी कुछ उन्नतोदर होती है ।
जैसे - निमाड़ी , डांगी , हरियाणा , मेवाती , राठी , अंगोल , गोलाओ , कृष्णाघाटी इत्यादि ।
2. वीणा के आकार के सींग वाले धूसर रंग के पशु जिनका मस्तक चौड़ा , आँखे बड़ी - बड़ी , बनावट चपटी अथवा दबी हुई गहरी होती है , शरीर भारी तथा कार्य करने की क्षमता अधिक होती है ।
जैसे - थारपारकर तथा कॉकरेज अदि ।
देवनी नस्ल की गाय के बारे में पूरी जानकारी - इस नस्ल को डोंगरपट्टी तथा डोगरी भी कहते है । यह नस्ल भूतपूर्व हैदराबाद राज्य के उत्तर - पश्चिमी तथा पश्चिमी क्षेत्र में पायी जाती है ।
यह नस्ल गिर से मिलती - जुलती है । इस नस्ल के पशुओं के शरीर पर धब्बे पाये जाते हैं छाती गहरी तथा पसलियाँ मेहराबदार होती हैं। पीठ सीधी होती है तथा पुढे एवं पैर मजबूत होते हैं ।
कान छोटे - छोटे लटकने वाले व सींग मुड़े हुए होते हैं तथा मुतान एवं गलकम्बल पूर्ण विकसित होते हैं ।
देवनी नस्ल की गाय की पहचान के शारीरिक लक्षण
देवनी नस्ल की गाय की पहचान के शारीरिक लक्षण – गिर की उपेक्षा इनका माथा कम उभरा होता है । इनका रंग काला - सफेद अथवा लाल - सफेद होता है जिस पर अनियमित धब्बे होते हैं गलकम्बल पूर्ण विकसित होता है ।
कान छोटे - छोटे तथा लटकने वाले होते हैं सींग बाहर की ओर निकलकर पीछे मुड़े हुये होते हैं चेहरा पतला , कमर सीधी तथा धड़ मजबूत होता है । बैलों की टाठ तथा मुतान बड़े होते हैं । कोई भी एक रंग इस नस्ल का अयोग्य होने का लक्षण है ।
देवनी नस्ल की गाय की उत्पादन क्षमता
देवनी नस्ल की गाय की उत्पादन क्षमता - देवनी नस्ल की गाय दुधारू तथा बैल कृषि कार्यों के लिये अच्छे समझे जाते हैं । ग्रामीण दशा में 300 दिन के ब्यांत का औसत दुग्ध उत्पादन 680 किग्रा तथा डेरी फार्मो पर 1,134 किया तक रिकार्ड किया गया है ।
बैल धीमी चाल तथा भारी काम के लिये अच्छे रहते हैं।
हरियाणा नस्ल की गाय के बारे में पूरी जानकारी - हरियाणा भारत की महत्वपूर्ण नस्लों में से एक हैं यह सारे द्विकाजी नस्ल के रूप में प्रसिद्ध हैं । इन पशुओं का मुँह संकरा , माथा चपटा , सींग एवं कान छोटे , कद मंझोला , गर्दन सुदृढ़ , गलकम्बल एवं ककुद छोटा तथा मुतान खिंचा हुआ होता है ।
गायों के अयन सुविकसित होते है । इनका रंग सफेद या हल्का धूसर होता हैं । गौरवमय चेहरा जो हमेशा ऊपर उठा रहता है, इस नस्ल का प्रमुख लक्षण है ।
हरियाणा नस्ल की गाय का जन्म स्थान
हरियाणा नस्ल की गाय का मूल स्थान हरियाणा के रोहतक , हिसार , करनाल तथा गुड़गांव जिले माने जाते हैं । ये पशु दिल्ली के आसपास , पश्चिमी उत्तर प्रदेश , राजस्थान के उत्तर - पूर्वी भाग में पाये जाते हैं ।
हरियाणा नस्ल की गाय की पहचान के शारीरिक लक्षण
हरियाणा नस्ल की गाय की पहचान के शारीरिक लक्षण – सिर हल्का एवं सुव्यवस्थित , परन्तु सांडों का सिर कुछ स्थूल एवं भारी होता है । चेहरा लम्बा , पतला तथा चपटा या थोड़ा सा उत्तल ललाट वाला होता है ।
