मृदा नमी (Soil Moisture In Hindi): मृदा नमी की विशेषताएं एवं मृदा जल का संचालन कैसे होता हैं

 मृदा नमी (Soil Moisture In Hindi)


जल मृदा नमी (soil moisture in hindi) का एक प्रमुख अंग है । मृदा से पौधे जो भी खाद्य-पदार्थ ग्रहण करते हैं उनमें पानी का भाग सर्वाधिक होता है ।

पौधों में पानी की मात्रा कम होने पर कोशिकाओं का विस्तार एवं विभाजन कम हो जाता है । इसका प्रकाश संश्लेषण की क्रिया धीमी पड़ जाती है । जल एक अच्छा विलायक है । 

यह पोषक तत्वों को घोलकर पौधों के लिए पोषक का कार्य करता है । मृदा ताप एवं मृदा वायु को भी जल नियन्त्रित करता है । 

खनिज तथा कार्बनिक पदार्थों के चारों और जल भ्रमण करता है तथा इनसे अनेक पदार्थों को विलेय करके मृदा विलयन बनाता है । अतः मृदा का अपना विशेष महत्त्व है ।

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मृदा नमी की प्रमुख विशेषताएं - 

  • मृदा नमी पौधों की वृद्धि के लिए अति महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक है । इसके अभाव में पौधों की वृद्धि रुक जाती है ।
  • पौधों को कार्बोहाइड्रेट निर्माण और जीवद्रव्य के जलयोजन को बनाये रखने के लिए मृदा में नमी होना आवश्यक है ।
  • नम मृदाओं में पौधों में खाद्य एवं खनिज तत्त्वों का संचालन समुचित प्रकार से होता है ।
  • नम मृदाओं में पौधे के अन्तर्गत आवश्यक आदर्ता दाब के कारण कोशिका विभाजन और कोशिका दीर्धीकरण में अपचयन होता है जिसके परिणामस्वरुप पौधों की वृद्धि होती है ।
  • मृदा नमी से अनाज में प्रोटीन की मात्रा प्रभावित होती है ।
  • फसलों से अधिक उपज प्राप्ति के लिए आजकल अधिक उर्वरकों का प्रयोग किया जाने लगा है , इसके लिये भूमि को अधिक मात्रा में जल की आवश्यकता होती है ।


मृदा जल का संचालन |movement of soil water in hindi 

जल मृदा में तीन प्रकार से गति या गमन करता है जो निम्नलिखित है - ठोस, द्रव एवं गैस 


द्रव जल (Liquid Water) -

  • संतृप्त जल - अधिकांश रन्ध्राकाश जल से भरे होते हैं , यह प्रावह भौमजल के क्षेत्र में तथा कभी - कभी भारी वर्षा के बाद या सिंचाई के दौरान होता है । इस अवस्था में जल तनाव मुक्त होता है ।
  • असंतृप्त प्रवाह - रन्ध्राकाश आंशिक रुप में हवा से भरे होते है । जल तनाव अधीन (under tension) होता है ।


जल वाष्प ( Water vapour ) -

  • विसरण - वाष्प दाब ( आंशिक दाब ) अन्तरों के कारण जल वाष्प विसरण द्वारा गति करते हैं ।
  • द्रव्यमान प्रवाह - कुल दाब में अन्तर के कारण प्रणाली की अन्य गैसों के साथ जल वाष्प द्रव्यमान में प्रवाहित होते हैं ।


मृदा जल का संचालन ( Movement of Soil Water )
मृदा जल का संचालन (Movement of Soil Water)


मृदा के जल ग्राह्यता की क्रिया कैसे होती है?


