जैविक खेती किसे कहते है (Organic Farming In Hindi): परिभाषा, लाभ एवं कार्य क्षेत्र

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जैविक खेती किसे कहते है (Organic Farming In Hindi)


जैविक खेती किसे कहते है (Organic Farming In Hindi): ऐसी खेती जो बिना रासायनिक उर्वरकों, खरपतवारनाशकों एवं कीटनाशकों के बिना की जाती है उसे जैविक खेती कहा जाता हैं । जैविक खेती को कार्बनिक खेती एक स्थाई एवं परम्परागत खेती भी कहते है ।

खेती की परम्परागत की विधियों को अपनाकर जैविक खेती को विभिन्न रसायनों के दुष्प्रभाव से भूमि, पर्यावरण वह कृषि उत्पाद को बचाया जा सकता है एवं भूमि वह पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण भी किया जा सकता है । 


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जैविक खेती किसे कहते है? | organic farming in hindi


जैविक खेती एक परंपरागत खेती है जिसे अपनाने से भूमि, पर्यावरण वह मनुष्य के स्वास्थ्य में सुधार होता है । ऐसी खेती जिसमें रासायनिक उर्वरकों कीटनाशकों वह वृद्धि नियंत्रक का प्रयोग नहीं किया जाता है, परंतु जैविक खाद का प्रयोग किया जाता है और अच्छी पैदावार प्राप्त की जाती है जिससे पर्यावरण पर भी नियंत्रण रहता है जैविक खेती कहलाती है ।

अतः जैविक खेती द्वारा निर्मित कृषि उत्पाद को गुणवत्ता की दृष्टि से अच्छा माना जाता है । जो बिना किसी रासायनिक उर्वरकों की सहायता के केवल कार्बनिक खाद संभव किया जाता है जिससे पर्यावरण एवं मनुष्य के स्वास्थ में सुधार होता है ।


जैविक खेती की परिभाषा| defination of organic farming in hindi - 

"ऐसी खेती जिसमें दीर्घकालीन वह स्थिर उपज प्राप्त करने के लिए कारखानों में निर्मित रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों व खरपतवारनशियों तथा वृद्धि नियंत्रकों का प्रयोग न करते हुए जीवांश्म युक्त खादों का प्रयोग किया जाता है तथा मृदा एवं पर्यावरण प्रदूषण पर भी नियंत्रण किया जाता है उसे जैविक खेती कहा जाता हैं ।"


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जैविक खेती करने के फायदें - 


  • जैविक खेती करने से भूमि के भौतिक, रसायनिक तथा जैविक गुणों में सुधार होता है जिससे भूमि का वातावरण कृषि उत्पादन को स्थाई रूप से बढ़ाने के अनुकूल बनता है ।
  • भूमि में पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि हो जाती है । स्थाई रूप से फसलों के लिए पोषक तत्व भूमि से प्राप्त होते रहते हैं ।
  • कार्बनिक खेती से भूमि व पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण होता है ।
  • जैविक खेती (आर्गेनिक फॉर्मिंग) करने में प्रयोग की जाने वाली खादें सस्ती होती है । अतः किसान को कम धन की आवश्यकता पड़ती है ।
  • इस प्रकार की खेती में प्रयोग होने वाली कार्बनिक खादें किसान द्वारा स्वयं स्थानीय स्तर पर तैयार की जा सकती हैं व अपनी सुविधा अनुसार वह इनका प्रयोग भी आसानी से कर लेता है ।
  • किसान को कार्बनिक खादों के लिए प्राइवेट या सरकारी संस्थाओं पर निर्भर नहीं रहना पड़ता जिससे उसके समय की भी बचत होती है ।
  • जैविक खेती से प्राप्त उत्पाद उच्च गुणवत्ता वाला माना जाता है । इस उत्पाद में खनिज तत्व, विटामिन्स व अन्य पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में विद्यमान होती है ।
  • कार्बनिक खेती से प्राप्त उत्पाद में किसी रसायनिक उर्वरक, कीटनाशी, खरपतवारनाशी या वृद्धि नियन्त्रक के अवशेष (residues) नहीं होते । अतः यह उत्पाद स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छे माने जाते हैं ।
  • यह एक परम्परागत खेती है, जिसको अपनाने से भूमि, पर्यावरण व मनुष्य के स्वास्थ्य में सुधार होता है ।
  • जैविक खेती (organic farming in hindi) से प्राप्त उपज उच्च गुणवत्ता वाली होने के कारण विश्व बाजार में इसकी काफी माँग है जिससे अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है ।
  • जैविक खेती में फसल के पौधों में कीटों व रोगों से लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है ।


आज के समय में जैविक खेती क्यों आवश्यक है?