थूथन काला तथा नथूने चौड़े होते हैं आँखे बड़ी - बड़ी , चमकीली तथा भावपूर्ण ( Expressive ) होती हैं कान छोटे , चौकन्ने एवं कुछ - कुछ निलम्बी होते हैं सींग छोटे - छोटे ऊपर तथा अदर की ओर मुड़े हुये होते है ।
गर्दन साधारण लम्बाई की सुन्दर एवं पतली होती है । सांडों की गर्दन भारी होती है । गलकम्बल छोटा , पतला तथा सिकुड़न रहित होता है । छाती सुविकसित तथा अधर वक्ष बड़ा होता है । सांडों का ककुद बड़ा होता है , जो बधियाकरण के बाद छोटा हो जाता है ।
पैर साधारणत : लम्बे तथा पतले होते हैं । मुतान छोटा एवं कसा हुआ होता है । त्वचा सुन्दर , पतली ओर कसी हुई तथा काले रंग की होती है और इस पर सफेद अथवा सलेटी रंग के बाल होते हैं काले झब्बेदार सुन्दर पूँछ टखनों तथा भूमि के बीच लटकी रहती है । ढालू पुढे , ढीला या बड़ा मुतान , मोटी एवं लम्बी पूँछ , पूँछ का सफेद झब्बा तथा सफेद बरौनी इनके अयोग्य होने के लक्षण हैं ।
हरियाणा नस्ल की गाय की उत्पादन क्षमता
हरियाणा नस्ल की गाय की उत्पादन क्षमता - हरियाणा गाय नियमित रूप से 15 माह के अन्तर सं ब्याती रहती है । गांव में 300 दिन के ब्यांत में इनकी औसत उत्पादन क्षमता 1,134 किग्रा तथा फार्मों पर 1,800 किग्रा तक रिकार्ड की गयी है । अधिकतम उत्पादन क्षमता 1,000 किग्रा तक पायी गयी है ।
हरियाणा जाति के बैल कृषि कार्यों तथा भारवाहन के लिये बहुत उत्तम सिद्ध हुए हैं ।
3. मेवाती या कोसी नस्ल की गाय की गाय के बारे में पूरी जानकारी
मेवाती या कोसी नस्ल की गाय की गाय के बारे में पूरी जानकारी - मेवाती पशु हरियाणा की अपेक्षा कुछ छोटे होते हैं । इनमें गिर नस्ल का मिश्रण पाया जाता है । इनका रंग सफेद होता है , परन्तु सिर , गला तथा कंधा कुछ गहरे रंग के होते हैं । माथा उभरा , मुतान लटकने वाला तथा ककुद व गलकम्बल काफी बड़ा होता है ।
सींगों की नोंक पीछे को झुकी हुई होती है । पूँछ लम्बी होती है , जिसका झब्बा काला होता है । हरियाणा की अपेक्षा पशु ढीले शरीर वाले होते हैं , परन्तु सिर ऊँचा रखते हैं ।
मेवाती या कोसी नस्ल की गाय का जन्म स्थान
उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले का कोसी स्थान इस नस्ल के पशुओं का मूल स्थान माना जाता है । राजस्थान के अलवर तथा भरतपुर जिलों में भी इस नस्ल के पशु पाये जाते हैं ।
मेवाती या कोसी नस्ल की गाय की पहचान के शारीरिक लक्षण
मेवाती या कोसी नस्ल की गाय की पहचान के शारीरिक लक्षण — यह हरियाणा से मिलती जुलती नस्ल है , जिसमें गिर के भी कुछ लक्षण पाये जाते है इनका माथा आगे को बढ़ा हुआ तथा उभरा हुआ होता है । सींग सिर के ऊपरी गोल हिस्से के बाहरी कोणों से निकलकर सिरे पर पीछे की ओर मुड़ जाते हैं ।
इनका रंग सफेद , परन्तु सिर , गला तथा कंधा गहरे रंग के होते हैं । पूँछ काले झब्बे युक्त एवं लम्बी होती है । ककुद बड़ा तथा गलकम्बल सुविकसित होता है ।