अन्तःसरण क्या है? |Infiltration in hindi 


अन्तःसरण (infiltration in hindi) की प्रक्रिया 
वर्षा एवं अन्य साधनों के द्वारा मृदा में जल का प्रवेश एवं गतिशीलता मृदा की विभिन्न अवस्थाओं से प्रभावित होती है । 
भूमि की पानी सोखने की गति प्रारम्भ में काफी तीव्र होती है, परन्तु जैसे - जैसे भूमि जल संतृप्त होती जाती है , पानी ग्रहण करने की दर में कमी आती रहती है, एक स्थिति ऐसी आती है कि अतिरिक्त पानी जल अपवाह द्वारा बहकर निचले स्थानों पर चला जाता है ।

मृदा की सिंचाई करते समय जल संतृप्त स्थल से असंतृप्त स्थल की ओर बढ़ रहा होता है । इस समय पानी नीचे की ओर तथा बगल में दोनों तरफ अग्रसर होता है ।

नोट्स - पानी में नीचे प्रवेश करने की क्रिया को अन्तः स्त्रवण ( percolation ) तथा बगल में प्रवेश करने को रिसाव ( seepage ) कहते हैं ।

पानी के मृदा में दोनों तरफ संचलन करने के कारण सिंचाई के समय जल का बहाव असमान हो जाता है । नम भूमियों में शुष्क भूमियों की अपेक्षा जल का बहाव एक समान होता है ।

अन्तःसरण की परिभाषा| definition of infiltration in hindi 


अन्तः सरण से अभिप्राय किसी द्रव का एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करना होता है । जल का वायु से भूमि में प्रवेश करना अन्तःसरण (infiltration in hindi) कहलाता है ।

अन्तःसरण गति की माप - 

अन्तः सरण की दर या क्षमता से अभिप्राय जल की गति से है । जिस गति से जल मृदा में प्रवेश करता है अन्तसरण दर अथवा अन्तःसरण गति कहलाती है । 

इसे सेन्टीमीटर प्रतिघण्टा में दर्शाया जाता है । यह क्रिया विभिन्न घटकों से प्रभावित होती है ।

सतही सिंचाई के अन्तर्गत पानी संतृप्त धरातल से मृदा में प्रवेश करता है । स्त्रींकलर द्वारा सिंचाई से जल भूमि तल के ऊपर से प्रवेश करता है । मृदा में सिंचाई एवं जल प्रवेश को ध्यान में रखकर इसे कई क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है, जो निम्न प्रकार है - 

  • संतृप्त क्षेत्र ( Saturated Zone ) - मृदा के ऊपरी तल से कुछ नीचे की मृदा को संतृप्त क्षेत्र कहते हैं ।
  • संचरण क्षेत्र ( Transmission Zone ) - संतृप्त क्षेत्र के नीचे का क्षेत्र संचरण क्षेत्र कहलाता है ।
  • आई क्षेत्र अथवा गीला क्षेत्र ( Wetting Zone ) - संचरण क्षेत्र के बाद आई क्षेत्र एवं गीलर तलहोता है ।

जल के अन्तः सकंण मण्डल को निम्न चित्र के माध्यम से भी दर्शाया जा सकता है -



अन्तःसरण मण्डल ( Infiltration Zone ) -


सिंचाई समाप्त होने के उपरान्त मृदा सतह से जल समाप्त हो जाता है यह जल संतृप्त और संचरण मण्डल से या तो नीचे चला जाता है या कुछ सेन्टीमीटर ऊपरी सतह का जल वाष्प बनकर वाष्पीकृत हो जाता है । यह क्रिया लगातार ऊपरी तल की मृदा सूखने तक चलती रहती है । 

अन्तःसरण को प्रभावित करने वाले कारक ( Factors affecting Infiltration ) -


अन्तः सरण को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं -


  • मृदा में नमी की मात्रा प्रारम्भ में मृदा में अन्तः सरण की दर मृदा नमी के कारण कम होती है कुछ समय के पश्चात् इसमें अन्तर आने लगता है ।
  • धरातल की पारगम्यता मृदा धरातल का कठोर होना, मृदा में अभेद्य पटल होना, विभिन्न कारणों से मृदा का संघनित होना अन्त:सरण को प्रभावित करता है ।
  • मृदा की भौतिक अवस्था क्षारीय भूमियों के मृदा कण बिखरे होने के कारण, अन्तः सरण प्रभावित होता है ।
  • जीवांश पदार्थ की मात्रा मृदा में जीवांश पदार्थों की मात्रा अन्तः सरण को प्रभावित करती है ।
  • वर्षा की मात्रा एवं तीव्रता वर्षा की अवधि, मात्रा एवं तीव्रता अन्तः सरण को प्रभावित करती हैं ।
  • वर्षा के प्रारम्भिक काल में अन्तः सरण दर अधिक होती है, जो उत्तरोत्तर कम होती जाती है ।