  • स्थाई कृषि में भूमि प्रबन्धन की नई तकनीकों, मृदा उर्वरता प्रबन्ध, कृषि के अयोग्य भूमियों का सुधार, उपलब्ध जल संसाधनों का उचित प्रयोग तथा उत्पादन बढ़ाने के लिए सस्य विज्ञान की नवीनतम तकनीकों का प्रयोग सम्मिलित है ।
  • स्थाई कृषि विकास में मृदा की उर्वरता को बनाए रखने में जैविक खेती (organic farming in hindi) का एक महत्वपूर्ण स्थान है । 
  • स्थाई कृषि उत्पादन के लिए विभिन्न जैविक खादों का प्रयोग करना वर्तमान समय की एक महती आवश्यकता है ।
  • कार्बनिक खादों के प्रयोग से भूमि के भौतिक, रसायनिक व जैविक गुणों में सुधार होकर पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि होती है । 
  • कार्बनिक पदार्थों के प्रयोग से भूमि को विभिन्न पोषक तत्वों की आपूर्ति होती है । 
  • कृषि प्रक्षेत्र पर उपज बढ़ाने के लिए पोषक तत्वों की पूर्ति फसलों के अवशेषों, पशुओं के व्यर्थ व अवशिष्ट पदार्थों एवं घर का कूड़ा - कचरा तथा रसायनिक उर्वरकों आदि का प्रयोग कर की जाती है ।
  • कार्बनिक अवशिष्ट पदार्थों में फसलों के अवशेष उसमें पौधों के डंठल व जडे, पशुओं के मलमूत्र व गोबर, बूचड़खानों के अवशेषों, खरपतवारों अपघटन से जीवांश पदार्थ की मात्रा में वृद्धि, गन्ने की पत्तियाँ, खलियाँ, मैली आदि सभी अवशिष्ट पदार्थ कम्पोस्ट बनाने में प्रयोग किये जाते हैं ।
  • इनके अतिरिक्त हरी खाद का प्रयोग भी भूमि की उत्पादकता व उर्वरता में वृद्धि के साथ - साथ भूमि के वातावरण को सुधारने का कार्य करता है ।
  • अतः उपरोक्त के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है, कि स्थाई कृषि के लिए जैविक कृषि बहुत ही आवश्यक है ।
  • जैविक खेती (organic farming in hindi) अपनाकर भविष्य में देश की खाद्य समस्या को हल करने में सहायता मिलेगी ।


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जैविक खेती का कार्य-क्षेत्र | scope of organic farming in hindi 


भारत देश की तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या की खाद्य समस्या के समाधान के लिए कृषि उत्पादन में वृद्धि होना आवश्यक है ।इस समय हमारे देश का कुल खाद्यान्न उत्पादन 205 मिलियन टन है । सन् 2015 में देश को 235 मिलियन टन अनाज की आवश्यकता थी ।

हमारा कृषि उत्पादन निरन्तर बढ़ रहा है परंतु भूमि से अधिक उत्पादन प्राप्त करने की इच्छा से उस में प्रयोग किए जाने वाले रासायनिक खादों, उर्वरक तथा रसायनों के कारण भूमि की उत्पादकता वह उर्वरा शक्ति घट रही है ।

अतः यह आवश्यक हो गया है की भविष्य में भूमि को विभिन्न प्रकार के प्रदूषण से रहित रखते हुए स्वास्थ्य की दृष्टि से उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद प्राप्त किया जाए । इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न कार्बनिक पदार्थों का उपयोग करके इस उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है जो केवल जैविक खेती (organic farming in hindi) से संभव है ।


भारत में जैविक खेती का कार्य क्षेत्र - 

  • मनुष्य ने अपनी अन्नत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु एवं उत्पादन वृद्धि हेतु प्राकृतिक सम्पदाओं का अविवेकपूर्ण दोहन किया है ।
  • जिसके फलस्वरूप सम्पूर्ण पारिस्थितिक तन्त्र अस्त व्यस्त हो गया है । कृषि के अन्तर्गत अधिक उपज देने वाली फसलों की प्रजातियों, रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, आधुनिक सिंचाई यन्त्रों के प्रयोग से यद्यपि कृषि उत्पादन बढ़ा है लेकिन इससे मृदा एवं पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा है ।
  • आज कृषि जनसंख्या के दबाव, मृदा उर्वरता ह्रास , विकृत पर्यावरण, ऊर्जा स्रोत संकुचन, जैसी विभिन्न समस्याओं से ग्रसित है ।
  • अतः आज कृषि विद्वानों का मत है कि कृषि के विकास के लिए कृत्रिम उर्वरकों एवं अन्य कृषि रसायनों का उपयोग कम से कम मात्रा में होना चाहिए ।
  • इसके स्थान पर जीवांशमय खादों, न्यूनतम भूपरिष्करण, फसल चक्र, जैव उर्वरक एवं जैविक पौध संरक्षण विधियों का उपयोग किया जाये ताकि पर्यावरण को अधिक असंतुलित होने से बचाया जा सके ।


