गांव एवं शहर के कूड़ा करकट के अपघटन से जो खाद तैयार होती है, उसे ही कम्पोस्ट खाद (compost meaning in hindi) कहा जाता है ।
यह एक जैविक क्रियाओं द्वारा तैयार होती है, इसलिए इसे जैविक खाद भी कहा जाता है ।
कूड़ा - करकट के जैविक अपघटन जिससे कम्पोस्ट खाद बनती है उस प क्रिया को कम्पोस्टीकरण कहते है ।
वर्मी कपोस्ट तथा गोबर की खाद की रचना अस्थिर होती हैं ।
इनके औसत संगठन में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटेशियम की निम्नलिखित मात्रायें होती है ।
कम्पोस्ट खाद क्या होती है एवं कम्पोस्ट खाद कैसे बनाई जाती है, विधियां लिखिए?
शहर तथा गाँव के कूड़ा - करकट में वायुजीवी तथा अवायुजीवी सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा अपघटन होकर एक खूब सड़ी हुई खाद बनती है, उसे है कम्पोस्ट खाद (compost meaning in hindi) कहते हैं, और इस क्रिया को कम्पोस्टीकरण कहा जाता है ।
कम्पोस्ट खाद (compost meaning in hindi) |
कम्पोस्टीकरण एक जैविक क्रिया है ।
कम्पोस्ट खाद (compost meaning in hindi) को कृत्रिम या संश्लेषित फार्मयार्ड खाद भी कहते हैं ।
कम्पोस्ट खाद कैसे बनाई जाती है विधियां? (Method of making compost manure in hindi)
कम्पोस्ट खाद (compost meaning in hindi) बनाने कि प्रमुख विधियां निम्नलखित है -
1. फार्म की बिछावन का कम्पोस्टीकरण,2. बंगलौर विधि,
3. इन्दौर विधि इनमें कृषको के लिये इन्दौर विधि सबसे उपयुक्त एवं उन्नत है ।
कम्पोस्ट खाद बनाने की विधियां
कम्पोस्ट खाद बनाने के लिए निम्नलिखित प्रमुख विधियां अपनाई जाती है -
1. कम्पोस्ट खाद बनाने की इन्दौर विधि
इस विधि का प्रतिपादन हॉवर्ड ने सन् 1931 ई० में इन्सटीट्यूट ऑफ प्लान्ट इन्डस्टी इन्दौर से किया था ।
इस विधि से कम्पोस्ट खाद बनाने के लिये आवश्यक पदार्थ मिश्रित पादप अवशेष, पशु - मल, मूत्रीय मिट्टी, लकड़ी की राख, जल एवं वायु हैं ।
लकड़ी की राख में पोटेशियम कार्बोनेट नामक निर्बल क्षारीय पदार्थ होता है, जिसके प्रयोग से खाद की अम्लीयता उदासीन हो जाती है ।
जल एवं वायु की उपस्थिति जीवाणुओं की उचित क्रियाशीलता एवं वृद्धि के लिये आवश्यक होती है ।
इस विधि में वायुजीवी अपघटन होता है ।
सर्वप्रथम 30 फीट लम्बाई, 14 फीट चौड़ाई और 2 फीट गहराई वाले कई गड्ढ़ों दो - दो के जोड़ों ( Pairs ) में खोदे जाते हैं ।
गड्ढ़ों के इन प्रत्येक जोड़ों के मध्य 12 फीट का रिक्त स्थान रखते हैं और इन गड्ढ़ों की भुजायें ढलवा रखते हैं ।
गड्ढ़ों में पानी देने के लिये एक तालाब की व्यवस्था रक्खी जाती है ।
गड्ढ़े के ऊपर एक चौड़ा तख्ता रखते हैं ।
इसके प्रयोग से गड्डे भरते समय खाद पदार्थ कुचलकर दबने से बच जाता है ।
