खाद एवं उर्वरक (manure and fertilizer in hindi) सघन खेती से अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए अधिकतर भूमियों में कृत्रिम रूप से पोषक तत्व दिये जाते हैं ।
भूमि से पोषक तत्वों का ह्रास उसमें उगाई गई फसलों द्वारा उपभोग किये गये पोषक तत्वों के रूप में, लीचिंग द्वारा, विनाइट्रीकरण, स्थिरीकरण, वाष्पीकरण, खरपतवारों द्वारा व मृदा क्षरण द्वारा होता है ।
खाद एवं उर्वरक में क्या अंतर है? (Manure and fertilizer difference in hindi)
पोषक तत्वों का ह्रास भूमि प्रबन्ध की विभिन्न विधियों और जलवायु सम्बन्धी कारकों पर निर्भर करता है ।
बलुई तथा रन्ध्रयुक्त भूमियों में पोषक तत्व की हानि चिकनी व भारी भूमियों की तुलना में अधिक होती है ।
खाद एवं उर्वरक (manure and fertilizer in hindi) में सभी आवश्यक पोषक तत्वों की पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति भूमि द्वारा सम्भव नहीं हो पाती है क्योंकि भूमि की पोषक तत्वों को धारण करने की सामर्थ्य सीमित होती है ।
इसी कारण से भूमि में कृत्रिम रूप से इन पोषक तत्वों की पूर्ति करने के लिए खाद तथा उर्वरक का प्रयोग किया जाता है ।
एक उन्नतिशील कृषक भूमि द्वारा पोषक तत्वों को ग्रहण करने की क्षमता, उसमें उगाए जाने वाले आवश्यक पोषक तत्वों की मात्रा तथा अन्य सम्बन्धित कारकों को ध्यान में रखते हुए भूमि में दिये जाने वाले खाद एवं उर्वरक की मात्रा को निश्चित कर उसका प्रयोग करता है ।
खाद एवं उर्वरक क्या है? (Manure and fertilizer in hindi)
खाद क्या होती है? (Manure in hindi)
ऐसे कार्बनिक पदार्थ, जो मानव, पशुओं, पक्षियों, पेड़ - पौधों तथा अन्य जीव जन्तुओं के व्यर्थ एवं अवशिष्ट पदार्थों के क्षय एवं अपघटन के फलस्वरूप प्राप्त होते है तथा जिनमें पोषक तत्व जटिल कार्बनिक रूपों में विद्यमान रहते है, खाद (manure in hindi) कहलाते है ।
खाद एवं उर्वरक (Manure and Fertilizer in hindi) |
उदाहरण - गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद, हरी खाद आदि ।
उर्वरक क्या होता है? (fertilizer in hindi)
कृत्रिम रूप से मशीनों द्वारा तैयार किया गया एक ऐसा पदार्थ जो कछ विशेष पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए भूमि में मिलाया जाता है, उर्वरक (fertilizer in hindi) कहलाते है ।
खाद एवं उर्वरक (Manure and Fertilizer in hindi) |
उदाहरण - यूरिया (NH, CONH), अमोनियम सल्फेट (NH), SO, अमोनियम फॉस्फेट (NH, H, PO), पौटेशियम सल्फेट K, SOA, म्यूरेट ऑफ पोटाश ( KCI ) आदि ।
उर्वरकों के प्रयोग से भूमि में कुछ निश्चित पोषक तत्वों की ही पूर्ति हो पाती है ।
खाद एवं उर्वरक को प्रयोग करने की विधियाँ (Methods of using fertilizers and fertilizers in hindi)
सामान्यतः खाद एवं उर्वरक देने की विधियां का चुनाव कुछ उद्देश्यों जैसे भूमि में फसलों के लिए पोषक तत्वों की उपलब्धता, पोषक तत्वों की हानि को कम करना और खाद एवं उर्वरकों का सरलता पूर्वक प्रयोग आदि के आधार पर किया जाता है ।
खाद एवं उर्वरकों के प्रयोग की विधियों को विभिन्न कारक जैसे भूमि, फसल, उर्वरक, जलवायु, भूमि की दशा, प्रति इकाई क्षेत्रफल में पौधों की संख्या, खाद एवं उर्वरक की कीमत, भूमि में जल की मात्रा आदि प्रभावित करते हैं ।
इन कारकों के साथ ही साथ खाद एवं उर्वरकों के प्रयोग की विधि की सम्पूर्ण जानकारी भी उपज बढ़ाने के लिए अत्यन्त आवश्यक है ।