मेवाती या कोसी नस्ल की गाय की उत्पादन क्षमता
मेवाती या कोसी नस्ल की गाय की उत्पादन क्षमता - मेवाती नस्ल की गाय 3-5 से 4-5 किग्रा तक प्रतिदिन तक दूध देती हैं इस नस्ल के बैल शाक्तिशाली होते हैं , जो भार हल तथा भारवाहन के लिये अच्छे रहते हैं ।
इस जाति के पशु राजकीय पशु प्रजनन फार्म , अलवर में रखे गये हैं ।
थारपारकर नस्ल की गाय के बारे में पूरी जानकारी - इसे थारी , सफद सिंधी तथा भूरी सिंधी आदि नामों से भी जाना जाता है । इस नस्ल के पशु बहुत मजबूत तथा कम आहार पर निर्वाह करने वाले होते हैं । ये विपरीत परिस्थितियों को सहन करने वाले , सूखा तथा दुर्भिक्ष के आदी होते हैं ।
ये पशु सुगठित , मजबूत एवं धूसर - सफेद रंग के होते हैं गाय तथा बैल कुछ हल्के धूसर रंग के होते है तथा आयु के साथ - साथ उनका रंग सफेद होता जाता है । इनके फँर सीधे तथा मजबूत होते हैं ।
पशुओं का कद मझोला , मुँह लम्बा एवं माथा उभरा होता है । सींग मध्यम से छोटे , कान लम्बे तथा झुके हुए एवं ककुद तथा मुतान मध्यम आकार के होते है ।
थारपारकर नस्ल की गाय का जन्म स्थान
थारपारकर नस्ल की गाय का जन्म स्थान का मूलस्थान दक्षिण - पूर्वी सिंध ( पाकिस्तान ) का शुष्क - अर्द्ध रेगिस्तानी क्षेत्र है । अमरकोट , नौकोट , धोरों , नारो तथा चौर के निकटवर्ती क्षेत्र में इस जाति के शुद्धवंशीय पशु पाये जाते हैं ।
इस क्षेत्र को कच्छ का रन भी कहते हैं । यह क्षेत्र पूर्व में मारवाड़ , दक्षिण - पूर्व में पालनपुर क्षेत्र तथा पश्चिम में सिंध के जलोढ़ मैदान तक फैला है ।
थारपारकर नस्ल की गाय की पहचान के शारीरिक लक्षण
थारपारकर नस्ल की गाय की पहचान के शारीरिक लक्षण - इनका सिर मध्यम आकार का होता है । ललाट चौड़ा तथा नेत्रों के ऊपर थोड़ा उभरा होता है । चेहरा पतला , सुन्दर और थूथन के निकट थोड़ा सा दबा हुआ होता है ।
नथुने चौड़े और काले रंग के होते हैं । नेत्र बड़े - बड़े एवं शान्त होते हैं । कान लम्बे , चौड़े एवं लटकने वाले होते हैं , जिनके भीतर की त्वचा का रंग पीला होता है । जो अच्छा समझा जाता है । सींग दूर - दूर स्थित होते हैं , जो पहले ऊपर , फिर बाहर की ओर मुड़े रहते हैं ।
नरों के सींग छोटे , मोटे तथा सीधे होते है । नरों को ककुद सामान्यतः पूर्ण विकसित होता है । गलकम्बल ढीला , लचकदार तथा मध्यम आकार का होता है । पैर मध्यम आकार , मजबूत एवं सुन्दर होते हैं पीठ सीधी , मजबूत तथा साधारण लम्बाई की होती है । मुतान मध्यम आकार के होते हैं । काले झब्बे युक्त पूँछ टखनों तक लटकती हुई होती है । गायों का अयन बड़ा एवं सुविकसित होता है आगे पीछे पूरी तरह फैला रहता है । अयन की त्वचा मुलायम तथा हल्के रंग की होती है ।
दुग्ध शिराएं प्रमुख तथा थन लम्बे - मोटे , समान आकार के एवं दूर - दूर स्थित होते हैं । त्वचा सुन्दर , मुलायम तथा काले रंग की होती है । पशुओं का रंग सफेद या धूसर तथा पीठ पर रीढ़ के साथ हल्की धूसर रंग की धारियाँ पायी जाती हैं शरीर की अपेक्षा चेहरा गहरे रंग का होता है ।