गड्डे के फर्श पर मिश्रित पादप अवशेष ( खरपतवार, पत्तियाँ, भूसा, लकड़ी की छीलन, बुरादा, रद्दी कागज तथा गलियों व बाजार की सड़कों के किनारों पर बिखरा हुआ कूड़ा - करकट आदि ) की 3 इन्च मोटी एक सार तह धीरे से बिछाते हैं ।
फिर इसके ऊपर मूत्र - शोषित मिट्टी और लकड़ी की राख छिड़क देते हैं ।
इसके पश्चात् गोबर व बिछावन के लिये प्रयुक्त की हुई मिट्टी की 2 इन्च मोटी तह बिछा देते हैं ।
अब समस्त पदार्थ को पानी से गीला कर देते हैं ।
फिर शाम को और अगले दिन सुबह को इसे पानी से तर करते हैं ।
गड्ढ़ा भरने और गीला करने की यह क्रिया तब तक करते रहते हैं जब तक गड्ढ़ा 30 इन्च गहराई तक भरता है ।
इस प्रकार खाद पदार्थ में किण्वन ।
प्रारम्भ होकर यह सिकुड़ने लगता है ।
इसमें सप्ताह में एक बार पानी देते रहते हैं ।
कम्पोस्ट का एक रूप मिश्रण बनाने और जीवाणुओं को आवश्यक पानी व वायु प्रदान करने के लिये खाद पदार्थ को तीन बार पलटते हैं ।
प्रथम पलट गड्ढ़ा भरने के 10 से 14 दिन तक कर देते हैं ।
इसके लिये आधा गड्ढा खोदकर खाद पदार्थ बाहर निकाल कर गीला करते हैं ।
इस गीले पदार्थ को शेष - आधे बिना छेड़े पदार्थ पर फैला देते हैं ।
दूसरी पलट इसके दो सप्ताह पश्चात् इसी प्रकार दी जाती है, जिसमें गड्ढ़े के आधे रिक्त पड़े भाग में ढेर लगाया जाता है ।
इसे पानी से गीला कर देते हैं ।
तीसरी पलट गड्ढे के भरने से दो मास पश्चात् दी जाती है ।
अब पदार्थ गहरे भूरे रंग के बारीक चूर्ण के रूप में प्राप्त होता है ।
इसे गीला करके धरातल पर इसके 10 लम्बे, 9 चौड़े, और 3.5 / ऊंचे ढेर लगा देते हैं ।
इस प्रकार एक मास तक ढर म लगने के पश्चात कम्पोस्ट पक कर खेतों में देने योग्य हो जाता है ।
इस समय म ढेर के जीवाण वायुमण्डलीय नाइट्रोजन की पर्याप्त मात्रा स्थिर कर लेते है ।
इस प्रकार नाइट्रोजन की मात्रा में 25 % तक वृद्धि हो सकती है ।
वर्षा ऋतु में गडढों में पानी भर जाने के भय से कम्पोस्ट ढेरों में तैयार की जाता है ।
मध्यम वर्षा होने वाले स्थानों में ढेर प्रायः धरातल पर 8x8, ऊपर 7x7 3 जाते हैं ।
अत्यधिक वर्षा होने वाले स्थानों में ढेर छाये में लगाये जाते हैं, याद न हो तो वर्षा ऋतु में कम्पोस्टीकरण करना स्थगित कर देते हैं ।
2. कम्पोस्ट खाद बनाने की बंगलौर विधि -
शहर के कूड़ा - करकट के कम्पोस्टीकरण की यह विधि भारतीय वैज्ञानिक सी . एन . आचार्य ने इण्डियन इन्स्टीट्यूट ऑफ साइन्स , बंगलौर से प्रतिपादित की ।
शहर से लगभग दो फल्ग की दूरी पर उपयुक्त आकार के गड्ढे खोदे जाते हैं ।
ये गड्ढ़े सम्भवतः पश्चिम दिशा में नहीं होने चाहिये क्योंकि प्राय: वायु पश्चिम से पूर्व की दिशा में चलती है ।