खाद एवं उर्वरक के प्रयोग की विधियों ठोस अवस्था में प्रयोग द्रव अवस्था में प्रयोग - सिंचाई जल के साथ प्रयोग - भूमि में प्रत्यक्ष प्रयोग संवर्ध घोलों के रूप में प्रयोग - पत्तियों पर छिड़काव छिटकवा विधि स्थापन विधि विशिष्ट स्थापन विधि बुवाई से पूर्व हल की सहायता से - ड्रिल द्वारा संयुक्त स्थापन - बुवाई के समय स्थापन - पट्टियों में स्थापन - रोपण के समय जड़ क्षेत्र स्थान - गोलियों के रूप में प्रयोग - खड़ी फसल में - अधोभूमि स्थापन
( A ) ठोस अवस्था में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग
ठोस अवस्था में विभिन्न खादों एवं उर्वरकों को फसलों की आवश्यकता के अनुसार छिटकवाँ (Broadcasting), स्थापन (Placement) अथवा विशिष्ट स्थापन (Localised Placement) विधियों द्वारा उचित समय पर किया जाता हैं।
1. छिटकवाँ विधि ( Broadcasting Method ) -
खेत में समान रूप से खाद एवं उर्वरक को हाथों से बिखेरकर प्रयोग करना इनका छिटकवाँ प्रयोग कहलाता है ।
यह इनके प्रयोग की सबसे सरल विधि है ।
इस विधि से खाद एवं उर्वरकों का कम समय तथा खर्च में प्रयोग सम्भव होता है ।
अतः यह विधि कृषकों द्वारा अधिकतर (नाइट्रोजनी उर्वरकों के लिए) प्रयोग में लाई जाती है ।
परन्तु इस विधि से खाद एवं उर्वरकों का पूर्ण उपयोग नहीं हो पाता और उसका विभिन्न प्रकार से हास हो जाता है ।
यह पौधों को पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं हो पाते । खेत व फसल की अवस्था के अनुरूप छिटकवाँ विधि से खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग निम्न चार प्रकार से किया जाता है ।
( i ) बुवाई से पूर्व ( Before sowing ) -
खेत में समान रूप से खादों का बुवाई से दो तीन माह पूर्व प्रयोग करने से मृदा के भौतिक गुणों में सुधार होता है और बुवाई के समय से पूर्व पोषक तत्व मृदा में उपलब्ध अवस्था में आ जाते हैं ।
इसमें पूर्ण रूप से अपघटित (Decomposed) खादों का प्रयोग ही लाभप्रद होता है ।
इस विधि से गोवर की खाद , कम्पोस्ट खाद तथा खलियों आदि का प्रयोग होता है ।
( ii ) बुवाई के समय ( At sowing time ) -
इसमें खादों तथा उर्वरकों को खेत में समान रूप से बिखेरकर फसल की बुवाई के समय ही प्रयोग किया जाता है ।
इस विधि से प्रयोग होने वाली खादों में गोबर की खाद, कम्पोस्ट आदि तथा उर्वरकों में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटाश प्रदान करने वाले सभी उर्वरक सम्मिलित हैं ।
( iii ) रोपण के समय ( At transplanting time ) -
रोपण के समय खादों एवं उर्वरकों का प्रयोग कुछ फसलों जैसे धान आदि में किया जाता है ।
फॉस्फोरस तथा पोटाश युक्त उर्वरकों का प्रयोग इस विधि से उत्तम रहता है ।
( iv ) खड़ी फसल में ( Top dressing ) -
कुछ उर्वरक विशेषतः नाइट्रोजन युक्त जैसे यूरिया आदि खडी फसलों में समान रूप से बिखेरकर प्रयोग करने से फसलों को बहत लाभ पहुँचता है ।
गेहँ, गन्ना, धान, जो तथा बरसीम आदि फसलों में उर्वरकों के प्रयोग के लिए कृषकों द्वारा यह विधि बहतायत से प्रयोग में लाई जाती है ।
यहाँ नम पत्तियों पर उर्वरकों का प्रयोग करने से पौधों की पत्तियों भी जल जाती है ।
अत: इनके प्रयोग में उपयुक्त समय का भी सावधानीपूर्वक चयन करना चाहिए ।
2. स्थापन विधि ( Placement Method ) -
इस विधि में फसलों की बुवाई के समय या बुवाई के पश्चात केवल उर्वरकों का प्रयोग सूक्ष्म मात्रा में निम्न प्रकार से किया जाता हैं।