जल प्रवाह की धारणायें - 


मृदा द्वारा जल का संचलन मृदा की जल के लिये चालकता तथा जल को संचालित करने वाले बल के गुणनफल के समानुपाती होता है ।

द्रव और वाष्प का यह संचलन निम्न समीकरण द्वारा व्यक्त किया जा सकता है 0 = cDK जहाँ , Q = प्रवाह वेग ( Flow velocity ) , C = समानुपाती फैक्टर ( proportionality factor ) , D = जले को सिंचत करने वाला बल ( Driving force ) , K = माध्यम की चालकता ( Conductivity of the medium ) ।

जल को संचालित करने वाला दो कारणों - 

( i ) गुरुत्व

( ii ) फिल्म तनाव में अन्तर ( difference in film tension ) या तनाव ग्रेडिएन्ट ( tension gradient ) द्वारा निर्धारित होता है ।

गुरुत्व केवल अधोमुखी संचलन ( downward movement ) को प्रभावित करता है तथा तनाव मैडिएन्ट किसी भी दिशा में कार्य कर सकता है ।

जल , उच्च दाब की स्थिति ले निम्न दाब की स्थिति की ओर गति करता है ।

द्रव जल के लिये मृदा की चालकता , रन्ध्रों के अनुप्रस्थ परिच्छेद क्षेत्र ( Cross sectional Area ) तथा रन्ध्रों की साइज पर निर्भर होती है ।

संतृप्त प्रवाह में चालकता त्रिज्या ( radius ) की चौथी घात ( fourth power - R ' ) के समान बढ़ जाती है ।

असंतृप्त प्रवाह में चालकता असंतृप्तीकरण की मात्रा ( degree ) पर निर्भर होती है ।

सुखी मृदा होने पर इसकी चालकता पंतप्तीकरण की मात्रा पर निर्भर करती है । सूखी मृदा होने पर इसकी चालकता कम होती है ।

संतृप्त प्रवाह नट में संतृप्त प्रवाह तल के तनाव मुक्त होने पर होता है । सभी या अधिकांश रन्ध्र , जल से पूर्णरुप से भरे होते हैं ।

संतृप्त प्रवाह जैसे भौम जल को निम्न प्रकार व्यक्त करता  -

o PT R ' Q = 8LZ जिसमें . 0 = प्रवाह का आयतन सी० सी० / सेकिण्ड ( cc / sec ) , P = दाब अन्तर ( Pressure difference ) डाइन्स / cm , R = ट्यूब की त्रिज्या ( Radius ) से० मी० , L = ट्यूब की लम्बाई , से० मी० Z = द्रव की विस्कासिता ( Viscosity ) डाइन्स / cm । | इसे शब्दों में इस प्रकार व्यक्त करते हैं ।

एक संकुचित टयूब के द्वारा एक द्रव के प्रवाह की दर , ट्यूब की चौथी घात ( R ) तथा दाब के समानुपाती तथा द्रव की विस्कासिता और ट्यूब की लम्बाई के व्युक्रमानुपाती ( inversely proportional ) होता है ।

ट्यूब के व्यास को आधा करने पर प्रवाह की दर अपनी मूल दर की 1 / 16 गुना कम हो जाती है । Poiseuille समीकरण इस कल्पना पर आधारित है , कि तरल ( fluid ) ट्यूब की दीवारों के सम्पर्क में स्थिर ( atrest ) होता है तथा विक्षुब्ध प्रवाह ( turbulent flow ) नहीं होता ।