इन गड्ढों को इस प्रकार पंक्ति में क्रमबद्ध किया जाता है कि इनकी लम्बाइयाँ समानान्तर हों, चौड़ाइयाँ एक ही लाइन में हों और क्रमागत गड्ढों के बीच गाड़ियाँ आने जाने के लिये उपयुक्त 5 से 7 फीट की दूरी का रिक्त स्थन रहे ।
इन गड्ढ़ों का आकार शहर की जनसंख्या पर निर्भर करता है ।
सर्वप्रथम गड्ढ़े की तली में शहर के कूड़ा - करकट की 6 से 9 इन्च मोटी तह बिछाते है ।
फिर उसके ऊपर मानव - मल ( Night - soil ) की लगभग 2 से 3 इन्च मोटी तह भार की गणनानुसार फैलाते हैं ।
मानव - मल की तह के ऊपर तुरन्त प्रतिदिन कूड़े - करकट की लगभग 9 इन्च मोटी तह बिछाते हैं ।
इसके ऊपर हो सके तो लगभग 1 से 2 इन्च मिट्टी डाल देते हैं ।
इस प्रकार तहे बिछाने की क्रिया तब तक करते हैं जब तक कि कूड़े का ढेर पृथ्वी तल से 1 फीट ऊंचा हो जाता है ।
अन्त में सबसे ऊपर की तह मिट्टी की ही रखते हैं ।
इसके प्रयोग से दर्गन्ध नहीं फैलती, गड्ढ़े में मक्खायाँ उत्पन्न नहीं होती, नाइट्रोजन की कमी नहीं होती और नमी उपयुक्त मात्रा में रहती है ।
यदि प्रत्येक तह पर आदमी के चलने से उसका पैर धंसे तो यह तह में जल की अधिक मात्रा को प्रदर्शित करता है ।
ऐसी दशा में कूड़े - करकट और मल का उचित अनुपात के लिये कड़ा - करकट डाल देना चाहिये ।
गड्ढ़ा भरने के 4 से 5 दिन पश्चात ढेर में ( लगभग 70° सै० ) उत्पन्न हो जाता है । यह ताप लगभग 1 मास तक रहना चाहिये ।
इससे कूड़ा - कर डा - करकट और मल का अपघटन हो जाता है और इनमें उपस्थित रोगजनक हो जाती है ।
इस विधि में अपघटन आरम्भ में लगभग एक सप्ताह तक कीटाणओं की मृत्यु हो जाती है ।
इस विधि में अपघटन , वायुजीवी ( Aerobic ) होता है और फिर अवायुजीवी होता है ।
अपघटन लगभग चार मास में पूर्ण होकर खेत को देने योग्य गन्धहीन कम्पोस्ट खाद बन जाती है ।
3. फार्म की बिछावन के कम्पोस्टीकरण की विधि
फार्म की बिछावन का कम्पोस्टीकरण - उन फार्मों पर जहाँ पश नहीं रक्खे जाते या पशओं को गाँव में रखते हैं वहाँ फार्म की बिछावन जैसे - खरपतवार ( Weeds ), ठंठ ( Stuble ), भूसा, व्यर्थ चारा तथा गन्ने आदि की फसलों के निरर्थक पदार्थों इत्यादि से कम्पोस्ट फार्म पर बना ली जाती है ।
फार्म पर उपलब्ध उपरोक्त कूड़ा - करकट को कम्पोस्ट बनाने के लिए पर्याप्त मात्रा में एकत्रित कर लेते हैं ।
फिर उपयुक्त आकार का गड्ढा प्राय : 15 से 20 फीट लम्बा, 5 से 6 फीट चौड़ा और 3 से 3 फीट गहरा खोदा जाता है ।
एकत्रित कूड़े - करकट को भली - भाँति मिलाकर इसकी एक फीट मोटी तह इस गड़ढे में लम्बाई के साथ - साथ बिछा दी जाती है ।
इस तह को गोबर व पानी या मिट्टी व पानी का पतला घोल छिड़क कर अच्छी तरह गीला कर देते हैं ।