( i ) हल की सहायता से स्थापन ( Placement behind plough ) -
नमी की कमी वाले क्षेत्रों और ऐसे क्षेत्रों में जहाँ पर उर्वरकों के स्थिर होने की सम्भावना हो हल के कुंड के नीचे उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है ।
हल के पीछे पोरा बाँधकर कूडों में संयुक्त रूप से बीज एवं खादों का प्रयोग करते हैं ।
( ii ) जड़ क्षेत्र स्थापन ( Root zone placement ) -
कछ नाइट्रोजन यक्त उर्वरकों के वायुमण्डल में हानि की सम्भावना से बचने के लिए उन्हें पौधों की जड़ क्षेत्र की गहराई तक मृदा में नीचे स्थापित किया जाता है ।
जैसे - धान के खेत में ।
( iii ) अधोभूमि स्थापन ( Sub soil placement ) -
ऐसे क्षेत्रों में जहाँ भूमि अधिक अम्लीय होती है ।
भूमि की ऊपरी सतह में मशीनों के द्वारा उर्वरकों को पौधों की जड़ क्षेत्र की गहराई से भी अधिक नीचे की सतहों में स्थापित किया जाता है ।
फॉस्फेट व पोटाश यक्त उर्वरक इस विधि द्वारा अधिकतर प्रयोग में लाये जाते हैं ।
3. विशिष्ट स्थापन विधि ( Localised placement method ) -
इस विधि में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग बीजों के साथ ही किया जाता है ।
4. डिल द्वारा संयक्त स्थापन ( Combined placement with drill ) -
इस विधि में खाद तथा उर्वरकों का प्रयोग बीज के साथ ड्रिल मशान द्वारा किया जाता है ।
मशीन में बीज और उर्वरक के प्रयोग की गहराई अलग - अलग समायोजित करनी चाहिए जिससे अंकरण के समय उर्वरकों के तीव्र प्रभाव से बीज के भ्रूणों को बचाया जा सके ।
( ii ) पट्टियों में स्थापन ( Band placement ) -
सामान्यतः पंक्तियों में बोई गई फसलों में उर्वरकों को पट्टियों में पौधों की पंक्ति के एक ओर अथवा दोनों ओर प्रयोग किया जाता है ।
इन फसलों की बवाई अधिक अन्तरण पर करने के कारण पट्टियों में उर्वरक प्रयोग करने के लिए स्थान मिल जाता है ।
इस विधि का प्रयोग कपास, गन्ना, आलू, मक्का, तम्बाकू तथा खीरा वर्ग की फसलों में सफलतापूर्वक किया जा सकता है ।
( iii ) गोलियों के रूप में प्रयोग ( Pellet Application ) -
इस विधि में प्रयोग किए जाने वाले उर्वरक को मिट्टी में मिलाकर छोटी - छोटी गोलियाँ बना ली जाती हैं ।
इन गोलियों के प्रयोग से मुख्य रूप से नाइट्रोजन तत्व का हास होने से बच जाता है ।
इन गोलियों का प्रयोग भूमि की ऊपरी सतह में खड़ी फसल में किया जाता है ।
धान व जूट आदि की फसलों में नाइट्रोजनी उर्वरकों के प्रयोग के लिए यह विधि सर्वाधिक रूप से अपनाई जाता है ।
( B ) द्रव अवस्था में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग
द्रव अवस्था में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग निम्नलिखित चार विधियों द्वारा किया जाता हैं।
( i ) सिंचाई जल के साथ प्रयोग ( Application with irrigation water ) -
जल में घुलनशील उर्वरकों का प्रयोग नालियों में बहने वाले सिंचाई जल के साथ किया जाता है ।
सिंचाई की टपकेदार व छिड़काव की विधियों के द्वारा भी जल के साथ उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है ।
उसे फर्टीगेशन (Fertigation that is fertilizer + irrigation) कहते हैं ।
इस विधि से नाइट्रोजन व सल्फर युक्त उर्वरकों का प्रयोग मुख्य रूप से किया जाता है ।
( ii ) भूमि में प्रत्यक्ष प्रयोग ( Direct application to soil ) -