सांड की गर्दन , ककुद तथा पैर गहरे रंग के होते हैं अधर वक्ष बड़ा होता है । अधिक उभरा हुआ माथा एवं 9 " से अधिक लम्बे तथा 6 " से अधिक मोटे सींग इसकी अयोग्यता के लक्षण हैं ।
थारपारकर नस्ल की गाय की उत्पादन क्षमता
थारपारकर नस्ल की गाय की उत्पादन क्षमता — इस नस्ल की गाये दुधारू होती हैं राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान , करनाल में इन गायों की औसत उत्पादन क्षमता 7.5 किग्रा प्रतिदिन तथा अधिकतम 4,375 किग्रा प्रति ब्यांत ( 305 दिन ) तक रिकार्ड की गयी है ।
कॉकरेज नस्ल की गाय के बारे में पूरी जानकारी — इस नस्ल के पशुओं को गुजराती , वाधिर , सांचौर , बागड़ , वगाडिया , वदिवाल एवं बधियार इत्यादि नामों से भी जाना जाता है ।
कॉकरेज नस्ल की गाय का जन्म स्थान
कॉकरेज नस्ल की गाय का मूलस्थान कच्छ के रन का दक्षिण - पूर्वी भाग माना जाता है । यह क्षेत्र थारपारकर जिले के दक्षिण - पश्चिमी कोने से लेकर दक्षिण में ढोलका ( अहमदनगर ) तक पूर्व में डेस्सा से लेकर पश्चिम में भूतपूर्व राधनपुर रियासत तक फैला हुआ है ।
भारत की सबसे भारी नस्ल के रूप में मशहूर कॉकरेज भारत की सर्वोत्तम गायों की जातियों में से एक है । इस नस्ल के पशु बड़े शक्तिशाली तथा भारी कार्य के लिये उपयुक्त होते हैं इनका आकार बड़ा तथा ललाट चौड़ा व मध्य में थोड़ा सा दबा हुआ होता है ।
इनके सींग मजबूत तथा ऊपर को दूर - दूर तक फैले रहते हैं । सींगों पर कुछ दूरी तक खाल चढ़ी रहती है । पशुओं की छाती चौड़ी , पीठ सीधी , ककुद विकसित , मुतान लटकने वाला तथा पूँछ टखनों के नीचे तक लटकती हुई झब्बे युक्त होती हैं इन पशुओं की त्वचा मोटी होती है तथा पोल की जगह गड्डा होता है ।
कॉकरेज नस्ल की गाय की पहचान के शारीरिक लक्षण
कॉकरेज नस्ल की गाय की पहचान के शारीरिक लक्षण - सिर चौड़ा और बीच में भीतर की ओर धंसा हुआ होता है । चेहरा छोटा तथा नासादण्ड सीधा या धंसा हुआ होता है । आँखें बड़ी , चमकीली , चौकन्नी तथा बाहर को उठी हुई , पलकों के ऊपर मांसल परत तथा आँखों के ऊपर काला रंग आवश्यक समझा जाता है ।
लम्बे ढीले , एवं लटके कान पर्याप्त चौड़े होते हैं । कान के अन्दर की त्वचा का रंग लाल या भूरा तथा धारियों से युक्त होता है । मोटे , लम्बे सींग जो थोड़ा बाहर की ओर बढ़कर फिर ऊपर की ओर बढ़ते हैं तथा फिर भीतर की ओर मुड़ जाते हैं ।
इनकी नोंक सामने की ओर मुड़ जाती है एवं सींग काफी ऊँचाई तक खाल से ढके रहते हैं गर्दन चिकनी , लम्बी और पतली होती है । छाती चौड़ी और कमर सीघी तथा ककुद बड़ा होता है । कंधा चौड़ा , ढालू और सुविकसित होता है ।
पैर बलिष्ठ होते हैं , जो अजनबियों के सामने भड़क उठते हैं बैल सवाई चाल के लियो प्रसिद्ध हैं इनका रंग चमकीला सुरमइ या काला होता है । लाल रंग , रोमन नाक एवं सफेद खुर इनकी अयोग्यता के लक्षण है ।