भारत में जैविक खेती का महत्व - 


भारत में फसलों से अधिकतम पैदावार लेने के लिए विभिन्न रसायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, खरपतवारनाशियों व वृद्धि नियन्त्रकों का प्रयोग बड़े स्तर पर किया जा रहा है । इससे भूमि व पर्यावरण प्रदूषित हो रहे है व भूमि के विभिन्न गुणों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है जैविक खादों के प्रयोग से भूमि के वातावरण में सुधार होकर भूमि की उर्वरता में वृद्धि होती है

सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या में तीव्र वृद्धि होती है और पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है । उत्तम गुणवत्ता वाला उत्पाद व भूमि तथा पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण के साथ - साथ अन्य लाभों को देखते हुए वर्तमान समय में कार्बनिक खादों का प्रयोग करना आवश्यक हो गया ।

  • जैविक आहार की प्राप्ति - जो खाद्य पदार्थ कार्बनिक खेती के उत्पादों से निर्मित किए जाते है जैविक आहार (organic food in hindi) कहलाते है । उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद होने के कारण इनका बाजार में मूल्य अधिक होता है ।
  • जैविक आहार का उपयोग - कार्बनिक भोजन के प्रयोग से मनुष्य के भोजन के साथ उसके शरीर में पहुंचने वाले हानिकारक रसायनों की मात्रा समाप्त हो जाती है । जिससे व्यक्ति बहुत से घातक बीमारियों के कुप्रभाव से बचा रहता है और उसकी आयु अधिक होती है ।

यही कारण है कि कार्बनिक भोजन (organic food in hindi) को अधिक पसंद किया जाता है और इसका बाजार भाव भी अधिक होता है ।


जैविक खेती में प्रयोग की जाने वाली जैविक खाद - 


विभिन्न कार्बनिक पदार्थों के प्रयोग के साथ हमें मृदा प्रदूषण बढ़ाने वाले अनेक रासायनिक पदार्थों जैसे - रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक, खरपतवारनाशी तथा वृद्धि नियंत्रकों के प्रयोग को सीमित कर बंद कर देना चाहिए ।

इनके स्थान पर हमें विभिन्न प्रकार के जैविक खाद (organic manure in hindi) जैसे - गोबर की खाद, हरी खाद, कंपोस्ट खाद, वर्मी कंपोस्ट तथा अन्य जैविक खादो का प्रयोग करना चाहिए । इससे मृदा में जल को प्रदूषण से बचा कर प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने में सहायता मिलती है तथा साथ ही साथ उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद भी प्राप्त होता है ।

जैविक खाद के प्रयोग से भूमि अवस्था में सुधार होता है जिससे भूमि में वायु संचार मैं वृद्धि होती है है तथा जीवाश्म पदार्थ का निर्माण होता है । वायुमंडल की नाइट्रोजन का पौधों में स्थितिकरण बढ़ जाता है इन के फल स्वरुप उत्पाद में वृद्धि होती है ।

  • गोबर की खाद ( Farm Yard Manure )
  • कंपोस्ट ( Compost )
  • वर्मी कंपोस्ट ( Vermi Compost )
  • हरी खाद ( Green Manure )
  • अन्य जैविक खादें ( Biotic Manures ) प्रमुख है ।

इन खादों के क्षय‌ वह अपघटन के फल स्वरुप पौधों को पोषक तत्वों की पूर्ति होती है ।


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जैविक खेती कैसे कि जाती हैं?


पौधों की वृद्धि एवं विकास पर विभिन्न जीवधारियों का प्रभाव पड़ता है जो लाभदायक एवं हानिकारक दोनों प्रकार का होता है । कुछ सूक्ष्म जीवाणु जैसे बैक्टोरिया, फँजाई, एलगी, वायरस आदि पौधों की वृद्धि को विभिन्न प्रकार से प्रभावित करते हैं ।

इसके अलावा पौधों एवं जीव - जन्तुओं के अवशेष मृदा को जीवांश पदार्थ एवं ह्यूमस आदि प्रदान करते हैं । अधिकांश जीव पेड़ - पौधों को खाते हैं एवं उन्हीं के साथ निवास भी करते हैं । मृदा में निवास करने वाले छोटे जीवाणु जैसे कवक, शैवाल, वायरस निमैटोड, आदि पृथ्वी के भीतर निवास करते हैं जो कृषि उत्पादकता को प्रभावित करते हैं । केंचुए, साँप आदि मिट्टी को खाकर उसे मल के रूप में त्यागते हैं । इस प्रकार से भूमि की उर्वरता बढ़ती है ।

वर्तमान में मृदा उर्वरता, पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी से सम्बन्धित कई समस्यायें हमारे समक्ष आई हैं । जैविक खेती (organic farming in hindi) की तुलना में रासायनिक तरीके से की गई खेती केवल महंगी ही नहीं अपितु इससे उपलब्ध पोषक तत्व नश्वर प्रकृति के होते हैं ।

आज पर्यावरणविदों एवं कृषि वैज्ञानिकों द्वारा जैव उर्वरकों (biofertilizers in hindi) पर आधारित खेती करने की सलाह दी जा रही है । जिससे पोषक तत्वों को अधिक ह्रास नहीं होगा और पर्यावरण को भी सुरक्षित रखने में मदद मिलेगी ।


जैविक खेती का जैव उर्वरक से क्या सम्बन्ध है?