भूमि में अमोनिया का प्रत्यक्ष रूप से प्रयोग करने पर यह भूमि से हाइड्रोजन धनायन ( H + ) ग्रहण करता है और अमोनियम धनायन ( NH + ) में बदल जाता है ।
यह अमोनिया दबाव पड़ने पर द्रव अवस्था में बदल जाती है ।
इसको विशेष उपकरणों की सहायता से भूमि में प्रवाहित किया जाता है ।
खादों में मूत्र ( Urine ) तथा व्यर्थ जल ( Sewage water ) इसके उदाहरण हैं ।
यह विधि केवल विदेशों में ही प्रचलित है ।
संवर्धघोलों के रूप में प्रयोग ( Use in the form of starter solutions ) -
कुछ उर्वरकों का कम सांद्रता वाला घोल बनाकर बुवाई के समय बीज को निर्धारित अवधि के लिए प्रयोग करना लाभकारी सिद्ध हुआ है ।
बीजों के अतिरिक्त पौधों के विभिन्न भागों जैसे जड़ें, सानियाँ या बीजांकुर ( Seedling ) आदि को भी घोलों में डुबाकर प्रयोग किया जा सकता है ।
इस विधि से तेजी से अंकुरण होता है व पौधा प्रारम्भिक अवस्था में अपने आप को मजबूती से स्थापित कर लेता है ।
इस विधि का प्रयोग करने पर कम उर्वरकों की आवश्यकता होती है ।
यूरिया, मूत्र, मुर्गियों को खाद आदि के घोल बनाकर उपज बढ़ाने हेतु प्रयोग किये जा सकते हैं ।
( iv ) पत्तियों पर छिड़काव ( Foliar spray ) -
इस विधि से खड़ी फसलों में उर्वरकों के घोल बनाकर स्प्रेयर की सहायता से पौधों पर छिडका जाता है ।
इसको अपनाने से उर्वरकों का प्रभाव तीव्र गति से होता है व उर्वरकों के स्थिरीकरण की समस्या भी समाप्त हो जाती है ।
उर्वरक उपयोग दक्षता की परिभाषा ( Define fertilizer use efficiency ) -
किसी भी फसल को उगाने के लिए भूमि में एक निश्चित मात्रा में पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है ।
पौधे इन पोषक तत्वों को प्रायः भूमि से ग्रहण करते रहते हैं ।
परन्तु किसी फसल की पोषक तत्वों की सम्पूर्ण आवश्यकता की पूर्ति केवल भूमि में उपस्थित पोषक तत्वों द्वारा नहीं हो पाती क्योंकि भूमि में सामान्यतः फसले निरन्तर उगाते रहने से इन पोषक तत्वों का ह्रास होता रहता है ।
अतः फसलों की पोषक तत्वों की माँग को पूरा करने के लिए मृदा मृदा में बहुत से कार्बनिक तथा अकार्बनिक (Organic and Inorganic) खादों का प्रयोग आवश्यक हो जाता है, जो फसल का उत्पादन बढ़ाने में सहायक सिद्ध होते हैं ।
वर्तमान समय में मृदा की उर्वरता को बनाए रखने, फसल की अधिकतम उपज प्राप्त करने तथा स्थाई कृषि उत्पादन (Sustainable agriculture production) बनाए रखने के लिए कार्बनिक तथा अकार्बनिक खादों का प्रयोग समन्वित (Integrated) रूप से करना एकमात्र उपाय है ।
किसी फसल के इष्टतम उत्पादन (Optinurn production) के लिए उसके द्वारा आवश्यक पोषक तत्वों की आंशिक आपूर्ति मृदा तथा कार्बनिक पदार्थों में उपस्थित पोषक तत्वों से हो जाती है, जबकि उसकी आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए उर्वरकों का प्रयोग आवश्यक हो जाता है ।
उर्वरकों के प्रयोग से फसलों को पोषक तत्वों की प्राप्ति शीघ्रता से होती है ।
उर्वरकों का प्रयोग कार्बनिक खादों की तुलना में खर्चीला होता है तथा प्रत्येक उर्वरक किसी आवश्यक पोषक तत्व विशेष की पूर्ति के लिए ही प्रयोग होता है ।
किसी फसल के लिए दिये गये उर्वरकों में विद्यमान सभी पोषक तत्व उस फसल द्वारा ग्रहण नहीं किये जाते क्योंकि उर्वरकों की अधिकांश मात्रा विभिन्न प्रकार से नष्ट हो जाती हैं।
जैसे - निक्षालन ( Leaching ), वाष्पीकरण ( Volatilization ) तथा यौगिकीकरण ( Fixation ) आदि ।