कॉकरेज नस्ल की गाय की उत्पादन क्षमता
कॉकरेज नस्ल की गाय की उत्पादन क्षमता — कॉकरेज नस्ल की गायों की औसत दुग्ध उत्पादन क्षमता डेरी फार्मो पर 7 किग्रा प्रतिदिन रिकार्ड की गयी है ।
बैल शाक्तिशाली तथा हल एवं भार वाहन के लिये बहुत अच्छे होते हैं । बैल चलने में बड़े के नाम से प्रसिद्ध हैं ।
इस जाति के पशु नस्ल सुधार के लिये अमेरिका तथा अन्य देशों को निर्यात किये गये है ।
6. कृष्णाघाटी नस्ल की गाय के बारे में पूरी जानकारी
कृष्णाघाटी नस्ल की गाय के बारे में पूरी जानकारी - इस नस्ल के पशुओं का सीना चौड़ा , शरीर लम्बा तथा भारी एव गलकम्बल विकसित होता है । गर्दन छोटी व पूँछ भी अपेक्षाकृत छोटी होती सींग छोटे व अंदर को ओर मुड़े हुए तथा कान छोटे- नुकीले एवं सिर छोटा होता है ।
कृष्णाघाटी नस्ल की गाय का जन्म स्थान
कृष्णाघाटी नस्ल की गाय का मूल स्थान कृष्णा नदी के उद्गम स्थान के कुछ हिस्सों में माना जाता है । इस जाति के पशु मुम्बई तथा हैदराबाद के दक्षिणी भाग में शुद्ध रूप में मिलते हैं ।
कृष्णाघाटी नस्ल की गाय की पहचान के शारीरिक लक्षण
कृष्णाघाटी नस्ल की गाय की पहचान के शारीरिक लक्षण - इनका शरीर लम्बा होता है । छाती गहरी एव चौड़ी होती है । गर्दन छोटी एवं मजबूत होती है । टाँगे सोधी होती हैं सिर अपेक्षाकृत छोटा और माथा उभरा हुआ होता है ।
सींग छोटे एवं मुड़े हुए तथा बाहर की ओर निकलकर थोड़ा - सा मुड़कर ऊपर उठ जाते है और फिर अन्दर की ओर मुड़ जाते हैं गलकम्बल सुविकसित होता है ।
कृष्णाघाटी नस्ल की गाय की उत्पादन क्षमता
कृष्णाघाटी नस्ल की गाय की उत्पादन क्षमता - ये बहुत शाक्तिशाली होते हैं बोझा ढोने अथवा भारी हलो को खींचने के लिये बहुत अच्छे रहते हैं गायें अच्छी दूध देने वाली होती हैं ।
ग्रामीण दशा में 300 दिन के व्यांत में 1.134 किया तथा फार्मों पर 1,814 किग्रा दूध रिकार्ड किया गया है ।
इस जाति के पशु राजकीय पशु प्रजनन फार्म , हिमायत नगर हैदराबाद में रखे गये हैं ।
7. अंगोल या ओंगोल या नेल्लोर नस्ल की गाय के बारे में पूरी जानकारी
अंगोल या ओंगोल या नेल्लोर नस्ल की गाय के बारे में पूरी जानकारी - कृषि कार्यों में बोझा ढोने तथा दुग्ध उत्पादन दोनों ही कामों के लिये इस नस्ल के पशु बहुत अच्छे रहते हैं गाय बहुत सीधी होती हे बैल शाक्तिशाली तथा भारी हल खींचने तथा बोझा ढोने के काम में बहुत तेज होते हैं इस नस्ल के पशुओं का शरीर भारी होता है । शरीर लम्बा , गर्दन छोटी तथा टाँगे लम्बी एवं मांसल होती हैं इनका रंग सफेद होता है नर पशुओं के सिर , गर्दन व ककुद पर गहरे धूसर रंग की धारियाँ पायी जाती हैं ।
अंगोल या ओंगोल या नेल्लोर नस्ल की गाय का जन्म स्थान
अंगोल या ओंगोल या नेल्लोर नस्ल की गाय का मूल स्थान आंध्र प्रदेश का अंगोल क्षेत्र है । इस क्षेत्र में नेल्लोर तथा गुन्टूर जिलों के अंगोल , गुन्टुर , नारासासेपेट तालुके तथा वापटला , साठेनापल्ली , वेनुकोडा ओर काण्डुकुर तालुकों के कुछ भाग सम्मिलित हैं ।