अन्य दशाओं के समान होने पर संतृप्त प्रवाह रन्ध्रों की साइज कम होने पर कम हो जाता है । विभिन्न कणाकार की मृदाओं में संतृप्त प्रवाह की दर निम्न घटते क्रम में है ।

बालू लोम > क्ले Poiseuile समीकरण में प्रवाह पर विस्कासिता ताप का प्रभाव प्रकट करती है ।

ताप में प्रत्येक डिग्री सेंटीग्रेड की कमी होने से जल की विस्कासिता 100 % से अधिक बढ़ती है ।

" डार्सी के नियम ( Darcy ' s law ) के अनुसार "

एक सरन्ध्र माध्यम द्वारा एक इव के प्रावह का वेग , प्रवाह करने वाले , ब्रल ( force causing the low ) तथा माध्यम की हाइड्रोलिक चालकता के समानुपाती होता है । "

इसे कई प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं । समीकरण जल को संचालित करने वाले बल के रुप में दाब मेडिएट पर आधारित हो सकता है।

0 cKAP 0 = L जिसमें Q = प्रवाह वेग ( Flow velocity ) , c = विस्तार रहित समानुपाती स्थिरांक ( dirmensionless proportionality constant ) , K = हाइड्रोलिक चालकता A = सरन्ध्र माध्यम का अनुप्रस्थ परिच्छेद क्षेत्र , P = दाब ग्रेडिएन्ट ( Pressure gradient ) , L = सरन्ध्र माध्यम की लम्बाई ।

यह समीकरण जल को संचालित करने वाले बल के रुप में हाइड्रोलिक हैड ग्रेडिएट परे आधारित है y = Ki यहाँ , V = प्रवाह दर , K = हाइड्रलिक चालकता , 1 = हाइड्रोलिक हैड ग्रेडिएन्ट ( hydraulic head gradient ) ।

हाइड्रोलिक ग्रेडिएन्ट सरन्ध्र माध्यम की प्रकृति एवं द्रव की विस्कासिता पर निर्भर होती है । जल के विषय में यह ताप पर भी निर्भर होती है ।

इन दोनों समीकरणों से यह विदित होता है कि जल के लिये चालकता ऐश्वकाशको - कुल मात्रा पर निर्भर नहीं होती है । जैसे क्ले की सरंन्ध्रता अधिक होती है , लेकिन इसकी चालकता कम होती है । 

संतृप्त प्रवाह , गुरुत्वाकर्षण बल तथा कोशिका बल ( capillary force ) द्वारा प्रेरित होता है ।

यह प्रवाह मृदा में जल की पर्याप्त मात्रा के उपस्थित रहने तक तथा किसी रोधी ( barrires ) द्वारा प्रतिरोध उत्पन्न करने तक निरन्तर होता रहता है ।

असंतृप्त प्रवाह ( Unsaturted flow ) केशिकत्व का सिद्धान्त ( Principle of Capaillary ) -


यदि एक स्वच्छ , शुष्क केशिका नली , जो सूक्ष्म छिद्र वाली काँच की नली होती है , जल में खड़ी की जाये तो यह देखा जाता है कि नली में जल चढ़ने लगता है । इस घटना को केशिकाव कहते हैं ।

जो कि आसंजन तथा संसंजन बलों द्वारा होती है । नली में जल की ऊँचाई जल की बाहर सतह से अधिक होती है , इसका कारण जल के प्रति काँच का आकर्षण है ।

इसके साथ ही जल अणुओं में परस्पर आकर्षण के कारण नली का मध्यवर्ती जल जो कि आसंजन से अप्रभावित होता है , ऊपर की ओर खिंच जाता है ।

इस प्रकार जल का जल स्तम्भ जिसका भार आसंजन एवं संसजन बलों पर अवलम्बित होता है , केशिका में खड़ा रहता है ।

एक सूक्ष्म छिद्र वाली नलिका में दीर्घ छिद्र वाली नलिका की 


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