अतः महंगें उर्वरकों की उपरोक्त सभी प्रकार की हानियों को कम करने तथा उनके उचित मात्रा में प्रयोग ( Optimum use ) के लिए इनकी उपयोग दक्षता ( Use efficiency ) को बढ़ाना अत्यन्त आवश्यक है ।
उर्वरक उपयोग दक्षता ( Fertilizer Use Efficiency )
किसी फसल के लिए प्रयोग किये गये उर्वरक की वह प्रतिशत मात्रा जो पौधों द्वारा अपनी वृद्धि एवं विकास में प्रयोग कर ली जाती है और जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है, उर्वरक प्रयोग दक्षता कहलाती है ।
इसे उर्वरक दक्षता ( Fertilizer Efficiency ) भी कहते हैं ।
किसी उर्वरक की उपयोग दक्षता को निम्न सूत्र की सहायता से ज्ञात किया जा सकता है -
फसल द्वारा ग्रहण किये गये पोषक तत्व की मात्रा - X100 उर्वरक उपयोग दक्षता = उर्वरक द्वारा दिये गये कुल पोषक तत्व की मात्रा उर्वरक उपयोग दक्षता को प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है ।
उर्वरक उपयोग दक्षता को बढ़ाने के लिए उर्वरक की विभिन्न प्रकार से हानियों को रोककर भूमि में पोषक तत्वों की उपलब्धता को बनाए रखना भी आवश्यक है, जिससे उत्पादन स्थाई रूप से बढ़ सके । इसके लिए निम्न बातों पर ध्यान देना आवश्यक हैं।
1. उर्वरकों का चुनाव ( Selection of fertilizers ) -
उर्वरकों का चयन करते समय उनकी प्रवृत्ति, भूमि की किस्म, जलवायु का प्रभाव, फसल की किस्म, उर्वरक की घुलनशीलता तथा मिट्टी के कणों द्वारा पोषक तत्वों को अधिशोषित ( Adsorption ) करने की क्षमता आदि को ध्यान में रखकर उर्वरक का चुनाव करना चाहिए ।
2. उर्वरकों की मात्रा ( Quantity of fertilizers ) -
किसी फसल की पोषक तत्वों की अपनी आवश्यकता होती है ।
इनकी पूर्ति के लिए कुछ पोषक तत्वों को पौधे भूमि से ग्रहण करते हैं और शेष मात्रा उर्वरकों द्वारा पूरी की जाती है ।
आवश्यक पोषक तत्वों की उर्वरकों में उपस्थित मात्रा के आधार पर उर्वरकों के प्रयोग की कुल मात्रा निर्धारित की जाती है ।
3. उर्वरकों के प्रयोग का समय ( Time of application of fertilizers ) -
सामान्यत: नाइट्रोजन तत्व की पूर्ति करने वाले उर्वरकों का प्रयोग फसल की बुवाई के समय अथवा खड़ी फसल में किया जाता है ।
प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है, कि नाइट्रोजन तत्व की पूर्ति प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है ।
कि नाइट्रोजन तत्व की पूर्ति किसी फसल में एक ही बार में न करके दो तीन बार में की जानी चाहिए ।
इसका प्रमुख कारण प्रयोग के बाद नाइट्रोजन तत्व का निक्षालन (Leaching) की क्रिया के द्वारा नष्ट होने से बचाना है ।
फॉस्फोरस व पोटाश युक्त उर्वरकों को बुवाई के समय ही प्रयोग करना चाहिए ।
इन उर्वरकों के यौगिक भूमि में स्थिर हो जाते है, और धीरे - धीरे घुलनशील होकर उपलब्ध अवस्था में बदल जाते हैं ।
यही कारण है, कि इन उर्वरकों के तत्व बुवाई के समय प्रयोग करने पर भी पौधे के सम्पूर्ण जीवनकाल में काम आते रहते हैं ।
अत: उर्वरक उपयोग दक्षता को बढ़ाने के लिए उर्वरकों का उचित समय पर प्रयोग नितान्त आवश्यक है ।
उर्वरको को उपयोग करने की विधि ( How to use fertilizer )
उर्वरकों का विभिन्न विधियों द्वारा प्रयोग किया जाता है ।
किसी भी विधि का चुनान फसल की किस्म, प्रमि की किस्म, जलवायु तथा मृदा प्रबन्ध की विभिन्न विधियों आदि को ध्यान में रखकर करने से उर्वरक उपयोग दक्षता बढ़ती है ।