इसके पश्चात् इसके ऊपर कूड़े - करकट की एक फीट मोटी एक दूसरी परत फैलाकर पूर्ववत् गीली कर दी जाती है ।
इस प्रकार कूड़े - करकट की तह तब तक बिछाते रहते हैं जब तक यह देर पृथ्वी के तल से 1.5 फीट तक ऊँचा हो जाता है ।
फिर इस ढेर की चोटी को मिट्टी की पतली तह से ढक देते हैं ।
तीन माह तक अपघटन के उपरान्त खाद को गडढे से बाहर निकाल लिया जाता है ।
इसका जमीन पर शंक्वाकार ( Conical ) ढेर बना देते हैं ।
आवश्यकतानुसार इसे पानी से गीला करके मिट्टी से ढ़क देते हैं ।
एक से दो मास के उपरान्त यह खाद खेत में देने योग्य हो जाती है ।
खेत में कम्पोस्ट खाद (compost meaning in hindi) कब ओर कैसे देना चाहिए?
खेतों में कम्पोस्ट खाद डालना - कृषक प्रायः कम्पोस्ट या गोबर की खाद को गड्ढ़े या ढ़ेर से निकाल कर खेत के कोने में या बीच में छोटी - छोटी ढेरियों में डाल देते हैं ।
यहाँ यह कई सप्ताह तक ऐसे ही पड़ा रहता है ।
इस अवस्था मे तेज धूप और वर्षा के कारण खाद से पोषक तत्व विशेषकर नाइट्रोजन की क्षति हो जाती है ।
अत: खाद का पूरा लाभ उठाने के लिये इसे गड्ढ़े या ढेर से निकालते ही तुरन्त खेत में फैलाकर जुताई कर देनी चाहिये ।
गोबर की खाद या कम्पोस्ट सिंचित क्षेत्रों में धान, गन्ना, आलू तथा सब्जियों की फसला में 20 - 25 टन प्रति हैक्टर की दर से दी जा सकती है ।
यह अन्य सिंचित फसलों में 10 - 15 टन प्रति हैक्टर की दर से पर्याप्त होती है ।
यह कम वर्षा वाले असिंचित क्षेत्रों में 2 . 5 - 5टन प्रति हैक्टर की दर से दी जा सकती है ।
कम्पोस्ट खाद के मदा उर्वरता गुणों पर पड़ने वाले प्रभाव
कम्पोस्ट खाद का मृदा उर्वरता पर प्रभाव - कम्पोस्ट सब प्रकार की मृदाआ क लिये उपयुक्त है ।
इसके प्रयोग से मृदा उपजाऊ हो जाती है ।
कम्पोस्ट के भूमि पर प्रभाव को तीन भागों में विभक्त कर सकते हैं -
1. भौतिक प्रभाव (Physical effects )
कम्पोस्ट खाद (compost meaning in hindi) के प्रयोग से -
( i ) मृदा की रचना सुधर जाती है ।
( ii ) मृदा की ताप शोषण क्षमता बढ़ जाती है ।
( iii ) रेतीली मृदा सघन होकर इसकी जल संचित रखने की क्षमता बढ़ जाती है ।
( iv ) क्षारीय व लवणीय मृदा कृषि के लिये उपयुक्त हो जाती है ।
( v ) जल निकास ( Drainage ) सरलतापूर्वक होता है ।
2. रासायनिक प्रभाव ( Chemical effect )
कम्पोस्ट खाद (compost meaning in hindi) के प्रयोग से -
( i ) इसके अपघटन द्वारा पौधों को सभी पोषक तत्व प्राप्त हो जाते हैं ।
( ii ) अपघटन में उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड मृदा जल में घुलकर कार्बोनिक अम्ल बनाती है जो अनेको लवणों को घोल कर पौधों को प्रदान करता है ।
3. जैविक प्रभाव ( Biological effects )