अंगोल या ओंगोल या नेल्लोर नस्ल की गाय की पहचान के शारीरिक लक्षण
अंगोल या ओंगोल या नेल्लोर नस्ल की गाय की पहचान के शारीरिक लक्षण - इनका ललाट चौड़ा और चेहरा लम्बा होता है । नासादण्ड नथूनों तक सीधा तथा थूथन भली प्रकार विकसित होता है नथूने बड़े तथा काले रंग के होते हैं जबड़े , वौड़े , मांसल एवं मजबूत होते हैं ।
आँखें बड़ी निर्दोष तथा चमकीली होती हैं । कान लटके हुये एवं साधारण लम्बाई के तथा भीतर की ओर सुन्दर मुलायम बालों से ढके रहते हैं सींग छोटे - छोटे गुट्ठल और ऊपर उठकर मुड़े रहते हैं तथा जड़ के निकट काफी मोटे होते हैं नर पशुओं की गर्दन छोटी एवं मोटी तथा गायों की गर्दन साधारण लम्बाई की होती है ।
ककुद सुविकसित होता है । गलकम्बल मांसल ओर कई परतों में लटका हुआ होता है । गायों का गलकम्बल सुन्दर मुलायम बालो ढका रहता है छाती गहरी एवं चौड़ी होती है , जो अगली लॉगों के बीच काफी चौडी होती है ।
पैर मजबूत तथा साधारण लम्बे होते हैं । पसलियाँ महराबदार तथा पेट गहरा होता है । पीठ साधारण लम्बी , चौड़ी और पीछे की ओर उठी रहती हैं ।
अयन चौड़ा तथा पिछले पैरों के बीच में तथा आगे की ओर निकला होता है । त्वचा मध्यम मोटाई की तथा लचीली होती है । आँखों के चारों ओर काली त्वचा का घेरा होता है ।
लाल रंग या शरीर पर धब्बे होना , पूँछ का झब्बा सफेद होना , सफेद थूथन तथा पलके काली होना एवं हल्के काले रंग के खुर इस नस्ल के अयोगय होने के लक्षण हैं ।
अंगोल या ओंगोल या नेल्लोर नस्ल की गाय की उत्पादन क्षमता
अंगोल या ओंगोल या नेल्लोर नस्ल की गाय की उत्पादन क्षमता — यह भारत की सर्वोत्तम नस्लों में से एक हैं । गाय 4 से 6 किग्रा दूध प्रतिदिन देती है । सरकारी फार्मों पर इनकी दुग्ध उत्पादन क्षमता 1,558 किग्रा प्रति ब्यांत तक रिकार्ड की गयी है ।
इस जाति के पशु अमेरिका तथा यूरोप के देशों में नस्ल सुधारने के प्रयोजन से भेजे गये हैं इस नस्ल के पशु चारा बाहुल्य क्षेत्रों में ही अच्छी तरह से पाले जा सकते हैं ।
राठ या राठी नस्ल की गाय के बारे में पूरी जानकारी - इनका शरीर हरियाणा पशुओं से मिलता - जुलता होता हैं । ये आकार में अपेक्षाकृत कुछ छोटे होते हैं । इनके पुढे , मजबूत और पूँछ ऊँची होती है । बातावरण के प्रति सहनशील तथा कम चारे पर गुजारा करने वाले होते हैं इनका रंग सफेद या भूरा होता है । नर की गर्दन एवं कंधे गहरे रंग के होते हैं कुछ पशु लाल तथा सफेद एवं लाल चित्तीदार भी होते हैं ।
राठ या राठी नस्ल की गाय का जन्म स्थान
ये पशु अलवर के उत्तर - पश्चिमी भाग तथा राजपूताने के दक्षिण क्षेत्र में पाये जाते हैं इन क्षेत्रों के अतिरिक्त यह नस्ल हरियाणा , पागौड़ तथा मेवाती नस्लों के साथ भी पायी जाती है ।
राठ या राठी नस्ल की गाय की पहचान के शारीरिक लक्षण