जैविक कृषि (organic agriculture in hindi) के अन्तर्गत जैव उर्वरकों (biofertilizers) का प्रयोग अति महत्वपूर्ण है ।

ऐसे जीवाणुविक - सम्बर्द्ध जिनमें जिवाणुओं की जीवित कोशिकायें होती हैं जब ये उपयोग में लाये जाते हैं तब ये अपनी शक्ति से वातावरणीय नाइट्रोजन और भूमि में स्थित फास्फोरस को पौधों को उपलब्ध कराने का कार्य करते हैं जैव उर्वरक (biofertilizer in hindi) कहलाते हैं ।


जैव उर्वरकों को दो समूहों में विभक्त किया जाता है -

  • नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जैव उर्वरक
  • फास्फोरस को घुलनशील बनाने वाले जैव उर्वरक


नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जैव उर्वरक - 

  • सहजीवी नाइट्रोजन स्थिरीकरण - इस वर्ग में पौधे के सह सम्बन्धित वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को पौधे की जड़ ग्रन्थि अथवा मृदा में स्थापित करने वाले जीवाणुओं को सम्मलित किया जाता है । इस प्रक्रिया में जीवाणु एवं फसल एक - दूसरे की सहायता करते हैं । दोनों को ही लाभ होता है । उदाहरण के लिए - दलहनी फसलें एवं राइजोबियम, नील हरित काईं तथा अजोला ।
  • असहजीवी नाइट्रोजन स्थिरीकरण - इस प्रक्रिया में जीवाणु मृदा में स्वतंत्र रूप से रहते हुए वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को भूमि में संग्रहित करते हैं । इसमें फसल का सहयोग आवश्यक नहीं होता न ही फसल जीवाणु लाभान्वित होता है । इस वर्ग में निम्न जैव उर्वरक आते है - नील हरित शेवाल (नोस्टाक, एनाबीना, आलोसिरा आदि ।) इसके अन्तर्गत वायु जीवी वैक्टीरिया जैसे - एजोटोबैक्टर, एजोस्पाईरीलम, बैसिलस आदि एवं अवायुजीवी बैक्टीरिया जैसे क्लास्ट्रीडियम, रहोडोस्पाईरीलम, बैसिलस आदि) आते हैं ।


फास्फोरस को घुलनशील बनाने वाले जैव उर्वरक - 

ये जैव उर्वरक भूमि में उपलब्ध फास्फोरस को पौधों को उपलब्ध कराने का कार्य करते फ्यूजेरियम, माइकोराइजा आदि आते है ।

इस श्रेणी के अन्तर्गत - सूडोमोनास स्ट्रेटा, वैसीलस पालीमिक्सा, ऐस्परजिलस अवमारी, जैव उर्वरक के रूप में हम जीवाणुओं की जीवित कोशिकाओं का उपयोग करते है । अतः इनके प्रयोग का पूरा लाभ लेने के लिए ऐसी विधि अपनानी चाहिए जो जोकणुओं के जीवन को सुरक्षित रखने एवं विकसित करने में सहायक हो ।


इस सम्बन्ध में निम्न सावधानियाँ आवश्यक होती है -

  • विभिन्न फसलों के लिए अलग - अलग जीवाणुविक कल्चर की आवश्यकता होती है । अतः फसल के अनुसार जैव उर्वरकों का प्रयोग किया जाये ।
  • कल्चर का उपयोग अच्छी प्रकार निरीक्षण एवं परीक्षण के उपरांत करें ।
  • जैव उर्वरकों का भण्डारण ठण्डे एवं हवादार स्थान पर करें अधिक शीत एवं ताप से बचायें ।
  • कल्चर का घोल गाढ़ा होना चाहिये । घोल बनाने के लिए पानी को निर्जमीकृत किया जाना आवश्यक है ।
  • यदि बीजोपचार आवश्यक हो तो कवकनाशी का उपचार पहले किया जाना चाहिए ।
  • स्थायी कृषि विकास के दृष्टिकोण से जैविक खेती (organic farming in hindi) का उपयोग अनिवार्य हो गया है ।
  • पर्यावरण संरक्षण के लिए भी इसकी नितांत आवश्यकता है ।

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