कम्पोस्ट खाद (compost meaning in hindi) के प्रयोग से -
( i ) मृदा में असंख्य जीवाणु बढ़ जाते हैं और उनकी सक्रियता में वृद्धि होती है ।
( ii ) ह्यमस अधिक बनता है ।
( iii ) जीवाणुओं द्वारा नाइट्रीकरण, अमोनीकरण और नाइट्रोजन - बन्धन अधिक होता है ।
( iv ) पौधे जीवाणुओं की अधिक क्रियाशीलता के कारण मृदा से पोषक तत्व सरलता से ग्रहण कर लेते हैं ।
शहरी कूड़ा - करकट ( Urban Waste ) तथा सीवेज प्रबन्ध ( Sewage Disposal ) का कृषि में महत्व -
आजकल शहरों में मल - मूत्र एवं अन्य कड़ा - करकट को । दूर करने के लिये जल का प्रयोग किया जाता है ।
परिशोधन ( Sanitation ) के इस सिस्टम में ठोस पदार्थों का पर्याप्त ननुकरण ( Dilution ) हो जाता है ।
जल सीवेज का मुख्य अंग होता है ।
सीवेज में जल प्राय: 99 % तक होता है
सामान्यत: सीवेज मल के निम्न दो अवयव होते हैं -
( i ) अवमल ( Sludge ) —
यह ठोस पदार्थ होता है ।
( ii ) सीवेज जल ( Sewage water ) -
यह सिंचाई के काम आता है ।
सीवेज प्रबन्ध में अवमल को सैप्टिक टैंक विधि या छनाव विधि आदि द्वारा सीवेज जल से पृथक कर लेते हैं ।
अवमल में शुष्क भार के आधार पर नाइट्रोजन 1.5 से 3.5 %, फॉस्फोरस ( P205 ) 0 . 75 से 4 % तथा पोटेशियम ( K, 0 ) 0 - 3 से 0 - 6 % तक होती है ।
अत : यह कृषि में NPK प्रधान पोषक प्रदान करने हेतु उपयोग में लाया जाता है ।
अवमल में सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे बोरॉन, मैंगनीज, कॉपर तथा जिंक आदि भी पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं ।
कृषि में सीवेज जल का प्रयोग सिंचाई के लिये करने से फसल को नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटाश उपलब्ध हो जाते हैं ।
सैप्टिक टैंक विधि से प्राप्त निथरा जल मृदा को रोगी बना सकता है, जबकि अन्य विधियों से प्राप्त सीवेज जल फसलों की सिंचाई के लिये निर्भयता से प्रयोग किया जा सकता है ।
कूड़ा - करकट के कम्पोस्टीकरण से कम्पोस्ट खाद बनाकर फसलों के लिये खाद के रूप में सफलतापूर्वक प्रयोग की जा सकती है ।
कम्पोस्ट खाद के प्रयोग से हानियाँ ( Disadvantages of using compost in hindi )
1. कम्पोस्ट सम्पूर्ण खाद नहीं है । इसे पूर्ण खाद बनाने के लिये इसमें नाइट्रोजन व फॉस्फोरस के पूरक उर्वरक मिलाते हैं । यही कारण है कि केवल कम्पोस्ट खाद के प्रयोग से प्रत्येक प्रकार की फसल की अधिक से अधिक पैदावार नहीं ली जा सकती ।
2. यह कम सान्द्र और कुछ अघुलनशील होती है । अत: इसका शीघ्र प्रभाव नहीं पड़ता ।
3. खेत में इसकी अधिक मात्रा दी जाती है । इसके लिये इसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर कठिनाई से ले जाया जाता है ।