राठ या राठी नस्ल की गाय की पहचान के शारीरिक लक्षण - छाती अपेक्षाकृत छोटी , मजबूत तथा गहरी होती हैं पिछला भाग सुविकसित होता है पूँछ अधिकांश भारतीय नस्लों से ऊँची होती है । पुढे मजबूत होते है । माथा चपटा होता है ।
शरीर लम्बा होता हैं टाँगे छोटी - छोटी एवं मांसल होती है । पूँछ लम्बी भारी गुच्छे वाली होती है ।
राठ या राठी नस्ल की गाय की उत्पादन क्षमता
राठ या राठी नस्ल की गाय की उत्पादन क्षमता - राठ नस्ल के बैल शाक्तिशाली तथा हल्के काम के लिये उत्तम एवं भारी काम के लिये अनुपयुक्त होते हैं गायें प्रतिदिन 4-5 किग्रा तक दूध देती उन्नत समूहों की दुग्ध उत्पादन क्षमता 1,500 किग्रा प्रति ब्यांत तक रिकार्ड की गयी है ।
9. गोलाओं नस्ल की गाय के बारे में पूरी जानकारी
गोलाओं नस्ल की गाय के बारे में पूरी जानकारी -
इस नस्ल के बैलों का प्रयोग मध्य प्रदेश के गौंडवाना क्षेत्र के पहाड़ी क्षेत्रों में सैनिकों का सामान ढोने के लिये किया जाता था । अब इस नस्ल के पशु छिंदवाड़ा , वर्धा तथा नागपुर जिलों में पाये जाते हैं । इसके अतिरिक्त वर्धा तथा बाणगंगा नदी के किनारे भी इस नस्ल के पशु बहुतायत में पाये जाते हैं महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र की यह एक प्रमुख नस्ल है । ये पशु आकार में छोटे तथा मध्यम ऊँचाई वाले होते हैं । इनका गलकम्बल बहुत विकसित होता है । सिर , थूथन को ओर अग्रसर होता हुआ लम्बी ओर पतली शुंडाकुमित जैसा होता है ।
इस नस्ल के बैलों का प्रयोग मध्य प्रदेश के गौंडवाना क्षेत्र के पहाड़ी क्षेत्रों में सैनिकों का सामान ढोने के लिये किया जाता था । अब इस नस्ल के पशु छिंदवाड़ा , वर्धा तथा नागपुर जिलों में पाये जाते हैं । इसके अतिरिक्त वर्धा तथा बाणगंगा नदी के किनारे भी इस नस्ल के पशु बहुतायत में पाये जाते हैं महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र की यह एक प्रमुख नस्ल है । ये पशु आकार में छोटे तथा मध्यम ऊँचाई वाले होते हैं । इनका गलकम्बल बहुत विकसित होता है । सिर , थूथन को ओर अग्रसर होता हुआ लम्बी ओर पतली शुंडाकुमित जैसा होता है ।
गोलाओं नस्ल की गाय का जन्म स्थान
इस नस्ल को गोलगनी तथा अरबी भी कहते है । यह नस्ल अंगोल नस्ल से मिलती - जुलती है । पार्नेकर ( 1952 ) के अनुसार अठारहवीं शताब्दी में मराठों द्वारा इस नस्ल का विकास तेज चलने वाली नस्ल के रूप में किया गया था ।
गोलाओं नस्ल की गाय के पहाचन के शारीरिक लक्षण
गोलाओं नस्ल की गाय के पहाचन के शारीरिक लक्षण - इस नस्ल के पशुओं का शरीर छोटे या मध्यम आकार का हल्का होता है । गलकम्बल बड़ा तथा लटकता हुआ होता है ।
सिर थूथन की ओर अग्रसर होता हुआ पतली शुण्डाकृति जैसा होता है । सींग निकलने के स्थान पर माथा चौड़ा होता है । सींग छोट - छोटे तथा सिरों पर खुडे ओर थोड़े से पीछे की ओर मुड़े हुए होते हैं । कान मध्यम आकार के होते हैं पूंछ छोटी तथा पिछले पैरों से थोड़ा नीचे तक लटकती हुई होती है ।
गोलाओं नस्ल की गाय की उत्पादन क्षमता
गोलाओं नस्ल की गाय की उत्पादन क्षमता – गोलाओं नस्ल के बैल काम करने की दृष्टि से मध्यम होते हैं तथा गाय अन्य द्विकाजी गायों की अपेक्षा कम दूध देने वाली होती हैं ये गाये 250 दिन के ब्यांत में 817 किग्रा तक दूध दे देती हैं ।
इस नस्ल के पशुओं को राजकीय पशु प्रजनन फार्म , हैठीकुण्ड , वर्धा ) तथा नालवाड़ी गोशाला , गोपुरी ( वर्धा ) में रखा गया है ।
10. निमाड़ी या खारगोनी नस्ल की गाय के बारे में पूरी जानकारी
निमाड़ी या खारगोनी नस्ल की गाय के बारे में पूरी जानकारी - इस नस्ल के पशु शुद्ध वंशीय न होकर गिर , मालवी तथा खिल्लारी जाति के मिश्रण से उत्पन्न हुए है ।
बैल मध्यम आकार के होते हैं , जो हल तथा गाड़ी खींचने के काम में अच्छे रहते हैं इनका शरीर लम्बा , पीठ सीधी और रंग बड़े - बड़े सफेद दागों से युक्त लाल होता है ।
निमाड़ी या खारगोनी नस्ल की गाय का जन्म स्थान
निमाड़ी या खारगोनी नस्ल की गाय के पशुओं का मूल स्थान मध्य प्रदेश के निभाड़ जिला , खरगोन तथा भूतपूर्व इन्दौर राज्य हैं नर्मदा नदी की घाटी में इस जाति के पशु काफी संख्या में पाये जाते हैं ।
निमाड़ी या खारगोनी नस्ल की गाय की पहचान के शारीरिक लक्षण
निमाड़ी या खारगोनी नस्ल की गाय की पहचान के शारीरिक लक्षण - इन पशुओं की पीठ लगभग सीधी होती है एवं शरीर लम्बा होता है । सिर मध्यम आकार का होता है । माथा कुछ उभरा होता हैं रंग बड़े - बड़े सफेद धब्बों से युक्त लाल होता है ।
गलकम्बल झूलता हुआ होता हैं पूँछ काली झब्बे युक्त , पतली एवं मध्यम लम्बाई की होती हैं आँखे चमकीली तथा गुलाबी रंग की होती हैं कान मध्यम आकार के होते हैं , जिनके भीतर की त्वचा गुलाबी रंग की होती है ।
गर्दन मध्यम आकार की व पतली होती हैं ककुद विकसित होने के कारण सांडों की गर्दन छोटी होती है । अयन मध्यम आकार का तथा थन मध्यम एवं काले बिन्दु युक्त गुलाबी रंग के होते हैं । सामने के थन कुछ बड़े होते हैं । त्वचा ढीली , मुलायम तथा आनम्य होती है ।
निमाड़ी या खारगोनी नस्ल की गाय की उत्पादन क्षमता
निमाड़ी या खारगोनी नस्ल की गाय की उत्पादन क्षमता — गायें औसतन 1-5-20 किग्रा दूध प्रतिदिन देती हैं । बैल सीधे होते हैं , जो भोट द्वारा पानी खींचने के लिये अधिक प्रयोग किये जाते हैं ।
हेलो दोस्तों,
जवाब देंहटाएंकैसे हैं आप सब, इस पोस्ट को लिखने में बहुत मेहनत लगी है, इसीलिए थोड़ा समय लग गया उम्मीद है, आपको जानकारी पसंद आएगी।
कृपया इस पोस्ट को शेयर करें ओर कमेंट करके जरूर बताएं कि आपको जानकारी कैसी लगी।
हमसे जुड़ें रहने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद🙏🙏🙏
Nice information sir kya apko pata hai k8 fingerprints scanner ki khoj kisne kia hai
जवाब देंहटाएंGood.
जवाब देंहटाएंhttps://electricalgurus.in
Good information sir
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